गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

प्रकृति को जो पूजते रहते सुखी है

प्रकृति को जो पूजते रहते सुखी है

प्रकृति ही परमात्मा है वास्तव में
जो सदा संसार में सबका सहारा
प्रकृति के सहयोग औ अनुदान से ही
सुरक्षित यह विष्व औ जीवन हमारा

प्रकृति की पूजा करो समझो प्रकृति को
प्रकृति के उपचार को मन में बसाओ
करो पर्यावरण की संभव सुरक्षा
वृक्ष जल आकाष पृथ्वी को बचाओ

प्रकृति से लो सीख प्रिय संबंध जोडो
जो सदा विपदाओं में भी मुस्कुराती
तपन जलती शीत भारी घोर वर्षा
में भी खुष रह जो सदा नव गीत गाती

जुड सके यदि हम प्रकृति परिवेष से तो
दुखी मन को भी सदा खुषिया मिलेगीं
जायेगें छट आये दिन बढते अंधेरे
सुवासित सुंदर सुखद कलियाॅं खिलेगीं

स्वर्ण किरणों संग नया होगा सवेरा
दिखेंगी हर ओर नई संभावनायें
उठेंगी उत्साह की मन में उमंगे
करवटे लेंगी नवल शुभकामनायें

तोड देती व्यक्ति को कठिनाईयाॅ जब
डराती है जिंदगी की समस्यायें
थका हारा मन दुखी हो सोचता है
किया श्रम पर क्या मिला किसको बतायें

प्रकृति ले तब गोद में गा थपकियाॅ दें
स्नेह से हर लेती सब मन की व्यथायें
इन्द्रधनुषी आंज के सपने नयन में
प्रेरणापद सुनाती मनहर कथायें।

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘

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