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गायत्री मंत्र का भावानुवाद
मूल संस्कृत मंत्र
ॐ भूर्भुव स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद
द्वारा ..प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध"
जो जगत को प्रभा ओ" ऐश्वर्य देता है दान
जो है आलोकित परम औ" ज्ञान से भासमान ॥
शुद्ध है विज्ञानमय है ,सबका उत्प्रेरक है जो
सब सुखो का प्रदाता , अज्ञान उन्मूलक है जो ॥
उसकी पावन भक्ति को हम , हृदय में धारण करें
प्रेम से उसके गुणो का ,रात दिन गायन करें ॥
उसका ही लें हम सहारा , उससे ये विनती करें
प्रेरणा सत्कर्म करने की ,सदा वे दें हमें ॥
बुद्धि होवे तीव्र ,मन की मूढ़ता सब दूर हो
ज्ञान के आलोक से जीवन सदा भरपूर हो ॥
शब्दार्थ ...
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
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