राम सेतु ध्वँस परियोजना सेतुसमुद्रम पर !
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
C-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
भारत सुन्दर देश है मन मोहक परिवेश !
कण कण इसका दे रहा आध्यात्मिक सँदेश !
अनुपम है सँसार मेँ इसका रूप विधान !
देव भूमि विख्यात यह मानव का वरदान !
सभी दिशाओँ का इसे सहज प्राप्त प्रतिसाद !
वायु गगन जल यँहाँ के हरते सकल विषाद !
हिम गिरि देता जल इसे उदधि विमल वातास !
ॠषि मेधाओँ ने रचा है इसका इतिहास !
सँतोषी हैँ नागरिक कर्मठ यहाँ किसान !
सबके मन की भावना जीवन का कल्याण !
रहे मित्र इसके सदा सभी पडोसी देश !
पहुँचाता जिन तक रहा यह धार्मिक उपदेश !
जब जब असुरोँ ने किया यहाँ कहीँ उत्पात !
सदाचार ने हो प्रकट उसका किया निपात !
स्वर्ण द्वीप लँका मेँ था रावण निशिचर राज !
बुद्धिमान हो भी रहा करता रहा अराज !
सेतु बँध कर के वहाँ पहुँचे तब श्री राम !
जो थे मर्यादा पुरुष आदर्शोँ के धाम !
लँका तक निर्माण कर लघु द्वीपोँ पर सेतु !
रामेश्वर से राम गये सीता रक्षा हेतु !
जनमानस की आस्था का यह सेतु महान !
राजनीति पर आज की स्वार्थ लिप्त बेइमान !
ओछी दृष्टि लिये हुये करते हैँ हर काम!
बेशर्मी से कह रहे कहाँ हुये थे राम !
तोड सेतु की भूमि को जल पथ का निर्माण
करने को तैयार हैँ बिन सोचे परिणाम !!
जगह जगह पर हो रहा प्रकृति सँग खिलवाड !
सभी स्वार्थवश कर रहे लेकर कोई आड !
इससे जन हित की जगह दिखता बडा विनाश !
राजनीति से उठ चला लोँगोँ का विश्वास !!
अच्छा हो सदबुद्धि देँ नेताओँ को राम !
जिससे होँ सब कर्म शुभ होँ न कोई बदनाम !!
प्रो सी॑ बी श्रीवास्तव विदग्ध
C-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008
मोबा ०९४२५४८४४५२
भारत सुन्दर देश है मन मोहक परिवेश !
कण कण इसका दे रहा आध्यात्मिक सँदेश !
अनुपम है सँसार मेँ इसका रूप विधान !
देव भूमि विख्यात यह मानव का वरदान !
सभी दिशाओँ का इसे सहज प्राप्त प्रतिसाद !
वायु गगन जल यँहाँ के हरते सकल विषाद !
हिम गिरि देता जल इसे उदधि विमल वातास !
ॠषि मेधाओँ ने रचा है इसका इतिहास !
सँतोषी हैँ नागरिक कर्मठ यहाँ किसान !
सबके मन की भावना जीवन का कल्याण !
रहे मित्र इसके सदा सभी पडोसी देश !
पहुँचाता जिन तक रहा यह धार्मिक उपदेश !
जब जब असुरोँ ने किया यहाँ कहीँ उत्पात !
सदाचार ने हो प्रकट उसका किया निपात !
स्वर्ण द्वीप लँका मेँ था रावण निशिचर राज !
बुद्धिमान हो भी रहा करता रहा अराज !
सेतु बँध कर के वहाँ पहुँचे तब श्री राम !
जो थे मर्यादा पुरुष आदर्शोँ के धाम !
लँका तक निर्माण कर लघु द्वीपोँ पर सेतु !
रामेश्वर से राम गये सीता रक्षा हेतु !
जनमानस की आस्था का यह सेतु महान !
राजनीति पर आज की स्वार्थ लिप्त बेइमान !
ओछी दृष्टि लिये हुये करते हैँ हर काम!
बेशर्मी से कह रहे कहाँ हुये थे राम !
तोड सेतु की भूमि को जल पथ का निर्माण
करने को तैयार हैँ बिन सोचे परिणाम !!
जगह जगह पर हो रहा प्रकृति सँग खिलवाड !
सभी स्वार्थवश कर रहे लेकर कोई आड !
इससे जन हित की जगह दिखता बडा विनाश !
राजनीति से उठ चला लोँगोँ का विश्वास !!
अच्छा हो सदबुद्धि देँ नेताओँ को राम !
जिससे होँ सब कर्म शुभ होँ न कोई बदनाम !!
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