शनिवार, 8 अगस्त 2015

एक चित्र की चित्रकार से प्रार्थना

एक चित्र की चित्रकार से प्रार्थना

प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव ‘‘विदग्ध‘‘
ओबी 11 एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर 482008
मो. न. 9425806252

तुम्हारे ही हाथो बनाया गया, तुम्ही से मगर अब भुलाया गया हॅू।
कई साल पहले बना रूप रेखा, मुझे सौ निगाहों से तुमने था देखा।
कभी कुछ हॅंसे थे कभी मुस्कुराये कभी भौं सिकोडी कभी मुॅह था फेरा
मगर फिर मधुर गुनगुनाते हुये चित्र जिसमें कि तुम थे लगे रंग भरने
वही हॅू उपेक्षित सा बिसरा हुआ सा, चपेटो के बीचों दबाया गया हॅू।

सजग कल्पना के चटक रंग कई मिल लगे थे मेरा यह कलेवर सजाने
या जिन जिनने देखा सभी ने कहा था मुझे अपने गृह का सुषोभक बनाने
तुम्हें भी खुषी थी, मगर तूलिका से टपक एक कणिका गई अश्रुकण बन
तभी से मेरा हास्य रोदन बना पर मेै रोया नही हॅू रूलाया गया हॅू।

बनने के पहले ही बिगडा नया और होने के पहले पुराना हुआ जो
उठा शुष्क को आर्द्र कर अश्रुजल से कि जिस तूूलिका ने सजाया है मुझको
उसी की कृपाकर लगाचार कूचे ये आंसू मिटा दो औं मुस्कान भर दो
तुम्हारे ही हाथो है निर्माण मेरा तुम्ही से अधूरा बनाया गया हॅू।

प्रकृति के पटल पर समय धूल से क्यो परिवृत होते दिया त्याग तुमने
हुये रंग फीके मेरे किंतु तब से हुये नित नये किंतु निर्माण कितने
मैं आषा लिये ही पडा सह चुका सब प्रखर ग्रीष्म वर्षा के झोके जकोरे
बनाया है मुझको तो पूरा बना दो मिटाओ न क्योंकि भुलाया गया हॅू।
तुम्हारे ही हाथों है निर्माण मेरा, न जाने कि क्यों यो भुलाया गया हॅू।


 

संतुलन चाहिये

संतुलन चाहिये

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव
                                 ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
                                      रामपुर, जबलपुर
                                      मो.9425806252

जग में खुद की आंै सब की खुषी के लिये
स्वार्थ परमार्थ में संतुलन चाहिये

आये बढते निरंतर मनुज के चरण
किंतु अपने से ऊपर न उठ पाया मन।
सारी दुनियाॅ इसी से परेषान है
कई के आॅसुओ से भरे हैं नयन
सारी दुनियाॅ मंे दुख के शमन के लिये
लोगों में सबके मन का मिलन चाहिये।

आज आॅंगन धरा का गया बन गगन
नई आषाओ से चेहरे दिखते मगन
भूल छोटी भी कोई किसी भी तरफ
डर है कर सकती जग की खुषी का हरण
एक आॅंगन में सम्मिलित जषन के लिये
भावनाओं का एकीकरण चाहिये।

मन की बातों का अक्सर न होता कथन
ये है इस सभ्य दुनियाॅ का प्रचलित चलन
हाथ तो मिलाये जाते है मिलने पै पर
यह बताना कठिन कितने मिल पाये मन
विश्व में मुक्त वातावरण सृजन के लिये
पारदर्षी खुला आचरण चाहिये।

धन जग का भगवान नहीं है

धन जग का भगवान नहीं है

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव
                                 ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
                                      रामपुर, जबलपुर
                                      मो.9425806252

धन को सबकुछ कहने वालो। धन जग का भगवान नहीं है।
धन से भी बढकर के कुछ है, शायद तुम्हें यह ध्यान नहीं है।

धन को बस धन ही रहने दो, सुख साधक जीवन अनुगामी
क्यों उसके अनुचर बनकर तुम बना रहे उसको निज स्वामी
उसकी निर्ममता का शायद तुमको पूरा ज्ञान नहीं है।

माध्यम है मानव के सुख संचय हित धन केवल जड साधन
करूणा ममता प्रेम बडे जिनका मन नित करता आराधन।
मानवता ममता के आगे धन का कोई अधिमान नहीं है।

धन कर सकता है केवल क्रय, जीवन दे सकती ममता
ममता के बिन यह जग नीरस, निर्वासित सुख दायिनि समता
धन ममता का क्र्रीत दास है यह मिथ्या अभिमान नहीं है

धन ने ही भाई भाई के बीच बडी खोदी है खाई
धनी और निर्धन की इसने अलग अलग बस्ती बसवा दी।
यह अब बढ अभिषाप बन रहा सबको शुभ वरदान नहीं है

आवश्यक है अब धन की हो एक नई व्याख्या परिभाषा
हो धन का समुचित बंटवारा जिससे कहीं न रहे निराषा
धन मानव के हित निर्मित है धन के हित इन्सान नहीं है।