गुरुवार, 31 मार्च 2011

"भारतवर्ष आश्चार्यकारी , आध्यात्मिक देश है , वहाँ के निवासी वीर और सत्यवादी हैं , यदि तुम कभी वहाँ जाओ तो वहाँ के किसी संत से जरूर मिलना

चिंतन



द्वारा प्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर


यूनान का बादशाह सिकंदर बड़ा महत्वाकांक्षी था . वह समस्त संसार को जीतकर विश्वविजेता बनना चाहता था . इसी महत्वाकांक्षा को लेकर वह अपने देश से निकला . मार्ग में अनेको देशो को जीतता हुआ वह भारत में आया . उसने पंचनद प्रदेश में युद्ध कर उसे जीत लिया और अपनी सेना को आदेश दिया कि पराजित राजा पुरु को बंदी बनाकर उसके सम्मुख लाया जावे . राजा पुरु को सिकंदर के सामने लाया गया . सिकंदर ने पुरु से पूछा , " तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जावे ? " पुरु ने निर्भीक स्वर में उत्तर दिया , " वैसा ही जैसा एक राजा को दूसरे राजा के साथ करना चाहिये ". पुरु के निर्भीक उत्तर ने सिकंदर को बहुत प्रभावित किया .उसने पुरू का समस्त राज्य उसे वापस कर दिया तथा पुरु की वीरता एवं निर्भीकता की सराहना भी की . सिकंदर को अपने गुरू अरस्तु का उपदेश याद हो आया गुरू ने कहा था कि "भारतवर्ष आश्चार्यकारी , आध्यात्मिक देश है , वहाँ के निवासी वीर और सत्यवादी हैं , यदि तुम कभी वहाँ जाओ तो वहाँ के किसी संत से जरूर मिलना जो प्रायः सारा जीवन चिंतन मनन और ईश्वर की भक्ति में बस्ती से दूर किसी नदी किनारे एकांत में बिताते हैं .

सिकन्दर ने विजय तो पा ली थी पर उसकी सेना भारत के गरम मौसम से उब गई थी और वापस स्वदेश लौट जाना चाहती थी ,ऐसी परिस्थिति में सिकंदर वापस लौट जाने को विवश हो गया . वापस लौटने से पहले वह अपने गुरू अरस्तु के आदेश के अनुरूप भारत के किसी संत , फकीर या आध्यात्मिक महापुरुष से मिलना चाहता था . एक ऐसे ही संत का परिचय पाकर वह उनसे मिलने गया . संत अपनी कुटिया में शांत भाव से ध्यान मग्न थे . सामने पहुंचकर सिकंदर ने कहा " मैं विश्वविजय पर निकला सिकंदर महान हूं . " यहां भारत को जीता है , आपको प्रणाम है . साधु महात्मा ने कोई उत्तर नही दिया . सिकंदर ने पुनः अभिमान से उन्हें नमस्कार कहा , किन्तु साधु की कोई प्रतिक्रया न पाकर सिकंदर गुस्से से स्वयं को फिर महान बताते हुये संत को अपमानित व तिरस्कृत करते हुये चिल्लाया " तू कैसा संत है ? कुछ बोलता ही नही ! "

यह सुनकर संत ने शांत स्वर में कहा " क्या बोलूं ? सुन रहा हूं कि तू स्वयं को महान और विश्वविजेता बता रहा है . मेरी दृष्टि में तो तू वैसा ही मालूम होता है जैसे कोई पागल कुत्ता ,जो अनायास भौकता है और दूसरे निर्दोष प्राणियो पर हमला करके उन्हें अकारण ही नुकसान पहुंचाता है या मार डालता है . तूने अनेको देशो के निर्दोष लोगो को बिनावजह मार डाला है , देशो को उजाड़ दिया है , बच्चो और स्त्रियो को बेसहारा करके उन्हें रोने बिलखने के लिये छोड़ कर भारी अपराध किया है . जो अकारण दूसरो के प्राण लेता है वह विजेता कैसे ? वह तो ईश्वर की दृष्टि में अपराधी है , मूर्ख है . हम तो उसे विजेता मानते हैं जो स्वयं अपने मन पर विजय पा लेता है . मन की बुराईयों को जीतता है , दूसरो के दुख दर्द मिटाकर उन्हें प्रसन्न रखने के लिये संकल्प कर सदा भलाई के कार्य करता है . महान विजेता वह होता है जो औरो पर नही स्वयं अपने आप पर विजय पा लेता है . बुरे काम करना छोड़कर सदाचारी व परहितकारी जीवन जीता है . ऐसा ही व्यक्ति ईश्वर को भी प्रिय होता है . अत्याचारी को कोई पसंद नही करता . सिकंदर संत की वाणी से जैसे सोते से जाग गया , और आत्म निरीक्षण में लगकर स्वतः को ईश्वर का अपराधी समझकर अपने व्यवहार में सुधार करने के विचार करने लगा .

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