देवी गीत ...
नव रात्री पर्व सारे देश में नौ दस दिनों तक देवी पूजन , भक्तिभाव पूर्ण गायन , उपवास , बड़े बड़े पंडालों की स्थापना , और गरबा के आयोजन कर मनाया जाता है . देवी गीतों का प्रचार सब तरफ बढ़ गया है . पावन पर्व में गीत संगीत से पवित्र भअवना का प्रादुर्भाव और प्रसार बड़ा सुखद व मन भावन होता है . इसी दृष्टि से हर वर्ष नवरात्रि से पहले नये नये देवीगीत , जस , नौराता , के कैसेट्स बाजार में आ जाते हैं . दूर दूर गाँव ,शहरों में उत्सव समितियां ये कैसेट्स अनवरत बजाकर एक भाव भक्ति का वातावरण बना देती हैं . अब तो नवरात्रि के अनुकूल एस एम एस , रिंगटोन , वालपेपर आदि की भी मार्केटिंग हो रही है . बाजार की इस बेहिसाब माँग के चलते अनेक सस्तुआ शब्दों हल्के मनोरंजन वाले विकृत मानसिकता के देवी गीत भी विगत में सुनने को मिले . इनसे मन कोपीड़ा होती है , यह सांस्कृतिक पराभव ठीक नहीं है .
सुरुचिपूर्ण भक्ति , व देवी उपासना के लिये गीत संगीत ऐसा होना चाहिये जो श्रद्धा , विश्वास, सद्भाव , समर्पण तथा भक्ति को बढ़ावा दे .
इसी उद्देश्य से मैंने कुछ भावपूर्ण , सुन्दर , व सार्थक शब्दमय देवी गीतों की रचना की है . जो भी गायक , सी.डी. निर्माता , भक्त , धार्मिक संस्थायें चाहे वे इन सोद्देश्य गीतों को मुझसे निशुल्क जनहित में प्राप्त कर उन्हें प्चारित करने हेतु कैसेट , सीडी बनवा सकते हैं . चाहें तो संपर्क करें .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
प्रकाशित किताबें ...ईशाराधन ,वतन को नमन, अनुगुंजन, नैतिक कथाये, आदर्श भाषण कला, कर्म भूमि के लिये बलिदान,जनसेवा, अंधा और लंगड़ा ,मुक्तक संग्रह,मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद ,रघुवंशम् पद्यानुवाद,समाजोपयोगी उत्पादक कार्य ,शिक्षण में नवाचार
शनिवार, 27 सितंबर 2008
सोमवार, 22 सितंबर 2008
देश सेवा में मन है तो उसके लिये
नेताओं से....................
by ..Prof.C.B.Shrivastava
C/6 , MPSEB Colony , Rampur ,JABALPUR (MP
mob. 09229118812)
देश सेवा परम उच्च आदर्श है
लोगों ने जानें तक दी हैं इसके लिये।
सोचिये आज क्या कर रहे आप हैं
यह उठापटक है सारी किसके लिये ?
देश सेवा में मन है तो उसके लिये
किसी कुर्सी या पद की जरूरत नहीं।
सैकड़ों काम दुनियॉं में सेवा के हैं
जो करें कुछ तो जीवन में फुरसत नहीं ।।
सिर्फ संकल्प के सिवा कुछ भी नहीं
सेवा करने को केवल लगन चाहिये।
अपने मन से भला पूछिये तो जरा
हैं ये कसरत-कवायत भला किसलिये ? ।।1।।
आज इस दल में है, कल किसी और में,
फिर किसी और में फिर किसी और में।
शांति मन की गंवा यों भटक क्यों रहे
भला हासिल क्या यों मन की झकझोर में ।।
है दलों में विचारों की जो भिन्नता
तो चुनावों में कुर्सी का कठजोड़ क्यो ?
देष भी है वहीं और जनता वहीं
लक्ष्य सेवा है तो दलबदल किसलिये ? ।।2।।
व्रत है सेवा का जो, धन का क्यों मोह तो,
क्यों ये सारे हवाले-घोटाले हुये ?
खेले जाते हैं क्यों, कुर्सी के वास्ते
पर्दे के पीछे आवागमन के जुये ?
मोह से जागिये, स्वार्थ को त्यागिये
खुदको भी धोखा देना मुनासिब नहीं
जीतना सारी जनता का मन है उचित
अपनी छबि साफ सुथरी रखें इसलिए ।।3।।
प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव `विदग्ध´
शुक्रवार, 12 सितंबर 2008
हिन्दी दिवस पर.............
हिन्दी और हिन्दी दिवस
प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
सी.६ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
कहते सब हिन्दी है बिन्दी भारत के भाल की
सरल राष्ट्र भाषा है अपने भारत देश विशाल की
किन्तु खेद है अब तक दिखती नासमझी सरकार की
हिन्दी है आकांक्षी अब भी संवैधानिक अधिकार की !!
सिंहासन पर पदारूढ़ है पर फिर भी वनवास है
महारानी के राजमहल में दासी का वास है
हिन्दी रानी पर प्रशासनिक अंग्रेजी का राज है
हिन्दी के सिर जो चाहिये वह अंग्रेजी के ताज है
इससे नई पीढ़ी में दिखता अंग्रेजी का शोर है
शिक्षण का माध्यम बन बैठी अंग्रेजी सब ओर है
अंग्रेजी का अपने ढ़ंग का ऐसा हुआ पसारा है
बिन सोचे समझे लोगो ने सहज उसे स्वीकारा है
सरल नियम है शासन करता जिसका भी सम्मान है
हर समाज में स्वतः उसी का होने लगता मान है
ग्रामीणों की बोली तक में अब उसकी घुसपैठ है
बाजारों , व्यवहारों में, हर घर में, उसकी ऐठ है
हिन्दी वाक्यों में भी हावी अंग्रेजी के शब्द हैं
जबकि समानार्थी उन सबके हिन्दी में उपलब्ध हैं
गलत सलत बोली जाती अंग्रेजी झूठी शान से
जो बिगाड़ती है संस्कृति को भाषा के सम्मान को
साठ साल की आयु अपनी हिन्दी ने यूँ ही काटी है
हिन्दी दिवस मुझे तो लगता अब केवल परिपाटी है
कल स्वरूप होगा हिन्दी का प्रखर समझ में आता है
अंग्रेजी का भारत के बस दो ही प्रतिशत से नाता है
हिन्दी का विस्तार हो रहा भारी आज विदेशों में
जो बोली औ॔ समझी जाती सभी सही परिवेशों में
बढ़ती जाती रुचि दुनियाँ की हिन्दी के सम्मान में
किन्तु उचित व्यवहार न देखा जाता हिन्दुस्तान में
अच्छा हो शासन समाज समझे अपने व्यवहार को
ना समझी से नष्ट करे न भारतीय संस्कार को
हिन्दी निश्चित अपने ही बल आगे बढ़ती जायेगी
भारत भर की नहीं विश्व की शुभ बिन्दी बन जायेगी
Prof. C. B. Shrivastava "vidagdha"
प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
सी.६ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
कहते सब हिन्दी है बिन्दी भारत के भाल की
सरल राष्ट्र भाषा है अपने भारत देश विशाल की
किन्तु खेद है अब तक दिखती नासमझी सरकार की
हिन्दी है आकांक्षी अब भी संवैधानिक अधिकार की !!
सिंहासन पर पदारूढ़ है पर फिर भी वनवास है
महारानी के राजमहल में दासी का वास है
हिन्दी रानी पर प्रशासनिक अंग्रेजी का राज है
हिन्दी के सिर जो चाहिये वह अंग्रेजी के ताज है
इससे नई पीढ़ी में दिखता अंग्रेजी का शोर है
शिक्षण का माध्यम बन बैठी अंग्रेजी सब ओर है
अंग्रेजी का अपने ढ़ंग का ऐसा हुआ पसारा है
बिन सोचे समझे लोगो ने सहज उसे स्वीकारा है
सरल नियम है शासन करता जिसका भी सम्मान है
हर समाज में स्वतः उसी का होने लगता मान है
ग्रामीणों की बोली तक में अब उसकी घुसपैठ है
बाजारों , व्यवहारों में, हर घर में, उसकी ऐठ है
हिन्दी वाक्यों में भी हावी अंग्रेजी के शब्द हैं
जबकि समानार्थी उन सबके हिन्दी में उपलब्ध हैं
गलत सलत बोली जाती अंग्रेजी झूठी शान से
जो बिगाड़ती है संस्कृति को भाषा के सम्मान को
साठ साल की आयु अपनी हिन्दी ने यूँ ही काटी है
हिन्दी दिवस मुझे तो लगता अब केवल परिपाटी है
कल स्वरूप होगा हिन्दी का प्रखर समझ में आता है
अंग्रेजी का भारत के बस दो ही प्रतिशत से नाता है
हिन्दी का विस्तार हो रहा भारी आज विदेशों में
जो बोली औ॔ समझी जाती सभी सही परिवेशों में
बढ़ती जाती रुचि दुनियाँ की हिन्दी के सम्मान में
किन्तु उचित व्यवहार न देखा जाता हिन्दुस्तान में
अच्छा हो शासन समाज समझे अपने व्यवहार को
ना समझी से नष्ट करे न भारतीय संस्कार को
हिन्दी निश्चित अपने ही बल आगे बढ़ती जायेगी
भारत भर की नहीं विश्व की शुभ बिन्दी बन जायेगी
Prof. C. B. Shrivastava "vidagdha"
सोमवार, 25 अगस्त 2008
बुधवार, 23 जुलाई 2008
बदल डालो उसे , बह रही हवा जो .................
बदल डालो उसे , बह रही हवा जो .................
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
देश ने तो तरक्की बहुत की मगर , देश निष्ठा हुई आज बीमार है
बोलबाला है अपराध का हर जगह , जहाँ देखो वहीं कुछ अनाचार है
नीति नियमों को हैं भूल बैठे सभी , मूलतः जिनके हाथों में अधिकार हैं
नहीं जनहित का जिनको कोई ख्याल है , ऐसे लोगों की ही भरमार है
सोच उथला है , धनलाभ की वृत्ति है , दृष्टि ओछी , नहीं दूरदर्शी नयन
कुर्सियाँ लोभ के हैं भँवर जाल में , दूर उनसे बहुत अब सदाचार है
नियम और कायदे सिर्फ कहने को हैं , हर दुखी दर्द सहने को लाचार है
योजनायें अनेकों हैं कल्याण हित , किंतु जनता का बहुधा तिरस्कार है
सारे आदर्श तप त्याग गुम हो गये , बढ़ गया बेतरह अनीतिकरण
दलालों का चलन है , सही काम कोई चाह के भी न कर पाती सरकार है
देश कल कारखानों से बनते नही , देश बनते हैं श्रम और सदाचार से
देश के नागरिको की प्रतिष्ठा , चलन , समझ श्रम , गुण तथा उनके आचार से
है जरूरी कि अनुभव से लें सीख सब , सुधारे आचरण और वातावरण
सचाई , न्याय ,कर्तव्य की लें शरण , देश से अपने जो तनिक प्यार है
बदलने होंगे व्यवहार सबको हमें , अपने सुख के लिये देश हित के लिये
जहाँ भी है आज तक अंधेरा घना , जलाने होंगे उन झोपड़ियों में दिये
देश में आज जो सब तरफ हो रहा देख उसको जरूरी है नव जागरण
क्योंकि जो पीढ़ियाँ आने वाली हैं कल उनको भी सुख से जीने का अधिकार है
जो सरल शांत सच्चे हैं वे लुट रहे , सब लुटेरों के हाथो में व्यापार है
देश हित जिन शहीदों ने दी जान थी क्या यही उनकी श्रद्धा का उपहार है ?
है कसम देश की सब उठो बंधुओं ! बदल डालो उसे बह रही जो हवा
बढ़े नैतिक पतन हित हरेक नागरिक और नेता बराबर गुनहगार है .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
देश ने तो तरक्की बहुत की मगर , देश निष्ठा हुई आज बीमार है
बोलबाला है अपराध का हर जगह , जहाँ देखो वहीं कुछ अनाचार है
नीति नियमों को हैं भूल बैठे सभी , मूलतः जिनके हाथों में अधिकार हैं
नहीं जनहित का जिनको कोई ख्याल है , ऐसे लोगों की ही भरमार है
सोच उथला है , धनलाभ की वृत्ति है , दृष्टि ओछी , नहीं दूरदर्शी नयन
कुर्सियाँ लोभ के हैं भँवर जाल में , दूर उनसे बहुत अब सदाचार है
नियम और कायदे सिर्फ कहने को हैं , हर दुखी दर्द सहने को लाचार है
योजनायें अनेकों हैं कल्याण हित , किंतु जनता का बहुधा तिरस्कार है
सारे आदर्श तप त्याग गुम हो गये , बढ़ गया बेतरह अनीतिकरण
दलालों का चलन है , सही काम कोई चाह के भी न कर पाती सरकार है
देश कल कारखानों से बनते नही , देश बनते हैं श्रम और सदाचार से
देश के नागरिको की प्रतिष्ठा , चलन , समझ श्रम , गुण तथा उनके आचार से
है जरूरी कि अनुभव से लें सीख सब , सुधारे आचरण और वातावरण
सचाई , न्याय ,कर्तव्य की लें शरण , देश से अपने जो तनिक प्यार है
बदलने होंगे व्यवहार सबको हमें , अपने सुख के लिये देश हित के लिये
जहाँ भी है आज तक अंधेरा घना , जलाने होंगे उन झोपड़ियों में दिये
देश में आज जो सब तरफ हो रहा देख उसको जरूरी है नव जागरण
क्योंकि जो पीढ़ियाँ आने वाली हैं कल उनको भी सुख से जीने का अधिकार है
जो सरल शांत सच्चे हैं वे लुट रहे , सब लुटेरों के हाथो में व्यापार है
देश हित जिन शहीदों ने दी जान थी क्या यही उनकी श्रद्धा का उपहार है ?
है कसम देश की सब उठो बंधुओं ! बदल डालो उसे बह रही जो हवा
बढ़े नैतिक पतन हित हरेक नागरिक और नेता बराबर गुनहगार है .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
रविवार, 18 मई 2008
जयपुर बम विस्फोट पर
जयपुर बम विस्फोट पर
प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर
बह चुका आंसानियत का खून कई बाजार में
कोसते हैं लोग सब अब तुम्हें इस संसार में
सिरफिरों ! आतंकवादी ! आदमियत के दुश्मनों
आदमियत को भी तो समझो लौट फिर इंसा बनो
निरपराधों की निरर्थक ले रहे तुम जान क्यों
नासमझदारी पै अपनी है तुम्हें अभिमान क्यों
आये दिन चाहे जहाँ पर लगाते तुम आग हो
जला के रख देगी वह ही तुम्हारे ही बाग को
खून का औ आग का ये खेल है अच्छा नहीं
तुम्हारा ये जुनुं कल कर सकेगा रक्षा नहीं
आदमी हो ये नहीं है आदमी का आचरण
कुत्तों सा होता है जग में दुष्टों का जीवन मरण
जाति के भाषा के या फिर धर्म के उन्माद में
जो भी उलझे जग को उनने ही किया बरबाद है
किये तो विस्फोट इतने पर तुम्हें है क्या मिला
बद्दुआयें लेने सबकी कब रुकेगा सिलसिला
मिटा के औरों के घर परिवार उनकी जिंदगी
कर रहे हो तुम समझते हो खुदा की बन्दगी
तो ये जानो हर तरह से ये तुम्हारी भूल है
बोता जो जैसा वही मिलता उसे ये उसूल है
कुछ न हासिल होगा खुद के किये पै पछताओगे
कमाने को पुण्य निकले पाप में मिट जाओगे
राख हो जाओगे जलकर जुल्म की इस राह में
गलाने की शक्ति होती त्रस्त की हर आह में
जहाँ जन्में पले विकसे और सब कुछ पा रहे
उसी अपने देश और समाज को क्यों खा रहे
सही सोच विचार अब भी दिला सकता यश बड़ा
ज्योंकि अब्दुल हमीद को सम्मान पदक सुयश जड़ा
प्रो सी बी श्रीवास्तव
प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर
बह चुका आंसानियत का खून कई बाजार में
कोसते हैं लोग सब अब तुम्हें इस संसार में
सिरफिरों ! आतंकवादी ! आदमियत के दुश्मनों
आदमियत को भी तो समझो लौट फिर इंसा बनो
निरपराधों की निरर्थक ले रहे तुम जान क्यों
नासमझदारी पै अपनी है तुम्हें अभिमान क्यों
आये दिन चाहे जहाँ पर लगाते तुम आग हो
जला के रख देगी वह ही तुम्हारे ही बाग को
खून का औ आग का ये खेल है अच्छा नहीं
तुम्हारा ये जुनुं कल कर सकेगा रक्षा नहीं
आदमी हो ये नहीं है आदमी का आचरण
कुत्तों सा होता है जग में दुष्टों का जीवन मरण
जाति के भाषा के या फिर धर्म के उन्माद में
जो भी उलझे जग को उनने ही किया बरबाद है
किये तो विस्फोट इतने पर तुम्हें है क्या मिला
बद्दुआयें लेने सबकी कब रुकेगा सिलसिला
मिटा के औरों के घर परिवार उनकी जिंदगी
कर रहे हो तुम समझते हो खुदा की बन्दगी
तो ये जानो हर तरह से ये तुम्हारी भूल है
बोता जो जैसा वही मिलता उसे ये उसूल है
कुछ न हासिल होगा खुद के किये पै पछताओगे
कमाने को पुण्य निकले पाप में मिट जाओगे
राख हो जाओगे जलकर जुल्म की इस राह में
गलाने की शक्ति होती त्रस्त की हर आह में
जहाँ जन्में पले विकसे और सब कुछ पा रहे
उसी अपने देश और समाज को क्यों खा रहे
सही सोच विचार अब भी दिला सकता यश बड़ा
ज्योंकि अब्दुल हमीद को सम्मान पदक सुयश जड़ा
प्रो सी बी श्रीवास्तव
ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये
ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये
प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर
ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये ।
शिथिलता कहीं कोई आने न पाये ।।
बड़ी ही प्रबल हैं विषय वासनायें
सदा अपने चंगुल में मन को फसाँये ।
वही बच सके जो रहे साफ निश्छल
औ प्रभु की कृपा से गये जो बचाये ।।१।।
यहाँ मोहमाया ने सबको भुलाया
न कोई समय पर कभी काम आया ।
हरेक रास्ते में है धोखे हजारों
सदा कर्म अपने ही बस काम आये ।।२।।
है दुनियाँ पुरानी मगर अजनबी है
कभी कुछ है लेकिन अलग कुछ कभी है ।
बदलती रही सदा ये अपनी चालें
करेगी ये कल फिर कोई क्या बताये ?३।।
है बस अपना खुद का औ प्रभु का सहारा
न ऐसा कोई जो कभी न हो हारा .।
थके हारे मन को मिली चेतना नई
तभी जब भी भगवान ने पथ दिखाये ।।४।।
सदा ध्यान से शुध्दता मन ने पाई
यही शुध्दता ही है सच्ची कमाई ।
सदा ज्योति बन आये भगवान आगे
कि निष्पाप मन से गये जब बुलाये ।।५।।
प्रो सी बी श्रीवास्तव
सी ६ विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर
ये मन ध्यान प्रभु का भुलाने न पाये ।
शिथिलता कहीं कोई आने न पाये ।।
बड़ी ही प्रबल हैं विषय वासनायें
सदा अपने चंगुल में मन को फसाँये ।
वही बच सके जो रहे साफ निश्छल
औ प्रभु की कृपा से गये जो बचाये ।।१।।
यहाँ मोहमाया ने सबको भुलाया
न कोई समय पर कभी काम आया ।
हरेक रास्ते में है धोखे हजारों
सदा कर्म अपने ही बस काम आये ।।२।।
है दुनियाँ पुरानी मगर अजनबी है
कभी कुछ है लेकिन अलग कुछ कभी है ।
बदलती रही सदा ये अपनी चालें
करेगी ये कल फिर कोई क्या बताये ?३।।
है बस अपना खुद का औ प्रभु का सहारा
न ऐसा कोई जो कभी न हो हारा .।
थके हारे मन को मिली चेतना नई
तभी जब भी भगवान ने पथ दिखाये ।।४।।
सदा ध्यान से शुध्दता मन ने पाई
यही शुध्दता ही है सच्ची कमाई ।
सदा ज्योति बन आये भगवान आगे
कि निष्पाप मन से गये जब बुलाये ।।५।।
शुक्रवार, 9 मई 2008
प्रार्थना
प्रार्थना
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
C-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
हे दीनबन्धु दयालु प्रभु तुम विश्व के आधार हो
तुम बिन्दु में हो सिन्धु , अणु में अपरिमित विस्तार हो ।
तुम चेतना , आलोक , ऊर्जा , गति अलख पावन परम्
तम में फँसे , माया भ्रमित , अल्पज्ञ , सीमित नाथ हम ।
निर्बल , समय की धार में असहाय बहते जा रहे
तुम कर कृपा दे हाथ अपना नाथ हमें उबार लो ।।१।। हे दीन...
आनन्द , सत् चित् , शाँत , शुभ , सत्यं , शिवं , तुम सुन्दरम्
अपने बुने ही जाल में भूले , फँसे , उलझे हैं हम
सब चाहकर भी रात दिन भ़म से सुलझ पाते नही
इस आर्त मन की दुख भरी प्रभु प्रार्थना स्वीकार हो ।।२।। हे दीन...
मिलता नही सुख चैन मन को कहीं भी संसार में
तृष्णा का माया मृग लुभाता मन को हर व्यवहार में ।
नल से निकल जल सी बही सी जा रही है जिन्दगी
इसको सहेज , सँवारने को देव अपना प्यार दो।।३।। हे दीन...
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
C-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
हे दीनबन्धु दयालु प्रभु तुम विश्व के आधार हो
तुम बिन्दु में हो सिन्धु , अणु में अपरिमित विस्तार हो ।
तुम चेतना , आलोक , ऊर्जा , गति अलख पावन परम्
तम में फँसे , माया भ्रमित , अल्पज्ञ , सीमित नाथ हम ।
निर्बल , समय की धार में असहाय बहते जा रहे
तुम कर कृपा दे हाथ अपना नाथ हमें उबार लो ।।१।। हे दीन...
आनन्द , सत् चित् , शाँत , शुभ , सत्यं , शिवं , तुम सुन्दरम्
अपने बुने ही जाल में भूले , फँसे , उलझे हैं हम
सब चाहकर भी रात दिन भ़म से सुलझ पाते नही
इस आर्त मन की दुख भरी प्रभु प्रार्थना स्वीकार हो ।।२।। हे दीन...
मिलता नही सुख चैन मन को कहीं भी संसार में
तृष्णा का माया मृग लुभाता मन को हर व्यवहार में ।
नल से निकल जल सी बही सी जा रही है जिन्दगी
इसको सहेज , सँवारने को देव अपना प्यार दो।।३।। हे दीन...
बुधवार, 5 मार्च 2008
गुरुवार, 3 जनवरी 2008
सिर्फ बातें व्यर्थ हैं कुछ काम होना चाहिये
सिर्फ बातें व्यर्थ हैं कुछ काम होना चाहिये
प्रो. सी.बी.श्रीवास्तव
सेवा निवृत प्राध्यापक
वर्तमान पता
c-6, mpseb colony, rampur Jabalpur ,पिन ४८२००८
फोन ०७६१ २७०२०८१
मोबा. ९४२५४८४४५२ email vivek1959@yahoo.co.in
सिर्फ बातें व्यर्थ हैं कुछ काम होना चाहिये
हर हृदय की शांति सुख आराम होना चाहिये
बातें तो होती बहुत पर काम हो पाते हैं कम
बातों में विश्वास कअ पेगअम होना चाहिये
उड़ती बातों औ॔ दिखावों से भला क्या फायदा
कअम हों जिनके सुखद परिणाम होनअ चाहिये
हवा के झोंकों से आके सोच यदि जावे बिखर
तो सजाने कअ उन्हें व्यायाम होना चाहिये
लोगों की नजरों में बसते स्वप्न हैं समृद्धि के
पाने नई उपलब्धि नित संग्राम होना चाहिये
पारदर्शी यत्न ऐसे हों जिन्हें सब देख लें
सफलता जो मिले उसका नाम होना चाहिये
सकारात्मक भावना भरती है हर मन में खुशी
सबके मन का आनन्द सुख का धाम होना चाहिये
आसुरी दुष्वृत्तियों के सामयिक उच्छेद को
साथ शाश्वत सजग तत्पर राम होना चाहिये !!
प्रो. सी.बी.श्रीवास्तव
सेवा निवृत प्राध्यापक
वर्तमान पता
c-6, mpseb colony, rampur Jabalpur ,पिन ४८२००८
फोन ०७६१ २७०२०८१
मोबा. ९४२५४८४४५२ email vivek1959@yahoo.co.in
सिर्फ बातें व्यर्थ हैं कुछ काम होना चाहिये
हर हृदय की शांति सुख आराम होना चाहिये
बातें तो होती बहुत पर काम हो पाते हैं कम
बातों में विश्वास कअ पेगअम होना चाहिये
उड़ती बातों औ॔ दिखावों से भला क्या फायदा
कअम हों जिनके सुखद परिणाम होनअ चाहिये
हवा के झोंकों से आके सोच यदि जावे बिखर
तो सजाने कअ उन्हें व्यायाम होना चाहिये
लोगों की नजरों में बसते स्वप्न हैं समृद्धि के
पाने नई उपलब्धि नित संग्राम होना चाहिये
पारदर्शी यत्न ऐसे हों जिन्हें सब देख लें
सफलता जो मिले उसका नाम होना चाहिये
सकारात्मक भावना भरती है हर मन में खुशी
सबके मन का आनन्द सुख का धाम होना चाहिये
आसुरी दुष्वृत्तियों के सामयिक उच्छेद को
साथ शाश्वत सजग तत्पर राम होना चाहिये !!
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