सोमवार, 27 दिसंबर 2010

एक वर्ष लो बीत गया कल , नया वर्ष फिर से है आया

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा ....

प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
ओबी११, विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२

एक वर्ष लो बीत गया कल , नया वर्ष फिर से है आया
सुख सद्भाव शांति का मौसम , फिर भी अब तक लौट न पाया

नये वर्ष संग सपने जागे , गये संग सिमटी आशायें
दुनियां ने दिन कैसे काटे , कहो तुम्हें क्या क्या बतलायें

सदियां बीत गयी दुनियां की , नवीनता से प्रीति लगाये
हर नवनीता के स्वागत में ,नयनों ने नित पलक बिछाये

सुख की धूप मिली बस दो क्षण , अक्सर घिरी दुखों की छाया
पर मानव मन निज स्वभाव वश , आशा में रहता भरमाया

आकर्षक पंछी से नभ से , गाते नये वर्ष हैं आते
देकर सीमित साथ समय भर , भरमा कर सबको उड़ जाते

अच्छी लगती है नवनीता , क्योकि चाहता मन परिवर्तन
परिवर्तन प्राकृतिक नियम में , भरा हुआ अनुपम आकर्षण

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा , तुमसे हैं सबको आशायें
नये दिनों नई आभा फैला , हरो विश्व की सब विपदायें

मानवता बीमार बहुत है , टूट रहे ममता के धागे
करो वही उपचार कि जिससे , स्वास्थ्य बढ़े शुभ करुणा जागे

सदा आपसी ममता से मन , रहे प्रेम भावित गरमाया
आतंकी अंधियार नष्ट हो , जग को इष्ट मिले मन भाया

मन हो आस्था की उर्जा , सज पाये संसार सुहाना
प्रेम विनय सद्भाव गान हो , भेदभाव हो राग पुराना

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा


प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

शांति दे माँ नर्मदे !

शांति दे माँ नर्मदे !
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध"

मो ९४२५४८४४५२

सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे
सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे
सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते
कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे !


हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से
जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से
सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से
जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से


पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से
काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से
तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से
संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से

तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के
जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के
वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी
सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी

हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से
यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से
पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है
माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है

सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी
प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी
पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से
पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से

हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती
संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती
तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे
शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे

तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा
जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा
सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे
कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

नारी

नारी
प्रो
. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी
, रामपुर , जबलपुर
मो
. ०९४२५४८४४५२


नव सृजन की संवृद्धि की एक शक्ति है नारी
परमात्मा औ
" प्रकृति की अभिव्यक्ति है नारी
परिवार की है प्रेरणा
, जीवन का उत्स है
है प्रीति की प्रतिमूर्ति सहन शक्ति है नारी

ममता है माँ की
, साधना, श्रद्धा का रूप है
लक्ष्मी
, कभी सरस्वती , दुर्गा अनूप है
कोमल है फूल सी
, कड़ी चट्टान सी भी है
आवेश
, स्नेह , भावना ,अनुरक्ति है नारी सहधर्मिणी
, सहकर्मिणी सहगामिनी भी है
है कामना भी
, कामिनी भी , स्वामिनी भी है
संस्कृति का है आधार
, हृदय की पुकार है
सावन की सी फुहार है
, आसक्ति है नारी नारी से ही संसार ये
, संसार बना है
जीवन में रस औ
" रंग का आधार बना है
नारी हे धरा
, चाँदनी अभिसार प्यार भी
पर वस्तु नही एक पूर्ण व्यक्ति है नारी

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

गज़ल

गज़ल

हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं

सच आज की दुनियां के अंदाज निराले हैं
हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं
धोखा दगा रिष्वत का यों बढ़ गया चलन है
देखो जहाॅं भी दिखते बस घपले घोटाले हैं
पद ज्ञान प्रतिष्ठा ने तज दी सभी मर्यादा
धन कमाने के सबने नये ढंग निकाले हैं
शोहरत औं‘ दिखावों की यों होड लग गई हैं
नजरों में सबकी होटल पब सुरा के प्याले हैं
महिलायें तंग ओछे कपड़े पहन के खुष हैं
आॅंखंे झुका लेते वे जो देखने वाले हैं
शालीनता सदा से श्रंृगार थी नारी की
उसकी नई फैषन ने दीवाले निकाले हैं
व्यवहार में बेईमानी का रंग चढ़ा ऐसा
रहे मन के साफ थोडे मन के अधिक काले हैं
अच्छे भलों का सहसा चलना बडा मुष्किल है
हर राह भीड़ बेढब बढ़े पाॅव में छाले है
जो हो रहा उससे तो न जाने क्या हो जाता
पर पुण्य पुराने हैं जो सबको सम्भाले है
आतंकवाद नाहक जग को सता रहा है
कहीं आग की लपटें हैं कहीं खून के नाले हैं
हर दिन ये सारी दुनियाॅं हिचकोले खा रही हैं
पर सब ‘विदग्ध‘ डरकर ईष्वर के हवाले हैं

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

भारतमाता शांतिदायिनी!

भारतमाता

भारतमाता शांतिदायिनी!

सघन हरित अभिराम वनांचल
पावन नदियाॅ ज्यों गंगाजल
विविध अन्न फल फूल समृद्धा
जनहितकारी सुख विधायिनी
आन्नद मूला मधुर भाषिणी
भारतमाता शांतिदायिनी

मर्यादित शालीन सुहानी
बहुभाषा भाषी कल्याणी
मुदित आनना, निष्चल हृदया
पंपरागत ग्राम वासिनी
स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी
भारतमाता शांतिदायिनी

सरल सहज शुभ सात्विक रूपा
शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा
अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक
अखिल विष्व समता प्रसारिणी
निर्मल प्रेम भाव धारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी

भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री
आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री
मलय पवन सुरभित शुभ आंचल
मृदुला नवजीवन प्रदायिनी
धर्म प्राण संताप हारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी