रविवार, 18 मई 2008

जयपुर बम विस्फोट पर


जयपुर बम विस्फोट पर

प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर

बह चुका आंसानियत का खून कई बाजार में
कोसते हैं लोग सब अब तुम्हें इस संसार में
सिरफिरों ! आतंकवादी ! आदमियत के दुश्मनों
आदमियत को भी तो समझो लौट फिर इंसा बनो

निरपराधों की निरर्थक ले रहे तुम जान क्यों
नासमझदारी पै अपनी है तुम्हें अभिमान क्यों
आये दिन चाहे जहाँ पर लगाते तुम आग हो
जला के रख देगी वह ही तुम्हारे ही बाग को

खून का औ आग का ये खेल है अच्छा नहीं
तुम्हारा ये जुनुं कल कर सकेगा रक्षा नहीं
आदमी हो ये नहीं है आदमी का आचरण
कुत्तों सा होता है जग में दुष्टों का जीवन मरण

जाति के भाषा के या फिर धर्म के उन्माद में
जो भी उलझे जग को उनने ही किया बरबाद है
किये तो विस्फोट इतने पर तुम्हें है क्या मिला
बद्दुआयें लेने सबकी कब रुकेगा सिलसिला

मिटा के औरों के घर परिवार उनकी जिंदगी
कर रहे हो तुम समझते हो खुदा की बन्दगी
तो ये जानो हर तरह से ये तुम्हारी भूल है
बोता जो जैसा वही मिलता उसे ये उसूल है

कुछ न हासिल होगा खुद के किये पै पछताओगे
कमाने को पुण्य निकले पाप में मिट जाओगे
राख हो जाओगे जलकर जुल्म की इस राह में
गलाने की शक्ति होती त्रस्त की हर आह में

जहाँ जन्में पले विकसे और सब कुछ पा रहे
उसी अपने देश और समाज को क्यों खा रहे
सही सोच विचार अब भी दिला सकता यश बड़ा
ज्योंकि अब्दुल हमीद को सम्मान पदक सुयश जड़ा




प्रो सी बी श्रीवास्तव

ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये

ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये

प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर

ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये ।
शिथिलता कहीं कोई आने न पाये ।।

बड़ी ही प्रबल हैं विषय वासनायें
सदा अपने चंगुल में मन को फसाँये ।
वही बच सके जो रहे साफ निश्छल
औ प्रभु की कृपा से गये जो बचाये ।।१।।

यहाँ मोहमाया ने सबको भुलाया
न कोई समय पर कभी काम आया ।
हरेक रास्ते में है धोखे हजारों
सदा कर्म अपने ही बस काम आये ।।२।।

है दुनियाँ पुरानी मगर अजनबी है
कभी कुछ है लेकिन अलग कुछ कभी है ।
बदलती रही सदा ये अपनी चालें
करेगी ये कल फिर कोई क्या बताये ?३।।

है बस अपना खुद का औ प्रभु का सहारा
न ऐसा कोई जो कभी न हो हारा .।
थके हारे मन को मिली चेतना नई
तभी जब भी भगवान ने पथ दिखाये ।।४।।

सदा ध्यान से शुध्दता मन ने पाई
यही शुध्दता ही है सच्ची कमाई ।
सदा ज्योति बन आये भगवान आगे
कि निष्पाप मन से गये जब बुलाये ।।५।।

शुक्रवार, 9 मई 2008

प्रार्थना

प्रार्थना
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
C-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२



हे दीनबन्धु दयालु प्रभु तुम विश्व के आधार हो
तुम बिन्दु में हो सिन्धु , अणु में अपरिमित विस्तार हो ।

तुम चेतना , आलोक , ऊर्जा , गति अलख पावन परम्
तम में फँसे , माया भ्रमित , अल्पज्ञ , सीमित नाथ हम ।
निर्बल , समय की धार में असहाय बहते जा रहे
तुम कर कृपा दे हाथ अपना नाथ हमें उबार लो ।।१।। हे दीन...

आनन्द , सत् चित् , शाँत , शुभ , सत्यं , शिवं , तुम सुन्दरम्
अपने बुने ही जाल में भूले , फँसे , उलझे हैं हम
सब चाहकर भी रात दिन भ़म से सुलझ पाते नही
इस आर्त मन की दुख भरी प्रभु प्रार्थना स्वीकार हो ।।२।। हे दीन...

मिलता नही सुख चैन मन को कहीं भी संसार में
तृष्णा का माया मृग लुभाता मन को हर व्यवहार में ।
नल से निकल जल सी बही सी जा रही है जिन्दगी
इसको सहेज , सँवारने को देव अपना प्यार दो।।३।। हे दीन...