गुरुवार, 2 अगस्त 2012

नारी


नारी
(प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव, विदग्ध, ओ.बी. 11, रामपुर जबलपुर )

नारी के कई रूप हैं दुनियां में हमारी
माँ पत्नी बहिन देवी या फिर बेटी दुलारी

नारी को प्रकृति ने सहज जननी है बनाया
नारी में है भगवान के ही रूप की छाया
नारी में सृजन शक्ति का भंडार भरा है
सच उसकी इसी शक्ति से संसार हरा है
जग को प्रकृति का एक बड़ा उपहार है नारी
संसार के विस्तार का आधार है नारी

नारी है सजल सरिता , धरा सी उदार है
कोमल कुसुम सी , जिसके मन में गहरा प्यार है
नारी है सुगंधित समीर सी सुहावनी
संजीवनी है प्रेरणा है प्राण दायिनी
संतप्त को गंगा सी सरसधार है नारी
हर क्षोभ मनस्ताप का उपचार है नारी,
नारी के कई रूप हैं दुनियां में हमारी


छवि औ गुणो की नारी में अनमोल झलक है
जिसका सुरूप निरखने मिटती न ललक है
गृहिणी के बिना फीकी सी है होली दिवाली
घर मे जहाँ नारी नहीं वह दिखता है खाली
हर झोपड़ी या महल का श्रृगांर है नारी
हो एक भी ,  पूरा भरा परिवार है नारी,
नारी के कई रूप हैं दुनियां में हमारी


नारी है सरस्वती भी ,लक्ष्मी भी , शिवा भी
ममता की तो मूरत है मगर जलता तवा भी
नारी ही कभी दुर्गा , है वह ही कभी काली
अरिमर्दिनी कभी , कभी फुफकारती व्याली
जिससे  कि इस संसार की हर शक्ति है हारी
चपला सी चपल कौधंती तलवार भी नारी
नारी के कई रूप हैं , दुनियां में हमारी

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