होली के मुक्तक
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र.
गांव गली , घर द्वार रंगे , वन बाग रंगे , सब लोग रंगाये
रंग तरंग में भींग गये तन , डूब गये मन प्रेम बसाये
भाल औ" गाल गुलाल से लाल , औ" नयनों में रंग के बादल छाये
होली की भोली ठिठोली में रोली उड़ी , हर द्वार पै फागुन आये
आया बसंत प्रीति होली मिलने चली
मादक बयार मोहती हँसती कली कली
चिड़ियां चहक रही हैं मचलती हैं तितलियां
भौंरे भी गुनगुना रहे फिरते गली गली
मन में उठी उमंग है , तन में तरंग है
मौसम की खुश हवा , का जमाने पै रंग है
निकले हैं सब खुमार में मिलने जहाँ तहाँ
मन मन से मिल रहे हैं ये ऐसा प्रसंग है
होली के रंग संग ,ले बादल गुलाल के
सपने हजार रेशमी नैनो में पाल के
आये हैं ले के नेह की मुस्कान नशीली
जायेंगे तुम से मिलके चटक रंग डाल के
डोरे रंगीली प्रीति के, आंखों में डाल के
आना पड़ेगा सामने ,खुद को संभाल के
मौसम की बात मान के, अपने लिये हुजूर
जाओगे कहाँ बच के , मोहब्बत को टाल के
1 टिप्पणी:
होली की बधाई स्वीकारें..
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