स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा ....
प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
ओबी११, विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
एक वर्ष लो बीत गया कल , नया वर्ष फिर से है आया
सुख सद्भाव शांति का मौसम , फिर भी अब तक लौट न पाया
नये वर्ष संग सपने जागे , गये संग सिमटी आशायें
दुनियां ने दिन कैसे काटे , कहो तुम्हें क्या क्या बतलायें
सदियां बीत गयी दुनियां की , नवीनता से प्रीति लगाये
हर नवनीता के स्वागत में ,नयनों ने नित पलक बिछाये
सुख की धूप मिली बस दो क्षण , अक्सर घिरी दुखों की छाया
पर मानव मन निज स्वभाव वश , आशा में रहता भरमाया
आकर्षक पंछी से नभ से , गाते नये वर्ष हैं आते
देकर सीमित साथ समय भर , भरमा कर सबको उड़ जाते
अच्छी लगती है नवनीता , क्योकि चाहता मन परिवर्तन
परिवर्तन प्राकृतिक नियम में , भरा हुआ अनुपम आकर्षण
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा , तुमसे हैं सबको आशायें
नये दिनों नई आभा फैला , हरो विश्व की सब विपदायें
मानवता बीमार बहुत है , टूट रहे ममता के धागे
करो वही उपचार कि जिससे , स्वास्थ्य बढ़े शुभ करुणा जागे
सदा आपसी ममता से मन , रहे प्रेम भावित गरमाया
आतंकी अंधियार नष्ट हो , जग को इष्ट मिले मन भाया
मन हो आस्था की उर्जा , सज पाये संसार सुहाना
प्रेम विनय सद्भाव गान हो , भेदभाव हो राग पुराना
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
प्रकाशित किताबें ...ईशाराधन ,वतन को नमन, अनुगुंजन, नैतिक कथाये, आदर्श भाषण कला, कर्म भूमि के लिये बलिदान,जनसेवा, अंधा और लंगड़ा ,मुक्तक संग्रह,मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद ,रघुवंशम् पद्यानुवाद,समाजोपयोगी उत्पादक कार्य ,शिक्षण में नवाचार
सोमवार, 27 दिसंबर 2010
बुधवार, 15 दिसंबर 2010
शांति दे माँ नर्मदे !
शांति दे माँ नर्मदे !
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध"
मो ९४२५४८४४५२
सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे
सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे
सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते
कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे !
हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से
जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से
सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से
जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से
पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से
काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से
तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से
संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से
तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के
जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के
वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी
सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी
हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से
यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से
पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है
माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है
सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी
प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी
पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से
पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से
हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती
संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती
तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे
शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे
तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा
जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा
सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे
कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध"
मो ९४२५४८४४५२
सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे
सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे
सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते
कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे !
हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से
जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से
सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से
जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से
पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से
काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से
तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से
संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से
तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के
जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के
वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी
सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी
हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से
यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से
पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है
माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है
सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी
प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी
पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से
पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से
हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती
संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती
तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे
शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे
तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा
जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा
सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे
कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !
सोमवार, 13 दिसंबर 2010
नारी
नारी
प्रो
. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी
, रामपुर , जबलपुर
मो
. ०९४२५४८४४५२
नव सृजन की संवृद्धि की एक शक्ति है नारी
परमात्मा औ
" प्रकृति की अभिव्यक्ति है नारी
परिवार की है प्रेरणा
, जीवन का उत्स है
है प्रीति की प्रतिमूर्ति सहन शक्ति है नारी
ममता है माँ की
, साधना, श्रद्धा का रूप है
लक्ष्मी
, कभी सरस्वती , दुर्गा अनूप है
कोमल है फूल सी
, कड़ी चट्टान सी भी है
आवेश
, स्नेह , भावना ,अनुरक्ति है नारी सहधर्मिणी
, सहकर्मिणी सहगामिनी भी है
है कामना भी
, कामिनी भी , स्वामिनी भी है
संस्कृति का है आधार
, हृदय की पुकार है
सावन की सी फुहार है
, आसक्ति है नारी नारी से ही संसार ये
, संसार बना है
जीवन में रस औ
" रंग का आधार बना है
नारी हे धरा
, चाँदनी अभिसार प्यार भी
पर वस्तु नही एक पूर्ण व्यक्ति है नारी
प्रो
. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
विद्युत मंडल कालोनी
, रामपुर , जबलपुर
मो
. ०९४२५४८४४५२
नव सृजन की संवृद्धि की एक शक्ति है नारी
परमात्मा औ
" प्रकृति की अभिव्यक्ति है नारी
परिवार की है प्रेरणा
, जीवन का उत्स है
है प्रीति की प्रतिमूर्ति सहन शक्ति है नारी
ममता है माँ की
, साधना, श्रद्धा का रूप है
लक्ष्मी
, कभी सरस्वती , दुर्गा अनूप है
कोमल है फूल सी
, कड़ी चट्टान सी भी है
आवेश
, स्नेह , भावना ,अनुरक्ति है नारी सहधर्मिणी
, सहकर्मिणी सहगामिनी भी है
है कामना भी
, कामिनी भी , स्वामिनी भी है
संस्कृति का है आधार
, हृदय की पुकार है
सावन की सी फुहार है
, आसक्ति है नारी नारी से ही संसार ये
, संसार बना है
जीवन में रस औ
" रंग का आधार बना है
नारी हे धरा
, चाँदनी अभिसार प्यार भी
पर वस्तु नही एक पूर्ण व्यक्ति है नारी
शनिवार, 4 दिसंबर 2010
गज़ल
गज़ल
हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं
सच आज की दुनियां के अंदाज निराले हैं
हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं
धोखा दगा रिष्वत का यों बढ़ गया चलन है
देखो जहाॅं भी दिखते बस घपले घोटाले हैं
पद ज्ञान प्रतिष्ठा ने तज दी सभी मर्यादा
धन कमाने के सबने नये ढंग निकाले हैं
शोहरत औं‘ दिखावों की यों होड लग गई हैं
नजरों में सबकी होटल पब सुरा के प्याले हैं
महिलायें तंग ओछे कपड़े पहन के खुष हैं
आॅंखंे झुका लेते वे जो देखने वाले हैं
शालीनता सदा से श्रंृगार थी नारी की
उसकी नई फैषन ने दीवाले निकाले हैं
व्यवहार में बेईमानी का रंग चढ़ा ऐसा
रहे मन के साफ थोडे मन के अधिक काले हैं
अच्छे भलों का सहसा चलना बडा मुष्किल है
हर राह भीड़ बेढब बढ़े पाॅव में छाले है
जो हो रहा उससे तो न जाने क्या हो जाता
पर पुण्य पुराने हैं जो सबको सम्भाले है
आतंकवाद नाहक जग को सता रहा है
कहीं आग की लपटें हैं कहीं खून के नाले हैं
हर दिन ये सारी दुनियाॅं हिचकोले खा रही हैं
पर सब ‘विदग्ध‘ डरकर ईष्वर के हवाले हैं
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं
सच आज की दुनियां के अंदाज निराले हैं
हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं
धोखा दगा रिष्वत का यों बढ़ गया चलन है
देखो जहाॅं भी दिखते बस घपले घोटाले हैं
पद ज्ञान प्रतिष्ठा ने तज दी सभी मर्यादा
धन कमाने के सबने नये ढंग निकाले हैं
शोहरत औं‘ दिखावों की यों होड लग गई हैं
नजरों में सबकी होटल पब सुरा के प्याले हैं
महिलायें तंग ओछे कपड़े पहन के खुष हैं
आॅंखंे झुका लेते वे जो देखने वाले हैं
शालीनता सदा से श्रंृगार थी नारी की
उसकी नई फैषन ने दीवाले निकाले हैं
व्यवहार में बेईमानी का रंग चढ़ा ऐसा
रहे मन के साफ थोडे मन के अधिक काले हैं
अच्छे भलों का सहसा चलना बडा मुष्किल है
हर राह भीड़ बेढब बढ़े पाॅव में छाले है
जो हो रहा उससे तो न जाने क्या हो जाता
पर पुण्य पुराने हैं जो सबको सम्भाले है
आतंकवाद नाहक जग को सता रहा है
कहीं आग की लपटें हैं कहीं खून के नाले हैं
हर दिन ये सारी दुनियाॅं हिचकोले खा रही हैं
पर सब ‘विदग्ध‘ डरकर ईष्वर के हवाले हैं
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
भारतमाता शांतिदायिनी!
भारतमाता
भारतमाता शांतिदायिनी!
सघन हरित अभिराम वनांचल
पावन नदियाॅ ज्यों गंगाजल
विविध अन्न फल फूल समृद्धा
जनहितकारी सुख विधायिनी
आन्नद मूला मधुर भाषिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
मर्यादित शालीन सुहानी
बहुभाषा भाषी कल्याणी
मुदित आनना, निष्चल हृदया
पंपरागत ग्राम वासिनी
स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी
भारतमाता शांतिदायिनी
सरल सहज शुभ सात्विक रूपा
शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा
अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक
अखिल विष्व समता प्रसारिणी
निर्मल प्रेम भाव धारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री
आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री
मलय पवन सुरभित शुभ आंचल
मृदुला नवजीवन प्रदायिनी
धर्म प्राण संताप हारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
भारतमाता शांतिदायिनी!
सघन हरित अभिराम वनांचल
पावन नदियाॅ ज्यों गंगाजल
विविध अन्न फल फूल समृद्धा
जनहितकारी सुख विधायिनी
आन्नद मूला मधुर भाषिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
मर्यादित शालीन सुहानी
बहुभाषा भाषी कल्याणी
मुदित आनना, निष्चल हृदया
पंपरागत ग्राम वासिनी
स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी
भारतमाता शांतिदायिनी
सरल सहज शुभ सात्विक रूपा
शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा
अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक
अखिल विष्व समता प्रसारिणी
निर्मल प्रेम भाव धारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री
आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री
मलय पवन सुरभित शुभ आंचल
मृदुला नवजीवन प्रदायिनी
धर्म प्राण संताप हारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
बुधवार, 24 नवंबर 2010
Those who fear not are the winners
Those who fear not are the winners
Prof. C. B.Shrivastava “vidagdha’’
O B 11 , MPSEB colony , Rampur , Jabalpur M P 482008 ,Vivek1959@yahoo.co.in / 07612662052
Life is in fact not so simple
Nor is like that what you feel
But to a very large extent
It is something, how you deal
Every day has its new challenges
There are several fears and frowns
Everyone has his own problems
There are several ups and downs
The path of life is through the hurdles
Cross them with a patient mind
As unflinchingly you overcome
Ahead is plain clean road you find
Please don’t hesitate and don’t be sad
With full confidence hold the bridles
Soon you see, yours is the conquest
And are post soon all the hurdles
Those who fear not are the winners
To the highest peak they rise
Only bold ones and the fearless
Get all praises and the prize
Prof. C. B.Shrivastava “vidagdha’’
O B 11 , MPSEB colony , Rampur , Jabalpur M P 482008 ,Vivek1959@yahoo.co.in / 07612662052
Life is in fact not so simple
Nor is like that what you feel
But to a very large extent
It is something, how you deal
Every day has its new challenges
There are several fears and frowns
Everyone has his own problems
There are several ups and downs
The path of life is through the hurdles
Cross them with a patient mind
As unflinchingly you overcome
Ahead is plain clean road you find
Please don’t hesitate and don’t be sad
With full confidence hold the bridles
Soon you see, yours is the conquest
And are post soon all the hurdles
Those who fear not are the winners
To the highest peak they rise
Only bold ones and the fearless
Get all praises and the prize
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
कैसे हो कोई काम शुभ यों बढ़े भ्रष्टाचार में
कैसे हो कोई काम शुभ यों बढ़े भ्रष्टाचार में
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
समझते है समझदारी लोग अब तकरार में
बुद्धि सारी आ बसी है आजकल हथियार में।
नित नई खबरें अनोखी छप रहीं अखबार में
कमीषन, रिष्वत की बातें आम हैं सरकार में।
न्याय और कानून की सब व्यवस्था है ताक पर
चल रहे घपले घोटाले हरेक कारोबार में।
हो गया है बहुत मुष्किल जिदंगी का ये सफर
बढ़ी हुई महंगाई से बैचेन है हर एक घर।
काम हो छोटे-बडे कोई सब में हैं मजबूरियाॅं
दब के बैठा जा रहा मन भारी गर्द गुबार में।
मिलावट के बिना कुछ मिलता नहीं बाजार में
छल, कपट का बोलबाला है हरेक व्यवहार में।
दवाओं तक के गुणों और मूल्यों में लूट है
हो गई संवेदनायें खत्म ज्यों संसार में।
उड़ गई काफूर सी सद्भावना, शालीनता
बढ़ रहा चारित्रिक पतन उदण्डता गुणहीनता।
न है पद की प्रतिष्ठा न बड़ो का सम्मान है
कैसे हो कोई काम शुभ यों बढ़े भ्रष्टाचार में।
बढ़ गया डर जान तक का आज पावन प्यार में
कट रही है जिंदगी कई की अचेत खुमार में।
भीड़ है विज्ञापनों की बहुत झूठ प्रचार की
पा रहे बेईमान ही सब लाभ हर व्यापार में।
भेदभाव बढ़े परस्पर आपसी टकराव है
छोटे-छोटे काम के भी बड़े मंहगे भाव है।
बिन चढ़ावों के सुलभ मंदिर में अब न प्रसाद तक
लगता है कर्तव्य तक अब ढल गये प्रतिकार में।
सही दिखता है कोई एकाध कई हजार में
रहा न सम्मान धन में पद में न अधिकार में।
गुनाहों के है हाथ लंबे ओछे है कानून के
भरोसा होता नहीं इससे ही किसी सुधार में।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
समझते है समझदारी लोग अब तकरार में
बुद्धि सारी आ बसी है आजकल हथियार में।
नित नई खबरें अनोखी छप रहीं अखबार में
कमीषन, रिष्वत की बातें आम हैं सरकार में।
न्याय और कानून की सब व्यवस्था है ताक पर
चल रहे घपले घोटाले हरेक कारोबार में।
हो गया है बहुत मुष्किल जिदंगी का ये सफर
बढ़ी हुई महंगाई से बैचेन है हर एक घर।
काम हो छोटे-बडे कोई सब में हैं मजबूरियाॅं
दब के बैठा जा रहा मन भारी गर्द गुबार में।
मिलावट के बिना कुछ मिलता नहीं बाजार में
छल, कपट का बोलबाला है हरेक व्यवहार में।
दवाओं तक के गुणों और मूल्यों में लूट है
हो गई संवेदनायें खत्म ज्यों संसार में।
उड़ गई काफूर सी सद्भावना, शालीनता
बढ़ रहा चारित्रिक पतन उदण्डता गुणहीनता।
न है पद की प्रतिष्ठा न बड़ो का सम्मान है
कैसे हो कोई काम शुभ यों बढ़े भ्रष्टाचार में।
बढ़ गया डर जान तक का आज पावन प्यार में
कट रही है जिंदगी कई की अचेत खुमार में।
भीड़ है विज्ञापनों की बहुत झूठ प्रचार की
पा रहे बेईमान ही सब लाभ हर व्यापार में।
भेदभाव बढ़े परस्पर आपसी टकराव है
छोटे-छोटे काम के भी बड़े मंहगे भाव है।
बिन चढ़ावों के सुलभ मंदिर में अब न प्रसाद तक
लगता है कर्तव्य तक अब ढल गये प्रतिकार में।
सही दिखता है कोई एकाध कई हजार में
रहा न सम्मान धन में पद में न अधिकार में।
गुनाहों के है हाथ लंबे ओछे है कानून के
भरोसा होता नहीं इससे ही किसी सुधार में।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
शनिवार, 13 नवंबर 2010
संसद के केंद्रीय हाल में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा के भाषण पर
संसद के केंद्रीय हाल में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा के भाषण पर ...
प्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध"
OB 11 , MPSEB , Rampur , Jabalpur
सचाई का रंग स्वतः संवाद में सब झलकता है
मनोभावों का सरोवर भर के बाहर छलकता है
परिस्थितियां जगाती नये सोच , नईधारणायें
उन्हीं से मन को सदा मिलती अनेकों प्रेरणायें
अमेरिका के राष्ट्रपति जो कहा भाषण में अपने
वे थीं उनके मन की बातें साफ उनके मन के सपने
खोल के रख दी उन्होंने उनके मन की भावनायें
कि भारत औ" अमेरिका कदम मिलकर अब बढ़ायें
मिल कर दो जनतंत्र जग को दे सकेंगे नई दिशायें
जिससे दुनियां पा सकेगी, विश्व जनहित नई राहें
परस्पर हित के संग संग जग का कल्याण होगा
ज्ञान औ" तकनीक की नववृद्धि , नव वरदान होगा
हल सरल हो जायेंगे उनके जो हैं नई समस्यायें
अवतरित हो सकेगा युग नया मिटा सारी निराशायें
पूर्व पश्चिम का मिलन होगा सभी को लाभकारी
भारत अमेरिका बनायें जो "अणु" को कल्याणकारी
कृषि में , पर्यावरण में , व्यापार में संवृद्धि होगी
स्वस्थ्य , शिक्षा , आर्थिक क्षेत्रों में भी अभिवृद्धि होगी
होगी दुनियां शांति सुखमय नया यह संसार होगा
गरीबो की बस्तियों से दूर जब ांधियार होगा
विचारों और कर्म में सबके , जो हो ईमानदारी
तो सुनिश्चित स्वर्ग से सुखकर बने धरती हमारी
प्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध"
OB 11 , MPSEB , Rampur , Jabalpur
सचाई का रंग स्वतः संवाद में सब झलकता है
मनोभावों का सरोवर भर के बाहर छलकता है
परिस्थितियां जगाती नये सोच , नईधारणायें
उन्हीं से मन को सदा मिलती अनेकों प्रेरणायें
अमेरिका के राष्ट्रपति जो कहा भाषण में अपने
वे थीं उनके मन की बातें साफ उनके मन के सपने
खोल के रख दी उन्होंने उनके मन की भावनायें
कि भारत औ" अमेरिका कदम मिलकर अब बढ़ायें
मिल कर दो जनतंत्र जग को दे सकेंगे नई दिशायें
जिससे दुनियां पा सकेगी, विश्व जनहित नई राहें
परस्पर हित के संग संग जग का कल्याण होगा
ज्ञान औ" तकनीक की नववृद्धि , नव वरदान होगा
हल सरल हो जायेंगे उनके जो हैं नई समस्यायें
अवतरित हो सकेगा युग नया मिटा सारी निराशायें
पूर्व पश्चिम का मिलन होगा सभी को लाभकारी
भारत अमेरिका बनायें जो "अणु" को कल्याणकारी
कृषि में , पर्यावरण में , व्यापार में संवृद्धि होगी
स्वस्थ्य , शिक्षा , आर्थिक क्षेत्रों में भी अभिवृद्धि होगी
होगी दुनियां शांति सुखमय नया यह संसार होगा
गरीबो की बस्तियों से दूर जब ांधियार होगा
विचारों और कर्म में सबके , जो हो ईमानदारी
तो सुनिश्चित स्वर्ग से सुखकर बने धरती हमारी
गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010
बेटी का संसार
बेटी का संसार
बड़ा भावमय त्यागमय बिटिया का संसार
प्रेम पगा है मन मगर, नैन अश्रु की धार
बिटिया लक्ष्मी लाडली है घर का सिंगार
जिसका जीवन सजाता है दो-दो परिवार
होना चाहिये घरो में बेटी का सम्मान
बिटिया बिन संभव कहां धार्मिक विविध विधान
गुणी बेटियां बढ़ाती हैं दो घर की शान
दे देती परिवार को एक नई पहचान
अच्छा घर-वर देखकर कर बेटी का ब्याह
खश होते माता-पिता जैसे शाहंशाह
घर जिस पर था जनम से बेटी का अधिकार
हो जाता भावंर पडे सात समदंर पार
नये देश में लोग नये घर बिल्कुल अंजान
सबसे पाती नई बहू उचित मान-सम्मान
घुलमिल सबसे और कर आदर मय व्यवहार
पाती बहुएं चार दिन में घर पर अधिकार
रीति यहीं संसार की रहकर सबके साथ
भुला न पाती बेटियां पर मयके की याद
दोनों घर परिवार की मर्यादा को मान
करती सब व्यवहार रख लोक लाज का ध्यान
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
बड़ा भावमय त्यागमय बिटिया का संसार
प्रेम पगा है मन मगर, नैन अश्रु की धार
बिटिया लक्ष्मी लाडली है घर का सिंगार
जिसका जीवन सजाता है दो-दो परिवार
होना चाहिये घरो में बेटी का सम्मान
बिटिया बिन संभव कहां धार्मिक विविध विधान
गुणी बेटियां बढ़ाती हैं दो घर की शान
दे देती परिवार को एक नई पहचान
अच्छा घर-वर देखकर कर बेटी का ब्याह
खश होते माता-पिता जैसे शाहंशाह
घर जिस पर था जनम से बेटी का अधिकार
हो जाता भावंर पडे सात समदंर पार
नये देश में लोग नये घर बिल्कुल अंजान
सबसे पाती नई बहू उचित मान-सम्मान
घुलमिल सबसे और कर आदर मय व्यवहार
पाती बहुएं चार दिन में घर पर अधिकार
रीति यहीं संसार की रहकर सबके साथ
भुला न पाती बेटियां पर मयके की याद
दोनों घर परिवार की मर्यादा को मान
करती सब व्यवहार रख लोक लाज का ध्यान
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
शनिवार, 23 अक्तूबर 2010
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
लोगो के मन को शहरों को तथा ग्राम्य परिवेश को,
साफ प्रभाव दिखाई देता, गांव, खेत, खलिहान पर
झटक दिया लोगो ने सात्विक सामाजिक आवेश को
सिर्फ बाहरी रूप न बदला मन में भी बदलाव है
आत्मयिता घटी, रिश्तो में अब न रहा लगाव है
कमी आ गई परिवारों में , आपस के संवाद में
सुनती नहीं नई पीढ़ी अब, वृद्धो के आदेश को।
बढ़ तो रहा देश तकनीकी शिक्षा के अवदान से
पर संस्कारहीन से शिक्षित है झूठे अभिमान से
हवा पश्चिमी उड़ा ले गई मधुर भारतीय भावना
डिग्री ले नवयुवक भागते सर्विस को परदेश को
बूढ़े मात पिता है घर में पर उनकी परवाह नहीं
सिर्फ कमाने धन विदेश जाने की मन में चाह रही
समस्यायें कई बढ़ती जाती नई नई परिवारों में
ध्यान नहीं सुनने रामायाण गीता के संदेश को
ग्रामीणों से दूर हो गये जंगल नदी पहाड़ है
पेड़ कटे सब चित्रकूट दण्डक वन हुये उजाड है
विवश ग्राम्य जन दुखी छोड घर, निकल चले है गांव से
क्योंकि उन्हें हल करना रोटी के बढ़ रहे कलेश को
नये परिवर्तन की आंधी से घर सब चकनाचूर है
राम राज्य के सपने सबसे अब भी कोसों दूर है
मन में धार्मिक मान्यताओं का घटा बहुत सम्मान है
दया, दान , सेवा के बदले लालच बढ़ा विशेष है।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
लोगो के मन को शहरों को तथा ग्राम्य परिवेश को,
साफ प्रभाव दिखाई देता, गांव, खेत, खलिहान पर
झटक दिया लोगो ने सात्विक सामाजिक आवेश को
सिर्फ बाहरी रूप न बदला मन में भी बदलाव है
आत्मयिता घटी, रिश्तो में अब न रहा लगाव है
कमी आ गई परिवारों में , आपस के संवाद में
सुनती नहीं नई पीढ़ी अब, वृद्धो के आदेश को।
बढ़ तो रहा देश तकनीकी शिक्षा के अवदान से
पर संस्कारहीन से शिक्षित है झूठे अभिमान से
हवा पश्चिमी उड़ा ले गई मधुर भारतीय भावना
डिग्री ले नवयुवक भागते सर्विस को परदेश को
बूढ़े मात पिता है घर में पर उनकी परवाह नहीं
सिर्फ कमाने धन विदेश जाने की मन में चाह रही
समस्यायें कई बढ़ती जाती नई नई परिवारों में
ध्यान नहीं सुनने रामायाण गीता के संदेश को
ग्रामीणों से दूर हो गये जंगल नदी पहाड़ है
पेड़ कटे सब चित्रकूट दण्डक वन हुये उजाड है
विवश ग्राम्य जन दुखी छोड घर, निकल चले है गांव से
क्योंकि उन्हें हल करना रोटी के बढ़ रहे कलेश को
नये परिवर्तन की आंधी से घर सब चकनाचूर है
राम राज्य के सपने सबसे अब भी कोसों दूर है
मन में धार्मिक मान्यताओं का घटा बहुत सम्मान है
दया, दान , सेवा के बदले लालच बढ़ा विशेष है।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010
नारी से ही सजे हैं , सब आंगन घर द्वार
नारी से ही सजे हैं , सब आंगन घर द्वार
नारी के बिन कहीं भी, सरस नहीं संसार
नारी सुख संतोषप्रद पावन उसका प्यार
जिसकी आंचल छांव में पलता हर परिवार
जीवन रथ के नारी नर है दो चक्र समान
बिना एक के दूसरे का न कहीं सम्मान
लता वृक्ष ज्यों शोभते बांट परस्पर प्यार
हर घर होना चाहिये ऐसा ही व्यवहार
जीवन जीने का सही प्रेम बड़ा आधार
जहां प्रेम है सुलभ भी वहीं सभी अधिकार
देता सुख संतोष सब आपस का विश्वास
भरती चंपा गंध सी मन में मधुर मिठास
घर की शोभा नारि से नर की शोभा नारि
नर-नारी के मेल से प्रमुदित हर परिवार
नारि उपस्थिति बांटता घर में नया उजास
जो न खनकती चूड़िया सूनेपन का भास
नारि कमल के फूल सम लक्ष्मी का अवतार
जिसका घर के लोग संग है मोहक अधिकार
पितुगृह पतिगृह नारि के नदिया के दो पाट
बचपन सजता इस तरफ घर बसता उस पार
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252A
नारी के बिन कहीं भी, सरस नहीं संसार
नारी सुख संतोषप्रद पावन उसका प्यार
जिसकी आंचल छांव में पलता हर परिवार
जीवन रथ के नारी नर है दो चक्र समान
बिना एक के दूसरे का न कहीं सम्मान
लता वृक्ष ज्यों शोभते बांट परस्पर प्यार
हर घर होना चाहिये ऐसा ही व्यवहार
जीवन जीने का सही प्रेम बड़ा आधार
जहां प्रेम है सुलभ भी वहीं सभी अधिकार
देता सुख संतोष सब आपस का विश्वास
भरती चंपा गंध सी मन में मधुर मिठास
घर की शोभा नारि से नर की शोभा नारि
नर-नारी के मेल से प्रमुदित हर परिवार
नारि उपस्थिति बांटता घर में नया उजास
जो न खनकती चूड़िया सूनेपन का भास
नारि कमल के फूल सम लक्ष्मी का अवतार
जिसका घर के लोग संग है मोहक अधिकार
पितुगृह पतिगृह नारि के नदिया के दो पाट
बचपन सजता इस तरफ घर बसता उस पार
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252A
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
लोगो के मन को शहरों को तथा ग्राम्य परिवेश को,
साफ प्रभाव दिखाई देता, गांव, खेत, खलिहान पर
झटक दिया लोगो ने सात्विक सामाजिक आवेश को
सिर्फ बाहरी रूप न बदला मन में भी बदलाव है
आत्मयिता घटी, रिश्तो में अब न रहा लगाव है
कमी आ गई परिवारों में , आपस के संवाद में
सुनती नहीं नई पीढ़ी अब, वृद्धो के आदेश को।
बढ़ तो रहा देश तकनीकी शिक्षा के अवदान से
पर संस्कारहीन से शिक्षित है झूठे अभिमान से
हवा पश्चिमी उड़ा ले गई मधुर भारतीय भावना
डिग्री ले नवयुवक भागते सर्विस को परदेश को
बूढ़े मात पिता है घर में पर उनकी परवाह नहीं
सिर्फ कमाने धन विदेश जाने की मन में चाह रही
समस्यायें कई बढ़ती जाती नई नई परिवारों में
ध्यान नहीं सुनने रामायाण गीता के संदेश को
ग्रामीणों से दूर हो गये जंगल नदी पहाड़ है
पेड़ कटे सब चित्रकूट दण्डक वन हुये उजाड है
विवश ग्राम्य जन दुखी छोड घर, निकल चले है गांव से
क्योंकि उन्हें हल करना रोटी के बढ़ रहे कलेश को
नये परिवर्तन की आंधी से घर सब चकनाचूर है
राम राज्य के सपने सबसे अब भी कोसों दूर है
मन में धार्मिक मान्यताओं का घटा बहुत सम्मान है
दया, दान , सेवा के बदले लालच बढ़ा विशेष है।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
बदल दिया है नव विकास ने मेरे भारत देश को
लोगो के मन को शहरों को तथा ग्राम्य परिवेश को,
साफ प्रभाव दिखाई देता, गांव, खेत, खलिहान पर
झटक दिया लोगो ने सात्विक सामाजिक आवेश को
सिर्फ बाहरी रूप न बदला मन में भी बदलाव है
आत्मयिता घटी, रिश्तो में अब न रहा लगाव है
कमी आ गई परिवारों में , आपस के संवाद में
सुनती नहीं नई पीढ़ी अब, वृद्धो के आदेश को।
बढ़ तो रहा देश तकनीकी शिक्षा के अवदान से
पर संस्कारहीन से शिक्षित है झूठे अभिमान से
हवा पश्चिमी उड़ा ले गई मधुर भारतीय भावना
डिग्री ले नवयुवक भागते सर्विस को परदेश को
बूढ़े मात पिता है घर में पर उनकी परवाह नहीं
सिर्फ कमाने धन विदेश जाने की मन में चाह रही
समस्यायें कई बढ़ती जाती नई नई परिवारों में
ध्यान नहीं सुनने रामायाण गीता के संदेश को
ग्रामीणों से दूर हो गये जंगल नदी पहाड़ है
पेड़ कटे सब चित्रकूट दण्डक वन हुये उजाड है
विवश ग्राम्य जन दुखी छोड घर, निकल चले है गांव से
क्योंकि उन्हें हल करना रोटी के बढ़ रहे कलेश को
नये परिवर्तन की आंधी से घर सब चकनाचूर है
राम राज्य के सपने सबसे अब भी कोसों दूर है
मन में धार्मिक मान्यताओं का घटा बहुत सम्मान है
दया, दान , सेवा के बदले लालच बढ़ा विशेष है।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
उन्हें भगवान मिलते है।
उन्हें भगवान मिलते है।
सरोवर के विमल जल में कमल के फूल खिलते है।
जो मन को शुद्ध कर लेते उन्हें भगवान मिलते है।
बड़ा मैला है मन ये खोया रहता नाच गानो में,
उमंगो की तरंगो में या कोई झूठे बहानों में।
जो चिंतन में उतरते है, उन्हें भगवान मिलते है।
रिझाती रहती है मन को सदा ही नई तृष्णायें,
जकड लेती हैं लालच में फंसने को ये बाधाये।
सम्भल के जो निकल पाते उन्हें भगवान मिलते है।
जरूरी है न मन भटके जगत में वासनाओं से,
सिखाना पडता है उसको , बचना कामनाओ से।
जो सात्विकता में जीते हैं, उन्हें भगवान मिलते है।
प्रमुखता होती है मन को सजाने में विचारो की,
विमलता देती है जीवन ,को शुचिता संस्कारो की,
जो होते हैं सरल निश्छल उन्हें भगवान मिलते है।
जरूरी है सफलता के लिये नित साधना भारी,
सरलता और सात्विकता मे होती जिसकी तैयारी।
जो करते है तपस्यायें , उन्हें भगवान मिलते है।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध‘
सरोवर के विमल जल में कमल के फूल खिलते है।
जो मन को शुद्ध कर लेते उन्हें भगवान मिलते है।
बड़ा मैला है मन ये खोया रहता नाच गानो में,
उमंगो की तरंगो में या कोई झूठे बहानों में।
जो चिंतन में उतरते है, उन्हें भगवान मिलते है।
रिझाती रहती है मन को सदा ही नई तृष्णायें,
जकड लेती हैं लालच में फंसने को ये बाधाये।
सम्भल के जो निकल पाते उन्हें भगवान मिलते है।
जरूरी है न मन भटके जगत में वासनाओं से,
सिखाना पडता है उसको , बचना कामनाओ से।
जो सात्विकता में जीते हैं, उन्हें भगवान मिलते है।
प्रमुखता होती है मन को सजाने में विचारो की,
विमलता देती है जीवन ,को शुचिता संस्कारो की,
जो होते हैं सरल निश्छल उन्हें भगवान मिलते है।
जरूरी है सफलता के लिये नित साधना भारी,
सरलता और सात्विकता मे होती जिसकी तैयारी।
जो करते है तपस्यायें , उन्हें भगवान मिलते है।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध‘
मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010
मन की सुनो प्रार्थना
मन की सुनो प्रार्थना
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र
मो ९४२५४८४४५२
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
आये हैं लिये आश बड़ी द्वार तुम्हारे
सागर में है तूफान है मझधार में नैया
कोई न सिवा नाथ , तुम्हारे है खिवैया
जो देख रहे उनकी बड़ी भीड़ लगी है
पर हमसे ही मजबूर , खड़े वे भी किनारे
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
भँवरों में फंसी डोल, डगमगा रही नैया
जग नाच रहा , तुम्हीं हो इस जग के नचैया
दुनियां में कही कोई भी दिखता नहीं अपना
हम भाग्य के मारों के तुम्हीं नाथ सहारे
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
हर दीन दुखी की प्रभु ! तुम लाज बचैया
रक्षक सकल संसार के तुम कृष्ण कन्हैया
सुख के सभी साथी हैं , पै दुख में नहीं कोई
संकट की घड़ी में गये तुमसे उबारे
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र
मो ९४२५४८४४५२
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
आये हैं लिये आश बड़ी द्वार तुम्हारे
सागर में है तूफान है मझधार में नैया
कोई न सिवा नाथ , तुम्हारे है खिवैया
जो देख रहे उनकी बड़ी भीड़ लगी है
पर हमसे ही मजबूर , खड़े वे भी किनारे
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
भँवरों में फंसी डोल, डगमगा रही नैया
जग नाच रहा , तुम्हीं हो इस जग के नचैया
दुनियां में कही कोई भी दिखता नहीं अपना
हम भाग्य के मारों के तुम्हीं नाथ सहारे
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
हर दीन दुखी की प्रभु ! तुम लाज बचैया
रक्षक सकल संसार के तुम कृष्ण कन्हैया
सुख के सभी साथी हैं , पै दुख में नहीं कोई
संकट की घड़ी में गये तुमसे उबारे
इस मन की सुनो प्रार्थना भगवान हमारे
सोमवार, 18 अक्तूबर 2010
स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
शारदी चाँदनी सा विमल मन ,जब पपीहा सा तुमको पुकारे
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र
मो ९४२५४८४४५२
शारदी चाँदनी सा विमल मन ,जब पपीहा सा तुमको पुकारे
सावनी घन घटा से उमगते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
प्राण के स्वर स्वतः झनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे
मन बसे भावना से रंगे चित्र , आप सब कुछ स्वयं बोल देंगे
याद करते हुये बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से
भ्रमर से मधुर धुन गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपने सजन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना
दिन कटे काम की व्यस्तता में , रात गिनते गगन के सितारे ,
सांस के पालने में झुलाये , आश डोरी पै सपने तुम्हारे
मलय ले मधुर शीतल पवन से , बिन रुके कहीं , बढ़ते जतन से
नेह की गंध अपनी लुटाते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपने वचन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना
रात सूने क्षणो में हमेशा , नींद हर , जाल यों डाल जाती
नैन मूंदे हृदय की विकलता , उलझ जिसमें विवश छटपटाती
अनापेक्षित मधुर से संदेशे , मिटाने सभी कल्पित अंदेशे
गीत की लय धुन पर थिरकते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपनी लगन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना ा
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र
मो ९४२५४८४४५२
शारदी चाँदनी सा विमल मन ,जब पपीहा सा तुमको पुकारे
सावनी घन घटा से उमगते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
प्राण के स्वर स्वतः झनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे
मन बसे भावना से रंगे चित्र , आप सब कुछ स्वयं बोल देंगे
याद करते हुये बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से
भ्रमर से मधुर धुन गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपने सजन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना
दिन कटे काम की व्यस्तता में , रात गिनते गगन के सितारे ,
सांस के पालने में झुलाये , आश डोरी पै सपने तुम्हारे
मलय ले मधुर शीतल पवन से , बिन रुके कहीं , बढ़ते जतन से
नेह की गंध अपनी लुटाते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपने वचन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना
रात सूने क्षणो में हमेशा , नींद हर , जाल यों डाल जाती
नैन मूंदे हृदय की विकलता , उलझ जिसमें विवश छटपटाती
अनापेक्षित मधुर से संदेशे , मिटाने सभी कल्पित अंदेशे
गीत की लय धुन पर थिरकते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपनी लगन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना ा
सोमवार, 11 अक्तूबर 2010
सार्थक शब्दमय देवी गीत
देवी गीत ...
नव रात्री पर्व सारे देश में नौ दस दिनों तक देवी पूजन , भक्तिभाव पूर्ण गायन , उपवास , बड़े बड़े पंडालों की स्थापना , और गरबा के आयोजन कर मनाया जाता है . देवी गीतों का प्रचार सब तरफ बढ़ गया है . पावन पर्व में गीत संगीत से पवित्र भअवना का प्रादुर्भाव और प्रसार बड़ा सुखद व मन भावन होता है . इसी दृष्टि से हर वर्ष नवरात्रि से पहले नये नये देवीगीत , जस , नौराता , के कैसेट्स बाजार में आ जाते हैं . दूर दूर गाँव ,शहरों में उत्सव समितियां ये कैसेट्स अनवरत बजाकर एक भाव भक्ति का वातावरण बना देती हैं . अब तो नवरात्रि के अनुकूल एस एम एस , रिंगटोन , वालपेपर आदि की भी मार्केटिंग हो रही है . बाजार की इस बेहिसाब माँग के चलते अनेक सस्तुआ शब्दों हल्के मनोरंजन वाले विकृत मानसिकता के देवी गीत भी विगत में सुनने को मिले . इनसे मन कोपीड़ा होती है , यह सांस्कृतिक पराभव ठीक नहीं है .
सुरुचिपूर्ण भक्ति , व देवी उपासना के लिये गीत संगीत ऐसा होना चाहिये जो श्रद्धा , विश्वास, सद्भाव , समर्पण तथा भक्ति को बढ़ावा दे .
इसी उद्देश्य से मैंने कुछ भावपूर्ण , सुन्दर , व सार्थक शब्दमय देवी गीतों की रचना की है . जो भी गायक , सी.डी. निर्माता , भक्त , धार्मिक संस्थायें चाहे वे इन सोद्देश्य गीतों को मुझसे निशुल्क जनहित में प्राप्त कर उन्हें प्रचारित करने हेतु कैसेट , सीडी बनवा सकते हैं . चाहें तो संपर्क करें .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
ओ बी ११ ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
१ देवी गीत .... चलो माँ के दर्शन करें
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
आया नवरात्रि का त्यौहार , चलो माँ के दर्शन करें
अंबे मां का लगा है दरबार , चलो माँ के दर्शन करें
माता के दरसन है पावन सुहावन
नैनों से झरता है करुणा का सावन
भक्तों की माँ ही आधार , चलो माँ के दर्शन करें
माता के मंदिर की शोभा निराली
उड़ती ध्वजा लाल मन हरने वाली
खुला सबके लिये मां का द्वार , चलो माँ के दर्शन करें
मंदिर में जलती सुहानी वो जोती
जो मन के सब मैल किरणो से धोती
माता सुनती हैं सबकी पुकार चलो माँ के दर्शन करें
२ देवी गीत .... हम द्वार तुम्हारे आये हैं
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं
एक झलक ज्योती की पाने सपने ये नैन सजाये हैं
पूजा की रीति विधानों का माता है हमको ज्ञान नही
पाने को तुम्हारी कृपादृष्टि के सिवा दूसरा ध्यान नहीं
फल चंदन माला धूप दीप से पूजन थाल सजाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं , मां द्वार तुम्हारे आये हैं
जीवन जंजालों में उलझा , मन द्विविधा में अकुलाता है
भटका है भूल भुलैया में निर्णय नसही कर पाता है
मां आँचल की छाया दो हमको , हम माया में भरमाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं , हम द्वार तुम्हारे आये हैं
जिनका न सहारा कोई माँ , उनका तुम एक सहारा हो
दुखिया मन का दुख दूर करो , सुखमय संसार हमारा हो
आशीष दो मां उन भक्तों को जो , तुम से आश लगाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं ,सब द्वार तुम्हारे आये हैं
३ देवी गीत .... मात जगदंबे
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
हे जग की पालनहार मात जगदंबे
हम आये तुम्हारे द्वार मात जगदंबे
तुम आदि शक्ति इस जग की मंगलकारी
तीनों लोकों में महिमा बड़ी तुम्हारी , इस मन की सुनो पुकार मात जगदंबे
देवों का दल दनुजों से था जब हारा
असुरों को माँ तुमने रण में संहारा , तव करुणा अपरम्पार मात जगदंबे
चलता सारा संसार तुम्हारी दम से
माँ क्षमा करो सब भूल हुई जो हम से , तुम जीवन की आधार मात जगदंबे
हर जन को जग में भटकाती है माया
बच पाया वह जो शरण तुम्हारी है पाया , माया मय है संसार मात जगदंबे
माँ डूब रही नित भवसागर में नैया
है दूर किनारा कोई नहीं खिवैया , संकट से करो उबार मात जगदंबे
सद् बुद्धि शांति सुख दो मां जन जीवन को
हे जग जननी सद्भाव स्नेह दो मन को , बस इतनी ही मनुहार मात जगदंबे
४ देवी गीत ...दर्शन के लिये , पूजन के लिये, जगदम्बा के दरबार चलो
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
दर्शन के लिये , पूजन के लिये, जगदम्बा के दरबार चलो
मन में श्रद्धा विश्वास लिये , मां का करते जयकार चलो !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
है डगर कठिन देवालय की , माँ पथ मेरा आसान करो
मैं द्वार दिवाले तक पहुँचू ,इतना मुझ पर एहसान करो !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
उँचे पर्वत पर है मंदिर , अनुपम है छटा छबि न्यारी है
नयनो से बरसती है करुणा , कहता हर एक पुजारि है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
मां ज्योति तुम्हारे कलशों की , जीवन में जगाती उजियाला
हरयारी हरे जवारों की , करती शीतल दुख की ज्वाला !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
जगजननि माँ शेरावाली ! महिमा अनमोल तुम्हारी है
जिस पर करती तुम कृपा वही , जग में सुख का अधिकारी है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
तुम सबको देती हो खुशियाँ , सब भक्त यही बतलाते हैं
जो निर्मल मन से जाते हैं वे झोली भर वापस आते है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
५ रहते भी नर्मदा किनारे प्यासे फिरते मारे मारे .......... देवी गीत
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
रहते भी नर्मदा किनारे प्यासे फिरते मारे मारे
भटकते दूर से थके हारे , आये दर्शन को माता तुम्हारे
भक्ति की भावना में नहाये , मन में आशा की ज्योति जगाये
सपनों की एक दुनियां सजाये , आये मां ! हम हैं मंदिर के द्वारे
चुन के विश्वास के फूल , लाके हल्दी , अक्षत औ चंदन बना के
थाली पूजा की पावन सजाके , पूजने को चरण मां तुम्हारे
सब तरफ जगमगा रही ज्योति , बड़ी अद्भुत है वैभव विभूति
पाता सब कुछ कृपा जिस पे होती , चाहिये हमें भी माँ सहारे
जग में जाहिर है करुणा तुम्हारी , भीड़ भक्तों की द्वारे है भारी
पूजा स्वीकार हो मां हमारी , हम भी आये हैं माँ बन भिखारी
माँ मुरादें हो अपनी पूरी , हम आये हैं झोली पसारे
हरी ही हरी होये किस्मत , दिवाले जैसे जवारे
६ ...... देवी गीत ...महिमा मां बड़ी तुम्हारी है
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
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नवरात्रि पर्व में पूजा की महिमा मां बड़ी तुम्हारी है
हर गाँव शहर , घर घर जन जन में पूजा की तैयारी है
सबके मन भाव सुमन विकसे , मौसम उमंग से पुलकित है
हर मंदिर मढ़िया देवालय में , भीड़ भक्त की भारी है
सात्विक मन की पूजा सबकी होती अक्सर है फलदायी
संसार तुम्हारी करुणा का , मां युग युग से आभारी है
श्रद्धा के सुमन भरा करते , जीवन में मधुर सुगंध सदा
आशीष चाहता इससे मां , तेरा हर चरण पुजारी है
अनुराग और विश्वास जिन्हें है अडिग तुम्हारे चरणों में
उन पर करुणा की वर्षा करने की माता अब बारी है
कई रूपों , नामों धामों में , है व्याप्त तुम्हारी चेतनता
अति भव्य शक्ति , गुण की ,महिमा तव जग में हे माँ न्यारी है
७ ...... देवी गीत ...मोरि नैया लगा दो पार मैया
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
मोरि नैया लगा दो पार मैया जीवन की
है विनती बारंबार मैया दुखिया मन की
तुम हो आदिशक्ति हे माता
सबका तुमसे सच्चा नाता
सब पर कृपा तुम्हारी जग में
महिमा अपरम्पार तुम्हारे आंगन की
हम आये तुम्हारे द्वार , कामना ले मन की
कोई न किसी का संग सँगाती
जलती जाती जीवन बाती
घट घट की माँ तुम्हें खबर सब
अभिलाषा एक बार तुम्हारे दर्शन की
दे दो माँ आधार , शरण दे चरणन की
झूठे जग के रिश्ते नाते
कोई किसी के काम न आते
करुणामयी माँ तुम जग तारिणी
झूठा है संसार चलन जहाँ अनबन की
माँ नैया है मझधार भँवर में जीवन की
कौन करे उस पार नैया जीवन की
मोरि नैया लगा दो पार मैया जीवन की
है विनती बारंबार मैया दुखिया मन की
८ ...... देवी गीत ...तुम्हारे दर्शन को
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
पावन नवरात्री की बेला , उमड़ी है माँ भीड़, तुम्हारे दर्शन को
मां सबकी तुम एक सहारा , पाने को आशीष तुम्हारा
आये चल के बड़ी दूर से , तुम्हें चढ़ाने नीर, तुम्हारे दर्शन को
तुम्हें ज्ञात हर मन की भाषा , आये हम भी ले अभिलाषा
छू के चरण शाँति पाने माँ , मन है बहुत अधीर , तुम्हारे दर्शन को
भाव सुमन रंगीन सजाये , पूजा की थाली ले आये
माला , श्रीफल , और भौग में , फल मेवा औ खीर , तुम्हारे दर्शन को
मन की कहने , मन की पाने , आशा की नई ज्योति जगाने
तपते जीवन पथ पर चलते , मन में है एक पीर , तुम्हारे दर्शन को
मां भू मंडल की तुम स्वामी , घट घट की हो अंतर्यामी
देकर आशीर्वाद , कृपाकर , लिख दो नई तकदीर , तुम्हारे दर्शन को
९ विश्व हो माँ ! कल्याणकारी
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
फोन ०७६१२६६२०५२
जो भी अपनी सुनाने व्यथायें
दूर से चलके मंदिर में आयें
दीजिये माता आशीष उनको
मन में जो गहरी आशा लगायें
दीन भक्तो को बस आसरा है , कृपा की जगत जननी तुम्हारी
गाँव शहरों में गलियों सड़क में
उमड़ी है हर जगह भीड़ भारी
करके दर्शन व्यथायें सुनाने
आरती पूजा करने तुम्हारी
मन के भावों को पावन बनाता , पर्व नवरात्र का पुण्यकारी
भजन की स्वर लहरियो से गुंजित
हो रहा प्यारा निर्मल गगन है
होम के धूम की गंध से भर
हर पुजारी का मन मगन है
माँ ! दो वर जिससे हो हित सबों का , मान के प्रार्थनायें हमारी
जिनके मन में बसा है अंधेरा
माँ ! वहाँ ज्ञान का हो उजाला
जो भी हैं द्वेष , दुर्भाव , कलुषित
उनका मन होवे सद्भाव वाला
किसी का न कोई अहित हो , नष्ट हों दुष्ट , सब दुराचारी
१० कुल देवी से प्रार्थना
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
OB 11 , MPEB , Rampur , Jabalpur
vivek1959@yahoo.co.in
कुल की गरिमा की उज्जवल माँ तुम शाश्वत पावन ज्योति
कुल की रक्षा , संवर्धन गति , उन्नति सन्मति तुमसे होती
तुम अविचल विमल असीम कृपा की शीतल छाया दात्री हो
यश सुख , गौरव देने वाली , इस कुल की भाग्य विधात्री हो
आशीष दीजिये माँ घर में , सबमें आपस में प्यार रहे
विनती है इस निर्बल मन की धन कीर्ति भरा परिवार रहे
पा ज्ञान ध्यान सन्मान , स्वास्थ्य , ढ़ृड़व्रती ,सभी विद्वान बने
यश का प्रकाश फैला सकने , इस कुल में सब गुणवान बनें
माँ क्षमा कीजिये बिसरा सब जानी अनजानी भूलों को
निर्मूल कीजिये सब पथ में आते संकट और शूलो को
वर दो बिल्कुल विचलित न करें ,दैनिक जीवन संग्राम हमें
हम सबका चरणो में माता , है बारम्बार प्रणाम तुम्हें
११ माँ दुर्गा की स्तुति
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
vivek1959@yahoo.co.in
हे सिंहवाहिनी , शक्तिशालिनी , कष्टहारिणी माँ दुर्गे
महिषासुर मर्दिनि,भव भय भंजनि , शक्तिदायिनी माँ दुर्गे
तुम निर्बल की रक्षक , भक्तो का बल विश्वास बढ़ाती हो
दुष्टो पर बल से विजय प्राप्त करने का पाठ पढ़ाती हो
हे जगजननी , रणचण्डी , रण में शत्रुनाशिनी माँ दुर्गे
जग के कण कण में महाशक्ति कीव्याप्त अमर तुम चिनगारी
ढ़१ड़ निस्चय की निर्भय प्रतिमा , जिससे डरते अत्याचारी
हे शक्ति स्वरूपा , विश्ववन्द्य , कालिका , मानिनि माँ दुर्गे
तुम परब्रम्ह की परम ज्योति , दुष्टो से जग की त्राता हो
पर भावुक भक्तो की कल्याणी परंवत्सला माता हो
निशिचर विदारिणी , जग विहारिणि , स्नेहदायिनी माँ दुर्गे .
१२ देवी गीत
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
फोन
०७६१२६६२०५२
आशीष उसे दो माँ अपना , दरबार तुम्हारे आया जो
कल्याण करो उस दुखिया का जो जग में गया सताया हो
मन्दिर में आते दीन दुखी , मन में भारी विश्वास लिये
अभिलाषा पूरी होने की , दर्शन से तुम्हारे , आश लिये
आकर के तुम्हारे द्वारे तक , मन को मिलती है शांति बड़ी
हे करुणामयी ! असहायों को , माँ अपनी आँचल छाया दो
आनन्द भरा होता जैसे , वर्षा की मन्द फुहारो में
औ" होता है संगीत मधुर , जैसे वीणा के तारो में
आल्हाद वही देती सबको , कलशो की जगमग ज्योति यहाँ
भरती उसकी भी झोली है , माँ शरण तुम्हारी आया जो
दिपती जो पावन ज्योति मधुर , देती है खुशी सब आँखों को
उत्साह बढ़ाती हर जन का , दे शक्ति पराजित पांखों को
जिनका न सहारा कोई कहीं , उनका बस तुम्ही सहारा हो
हो कृपा जगत जननी ऐसी , सब भक्तो का मनभाया हो
उपवास ,जाप ,पूजन अर्चन ,सब मन के ताप मिटाते हैं
इससे ही आरति , भण्डारों मे , लोग दूर दूर से आते हैं
अनुराग भरी तव कृपा दृष्टि से , पावन हो संसार सकल ,
सुख शांति से सबका हित हो माँ! हर घर में हर्ष समाया हो .
१३ लक्ष्मी स्तवन
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
vivek1959@yahoo.co.in
कल्याण दायिनी , धनप्रदे , माँ लक्ष्मी कमलासने
संसार को सुखप्रद बनाया , है तुम्हारे वास ने
चलती नहीं माँ जिंदगी , संसार में धन के बिना
जैसे कि आत्मा अमर होते हुये भी , तन कर बिना
निर्धन को भी निर्भय किया ,माँ तुम्ही के प्रकाश ने
हर एक मन में है तुम्हारी ,कृपा की मधु कामना
आशा लिये कर सक रहा , कठिनाईयों का सामना
जग को दिया आलोक हरदम , तुम्हारे विश्वास ने
संगीत सा आनन्द है , धन की मधुर खनकार में
संसार का व्यवहार सब , केंन्द्रित धन के प्यार में
सबके खुले हैं द्वार स्वागत में , तुम्हें सन्मानने
मन सदा करता रहा , मन से तुम्हारी साधना
सजी है पूजा की थाली , करने तेरी आराधना
माँ जगह हमको भी दो ,अपने चरण के पास में
१४ सरस्वती वन्दना
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
vivek1959@yahoo.co.in
शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !
हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना
आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,
चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !
सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना
बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना
रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और औ" ध्वंस है
बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे
ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई
बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई
उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में
भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे
चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में
जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में
थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में
हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा मधु भरा संसार दे .
नव रात्री पर्व सारे देश में नौ दस दिनों तक देवी पूजन , भक्तिभाव पूर्ण गायन , उपवास , बड़े बड़े पंडालों की स्थापना , और गरबा के आयोजन कर मनाया जाता है . देवी गीतों का प्रचार सब तरफ बढ़ गया है . पावन पर्व में गीत संगीत से पवित्र भअवना का प्रादुर्भाव और प्रसार बड़ा सुखद व मन भावन होता है . इसी दृष्टि से हर वर्ष नवरात्रि से पहले नये नये देवीगीत , जस , नौराता , के कैसेट्स बाजार में आ जाते हैं . दूर दूर गाँव ,शहरों में उत्सव समितियां ये कैसेट्स अनवरत बजाकर एक भाव भक्ति का वातावरण बना देती हैं . अब तो नवरात्रि के अनुकूल एस एम एस , रिंगटोन , वालपेपर आदि की भी मार्केटिंग हो रही है . बाजार की इस बेहिसाब माँग के चलते अनेक सस्तुआ शब्दों हल्के मनोरंजन वाले विकृत मानसिकता के देवी गीत भी विगत में सुनने को मिले . इनसे मन कोपीड़ा होती है , यह सांस्कृतिक पराभव ठीक नहीं है .
सुरुचिपूर्ण भक्ति , व देवी उपासना के लिये गीत संगीत ऐसा होना चाहिये जो श्रद्धा , विश्वास, सद्भाव , समर्पण तथा भक्ति को बढ़ावा दे .
इसी उद्देश्य से मैंने कुछ भावपूर्ण , सुन्दर , व सार्थक शब्दमय देवी गीतों की रचना की है . जो भी गायक , सी.डी. निर्माता , भक्त , धार्मिक संस्थायें चाहे वे इन सोद्देश्य गीतों को मुझसे निशुल्क जनहित में प्राप्त कर उन्हें प्रचारित करने हेतु कैसेट , सीडी बनवा सकते हैं . चाहें तो संपर्क करें .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
ओ बी ११ ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
१ देवी गीत .... चलो माँ के दर्शन करें
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
आया नवरात्रि का त्यौहार , चलो माँ के दर्शन करें
अंबे मां का लगा है दरबार , चलो माँ के दर्शन करें
माता के दरसन है पावन सुहावन
नैनों से झरता है करुणा का सावन
भक्तों की माँ ही आधार , चलो माँ के दर्शन करें
माता के मंदिर की शोभा निराली
उड़ती ध्वजा लाल मन हरने वाली
खुला सबके लिये मां का द्वार , चलो माँ के दर्शन करें
मंदिर में जलती सुहानी वो जोती
जो मन के सब मैल किरणो से धोती
माता सुनती हैं सबकी पुकार चलो माँ के दर्शन करें
२ देवी गीत .... हम द्वार तुम्हारे आये हैं
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
Email vivek1959@yahoo.co.in
माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं
एक झलक ज्योती की पाने सपने ये नैन सजाये हैं
पूजा की रीति विधानों का माता है हमको ज्ञान नही
पाने को तुम्हारी कृपादृष्टि के सिवा दूसरा ध्यान नहीं
फल चंदन माला धूप दीप से पूजन थाल सजाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं , मां द्वार तुम्हारे आये हैं
जीवन जंजालों में उलझा , मन द्विविधा में अकुलाता है
भटका है भूल भुलैया में निर्णय नसही कर पाता है
मां आँचल की छाया दो हमको , हम माया में भरमाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं , हम द्वार तुम्हारे आये हैं
जिनका न सहारा कोई माँ , उनका तुम एक सहारा हो
दुखिया मन का दुख दूर करो , सुखमय संसार हमारा हो
आशीष दो मां उन भक्तों को जो , तुम से आश लगाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं ,सब द्वार तुम्हारे आये हैं
३ देवी गीत .... मात जगदंबे
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
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हे जग की पालनहार मात जगदंबे
हम आये तुम्हारे द्वार मात जगदंबे
तुम आदि शक्ति इस जग की मंगलकारी
तीनों लोकों में महिमा बड़ी तुम्हारी , इस मन की सुनो पुकार मात जगदंबे
देवों का दल दनुजों से था जब हारा
असुरों को माँ तुमने रण में संहारा , तव करुणा अपरम्पार मात जगदंबे
चलता सारा संसार तुम्हारी दम से
माँ क्षमा करो सब भूल हुई जो हम से , तुम जीवन की आधार मात जगदंबे
हर जन को जग में भटकाती है माया
बच पाया वह जो शरण तुम्हारी है पाया , माया मय है संसार मात जगदंबे
माँ डूब रही नित भवसागर में नैया
है दूर किनारा कोई नहीं खिवैया , संकट से करो उबार मात जगदंबे
सद् बुद्धि शांति सुख दो मां जन जीवन को
हे जग जननी सद्भाव स्नेह दो मन को , बस इतनी ही मनुहार मात जगदंबे
४ देवी गीत ...दर्शन के लिये , पूजन के लिये, जगदम्बा के दरबार चलो
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
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दर्शन के लिये , पूजन के लिये, जगदम्बा के दरबार चलो
मन में श्रद्धा विश्वास लिये , मां का करते जयकार चलो !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
है डगर कठिन देवालय की , माँ पथ मेरा आसान करो
मैं द्वार दिवाले तक पहुँचू ,इतना मुझ पर एहसान करो !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
उँचे पर्वत पर है मंदिर , अनुपम है छटा छबि न्यारी है
नयनो से बरसती है करुणा , कहता हर एक पुजारि है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
मां ज्योति तुम्हारे कलशों की , जीवन में जगाती उजियाला
हरयारी हरे जवारों की , करती शीतल दुख की ज्वाला !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
जगजननि माँ शेरावाली ! महिमा अनमोल तुम्हारी है
जिस पर करती तुम कृपा वही , जग में सुख का अधिकारी है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
तुम सबको देती हो खुशियाँ , सब भक्त यही बतलाते हैं
जो निर्मल मन से जाते हैं वे झोली भर वापस आते है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
५ रहते भी नर्मदा किनारे प्यासे फिरते मारे मारे .......... देवी गीत
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
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रहते भी नर्मदा किनारे प्यासे फिरते मारे मारे
भटकते दूर से थके हारे , आये दर्शन को माता तुम्हारे
भक्ति की भावना में नहाये , मन में आशा की ज्योति जगाये
सपनों की एक दुनियां सजाये , आये मां ! हम हैं मंदिर के द्वारे
चुन के विश्वास के फूल , लाके हल्दी , अक्षत औ चंदन बना के
थाली पूजा की पावन सजाके , पूजने को चरण मां तुम्हारे
सब तरफ जगमगा रही ज्योति , बड़ी अद्भुत है वैभव विभूति
पाता सब कुछ कृपा जिस पे होती , चाहिये हमें भी माँ सहारे
जग में जाहिर है करुणा तुम्हारी , भीड़ भक्तों की द्वारे है भारी
पूजा स्वीकार हो मां हमारी , हम भी आये हैं माँ बन भिखारी
माँ मुरादें हो अपनी पूरी , हम आये हैं झोली पसारे
हरी ही हरी होये किस्मत , दिवाले जैसे जवारे
६ ...... देवी गीत ...महिमा मां बड़ी तुम्हारी है
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
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नवरात्रि पर्व में पूजा की महिमा मां बड़ी तुम्हारी है
हर गाँव शहर , घर घर जन जन में पूजा की तैयारी है
सबके मन भाव सुमन विकसे , मौसम उमंग से पुलकित है
हर मंदिर मढ़िया देवालय में , भीड़ भक्त की भारी है
सात्विक मन की पूजा सबकी होती अक्सर है फलदायी
संसार तुम्हारी करुणा का , मां युग युग से आभारी है
श्रद्धा के सुमन भरा करते , जीवन में मधुर सुगंध सदा
आशीष चाहता इससे मां , तेरा हर चरण पुजारी है
अनुराग और विश्वास जिन्हें है अडिग तुम्हारे चरणों में
उन पर करुणा की वर्षा करने की माता अब बारी है
कई रूपों , नामों धामों में , है व्याप्त तुम्हारी चेतनता
अति भव्य शक्ति , गुण की ,महिमा तव जग में हे माँ न्यारी है
७ ...... देवी गीत ...मोरि नैया लगा दो पार मैया
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
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मोरि नैया लगा दो पार मैया जीवन की
है विनती बारंबार मैया दुखिया मन की
तुम हो आदिशक्ति हे माता
सबका तुमसे सच्चा नाता
सब पर कृपा तुम्हारी जग में
महिमा अपरम्पार तुम्हारे आंगन की
हम आये तुम्हारे द्वार , कामना ले मन की
कोई न किसी का संग सँगाती
जलती जाती जीवन बाती
घट घट की माँ तुम्हें खबर सब
अभिलाषा एक बार तुम्हारे दर्शन की
दे दो माँ आधार , शरण दे चरणन की
झूठे जग के रिश्ते नाते
कोई किसी के काम न आते
करुणामयी माँ तुम जग तारिणी
झूठा है संसार चलन जहाँ अनबन की
माँ नैया है मझधार भँवर में जीवन की
कौन करे उस पार नैया जीवन की
मोरि नैया लगा दो पार मैया जीवन की
है विनती बारंबार मैया दुखिया मन की
८ ...... देवी गीत ...तुम्हारे दर्शन को
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
C / 6 ,विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो. ०९४२५४८४४५२
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पावन नवरात्री की बेला , उमड़ी है माँ भीड़, तुम्हारे दर्शन को
मां सबकी तुम एक सहारा , पाने को आशीष तुम्हारा
आये चल के बड़ी दूर से , तुम्हें चढ़ाने नीर, तुम्हारे दर्शन को
तुम्हें ज्ञात हर मन की भाषा , आये हम भी ले अभिलाषा
छू के चरण शाँति पाने माँ , मन है बहुत अधीर , तुम्हारे दर्शन को
भाव सुमन रंगीन सजाये , पूजा की थाली ले आये
माला , श्रीफल , और भौग में , फल मेवा औ खीर , तुम्हारे दर्शन को
मन की कहने , मन की पाने , आशा की नई ज्योति जगाने
तपते जीवन पथ पर चलते , मन में है एक पीर , तुम्हारे दर्शन को
मां भू मंडल की तुम स्वामी , घट घट की हो अंतर्यामी
देकर आशीर्वाद , कृपाकर , लिख दो नई तकदीर , तुम्हारे दर्शन को
९ विश्व हो माँ ! कल्याणकारी
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
फोन ०७६१२६६२०५२
जो भी अपनी सुनाने व्यथायें
दूर से चलके मंदिर में आयें
दीजिये माता आशीष उनको
मन में जो गहरी आशा लगायें
दीन भक्तो को बस आसरा है , कृपा की जगत जननी तुम्हारी
गाँव शहरों में गलियों सड़क में
उमड़ी है हर जगह भीड़ भारी
करके दर्शन व्यथायें सुनाने
आरती पूजा करने तुम्हारी
मन के भावों को पावन बनाता , पर्व नवरात्र का पुण्यकारी
भजन की स्वर लहरियो से गुंजित
हो रहा प्यारा निर्मल गगन है
होम के धूम की गंध से भर
हर पुजारी का मन मगन है
माँ ! दो वर जिससे हो हित सबों का , मान के प्रार्थनायें हमारी
जिनके मन में बसा है अंधेरा
माँ ! वहाँ ज्ञान का हो उजाला
जो भी हैं द्वेष , दुर्भाव , कलुषित
उनका मन होवे सद्भाव वाला
किसी का न कोई अहित हो , नष्ट हों दुष्ट , सब दुराचारी
१० कुल देवी से प्रार्थना
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
OB 11 , MPEB , Rampur , Jabalpur
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कुल की गरिमा की उज्जवल माँ तुम शाश्वत पावन ज्योति
कुल की रक्षा , संवर्धन गति , उन्नति सन्मति तुमसे होती
तुम अविचल विमल असीम कृपा की शीतल छाया दात्री हो
यश सुख , गौरव देने वाली , इस कुल की भाग्य विधात्री हो
आशीष दीजिये माँ घर में , सबमें आपस में प्यार रहे
विनती है इस निर्बल मन की धन कीर्ति भरा परिवार रहे
पा ज्ञान ध्यान सन्मान , स्वास्थ्य , ढ़ृड़व्रती ,सभी विद्वान बने
यश का प्रकाश फैला सकने , इस कुल में सब गुणवान बनें
माँ क्षमा कीजिये बिसरा सब जानी अनजानी भूलों को
निर्मूल कीजिये सब पथ में आते संकट और शूलो को
वर दो बिल्कुल विचलित न करें ,दैनिक जीवन संग्राम हमें
हम सबका चरणो में माता , है बारम्बार प्रणाम तुम्हें
११ माँ दुर्गा की स्तुति
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
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हे सिंहवाहिनी , शक्तिशालिनी , कष्टहारिणी माँ दुर्गे
महिषासुर मर्दिनि,भव भय भंजनि , शक्तिदायिनी माँ दुर्गे
तुम निर्बल की रक्षक , भक्तो का बल विश्वास बढ़ाती हो
दुष्टो पर बल से विजय प्राप्त करने का पाठ पढ़ाती हो
हे जगजननी , रणचण्डी , रण में शत्रुनाशिनी माँ दुर्गे
जग के कण कण में महाशक्ति कीव्याप्त अमर तुम चिनगारी
ढ़१ड़ निस्चय की निर्भय प्रतिमा , जिससे डरते अत्याचारी
हे शक्ति स्वरूपा , विश्ववन्द्य , कालिका , मानिनि माँ दुर्गे
तुम परब्रम्ह की परम ज्योति , दुष्टो से जग की त्राता हो
पर भावुक भक्तो की कल्याणी परंवत्सला माता हो
निशिचर विदारिणी , जग विहारिणि , स्नेहदायिनी माँ दुर्गे .
१२ देवी गीत
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
फोन
०७६१२६६२०५२
आशीष उसे दो माँ अपना , दरबार तुम्हारे आया जो
कल्याण करो उस दुखिया का जो जग में गया सताया हो
मन्दिर में आते दीन दुखी , मन में भारी विश्वास लिये
अभिलाषा पूरी होने की , दर्शन से तुम्हारे , आश लिये
आकर के तुम्हारे द्वारे तक , मन को मिलती है शांति बड़ी
हे करुणामयी ! असहायों को , माँ अपनी आँचल छाया दो
आनन्द भरा होता जैसे , वर्षा की मन्द फुहारो में
औ" होता है संगीत मधुर , जैसे वीणा के तारो में
आल्हाद वही देती सबको , कलशो की जगमग ज्योति यहाँ
भरती उसकी भी झोली है , माँ शरण तुम्हारी आया जो
दिपती जो पावन ज्योति मधुर , देती है खुशी सब आँखों को
उत्साह बढ़ाती हर जन का , दे शक्ति पराजित पांखों को
जिनका न सहारा कोई कहीं , उनका बस तुम्ही सहारा हो
हो कृपा जगत जननी ऐसी , सब भक्तो का मनभाया हो
उपवास ,जाप ,पूजन अर्चन ,सब मन के ताप मिटाते हैं
इससे ही आरति , भण्डारों मे , लोग दूर दूर से आते हैं
अनुराग भरी तव कृपा दृष्टि से , पावन हो संसार सकल ,
सुख शांति से सबका हित हो माँ! हर घर में हर्ष समाया हो .
१३ लक्ष्मी स्तवन
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
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कल्याण दायिनी , धनप्रदे , माँ लक्ष्मी कमलासने
संसार को सुखप्रद बनाया , है तुम्हारे वास ने
चलती नहीं माँ जिंदगी , संसार में धन के बिना
जैसे कि आत्मा अमर होते हुये भी , तन कर बिना
निर्धन को भी निर्भय किया ,माँ तुम्ही के प्रकाश ने
हर एक मन में है तुम्हारी ,कृपा की मधु कामना
आशा लिये कर सक रहा , कठिनाईयों का सामना
जग को दिया आलोक हरदम , तुम्हारे विश्वास ने
संगीत सा आनन्द है , धन की मधुर खनकार में
संसार का व्यवहार सब , केंन्द्रित धन के प्यार में
सबके खुले हैं द्वार स्वागत में , तुम्हें सन्मानने
मन सदा करता रहा , मन से तुम्हारी साधना
सजी है पूजा की थाली , करने तेरी आराधना
माँ जगह हमको भी दो ,अपने चरण के पास में
१४ सरस्वती वन्दना
प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "
vivek1959@yahoo.co.in
शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !
हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना
आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,
चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !
सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना
बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना
रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और औ" ध्वंस है
बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे
ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई
बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई
उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में
भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे
चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में
जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में
थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में
हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा मधु भरा संसार दे .
बुधवार, 8 सितंबर 2010
दिल्ली में राष्ट्रमंडलीय क्रीडोत्सव... सार्थक ‘थीम-गीत‘
दिल्ली में राष्ट्रमंडलीय क्रीडोत्सव के उदघाटन अवसर पर दिनांक 03.10.2010 को नेहरू स्टेडियम में गाकर प्रस्तुत किये जाने हेतु सार्थक ‘थीम-गीत‘
राष्ट्र मंडल देश के प्रतिभागियो ! तव स्वागतम्,
आपके इस आगमन पर, सब नमन करते हैं हम।
दिखायें निज खेल और कलाओं की चतुराईयां
मधुर मेल मिलाप से पट जायें मन की खाईयां।
परस्पर कर प्रदर्षन, ऊंचाईयां सब पा सके,
नयन में सपने सजाये, गीत हम मिल गा सके।
हो सके सबके लिये कल्याणकारी यह घडी,
खेलो की लडियों में जुडकर हो सफल यह शुभ कड़ी।
हर्ष के जयकार से गूंजे सघन भारत गगन,
विश्व व्यापी भेद भावों का यहां होवे शमन।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
राष्ट्र मंडल देश के प्रतिभागियो ! तव स्वागतम्,
आपके इस आगमन पर, सब नमन करते हैं हम।
दिखायें निज खेल और कलाओं की चतुराईयां
मधुर मेल मिलाप से पट जायें मन की खाईयां।
परस्पर कर प्रदर्षन, ऊंचाईयां सब पा सके,
नयन में सपने सजाये, गीत हम मिल गा सके।
हो सके सबके लिये कल्याणकारी यह घडी,
खेलो की लडियों में जुडकर हो सफल यह शुभ कड़ी।
हर्ष के जयकार से गूंजे सघन भारत गगन,
विश्व व्यापी भेद भावों का यहां होवे शमन।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252
शुक्रवार, 27 अगस्त 2010
देश दिखता मुझे बहुत बीमार है...........
देश दिखता मुझे बहुत बीमार है...........
(प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘ ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र. )
है बुरा हाल मंहगाई की मार है, देश दिखता मुझे बहुत बीमार है।
गांव की हर गली झोपडी है दुखी, भूख से बाल-बच्चों में चीत्कार है।
शांति उठ सी गई आज धरती से है, लोग सारे ही व्याकुल है बेचैन हैं
पेट की आग को बुझाने की फिकर में, सभी जन सतत व्यस्त दिन रैन है।
जो जहाँ भी है उलझन में गंभीर है, आयें दिन बढती जाती नई पीर है।
रोजी रोटी के चक्कर में है सब फंसे, साथ देती नहीं किंतु तकदीर है।
प्रदर्शन है कहीं, कहीं हड़ताल है, कहीं करफ्यू कहीं बंद बाजार है।
लाठियाँ, गोलियाँ औ‘ गिरफ्तारियाँ, जो जहाँ भी है भड़भड़ से बेजार है।
समझ आता नहीं, क्यों ये क्या हो रहा, लोग आजाद हैं डर किसी को नहीं।
मानता नहीं कोई किसी का कहा, जिसे जो मन में आता है करता वहीं।
बातों में सब हुये बड़े होषियार है, सिर्फ लेने को हर लाभ आगे खड़े।
किंतु सहयोग और समझारी भुला, स्वार्थ हित सिर्फ लड़ने को रहते अड़े है।
आदमी खो चुका आदमियत इस तरह, कहीं कोई न दिखता समझदार है,
जैसे रिष्ता किसी का किसी से नहीं, जिसे देखो वो लड़ने को तैयार है।
समझते लोग कम है नियम कायदे, देखते सभी अपने ही बस फायदे,
राजनेताओं को याद रहते नहीं, कभी जनता से जो भी किये वायदे।
चाह उनकी हैं पहले सॅंवर जाये घर, देशहित की किसी को नहीं कोई फिकर,
बढ़ रही है समस्यायें नित नई मगर, रीति और नीति में कोई न दिखता असर।
घूंस लेना औ‘ देना चलन बन गई, सीधा- सच्चा जहाँ जो हैं लाचार है।
रोज घपले घोटाले है सरकार में, किंतु होता नहीं कोई उपचार है।
योजनायें नई बनती है आयें दिन, किंतु निर्विघ्न होने न पातीं सफल।
बढ़ता जाता अंधेरा हर एक क्षेत्र में, डर है शायद न हो घना और ज्यादा कल।
सिर्फ आशा है भगवान से, उठ चुका आपसी प्रेम सद्भाव विष्वास है।
देष की दुर्दशा देख होता है दुख, जिसका उज्जवल रहा पिछला इतिहास है।
आज की रीति हुई काम जिससे बने, कहा जाता उसी को सदाचार है।
जो निरूपयोगी उसका तिरस्कार है, आज का ‘विदग्ध‘ यह ही सुसंस्कार है।
कल क्या होगा यह कहना बहुत ही कठिन है, कोई भी नहीं दिखता खबरदार है
जिसे देखों जहाँ देखों, वह ही वहाँ कम या ज्यादा बराबर गुनहगार है।
(प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘ ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र. )
है बुरा हाल मंहगाई की मार है, देश दिखता मुझे बहुत बीमार है।
गांव की हर गली झोपडी है दुखी, भूख से बाल-बच्चों में चीत्कार है।
शांति उठ सी गई आज धरती से है, लोग सारे ही व्याकुल है बेचैन हैं
पेट की आग को बुझाने की फिकर में, सभी जन सतत व्यस्त दिन रैन है।
जो जहाँ भी है उलझन में गंभीर है, आयें दिन बढती जाती नई पीर है।
रोजी रोटी के चक्कर में है सब फंसे, साथ देती नहीं किंतु तकदीर है।
प्रदर्शन है कहीं, कहीं हड़ताल है, कहीं करफ्यू कहीं बंद बाजार है।
लाठियाँ, गोलियाँ औ‘ गिरफ्तारियाँ, जो जहाँ भी है भड़भड़ से बेजार है।
समझ आता नहीं, क्यों ये क्या हो रहा, लोग आजाद हैं डर किसी को नहीं।
मानता नहीं कोई किसी का कहा, जिसे जो मन में आता है करता वहीं।
बातों में सब हुये बड़े होषियार है, सिर्फ लेने को हर लाभ आगे खड़े।
किंतु सहयोग और समझारी भुला, स्वार्थ हित सिर्फ लड़ने को रहते अड़े है।
आदमी खो चुका आदमियत इस तरह, कहीं कोई न दिखता समझदार है,
जैसे रिष्ता किसी का किसी से नहीं, जिसे देखो वो लड़ने को तैयार है।
समझते लोग कम है नियम कायदे, देखते सभी अपने ही बस फायदे,
राजनेताओं को याद रहते नहीं, कभी जनता से जो भी किये वायदे।
चाह उनकी हैं पहले सॅंवर जाये घर, देशहित की किसी को नहीं कोई फिकर,
बढ़ रही है समस्यायें नित नई मगर, रीति और नीति में कोई न दिखता असर।
घूंस लेना औ‘ देना चलन बन गई, सीधा- सच्चा जहाँ जो हैं लाचार है।
रोज घपले घोटाले है सरकार में, किंतु होता नहीं कोई उपचार है।
योजनायें नई बनती है आयें दिन, किंतु निर्विघ्न होने न पातीं सफल।
बढ़ता जाता अंधेरा हर एक क्षेत्र में, डर है शायद न हो घना और ज्यादा कल।
सिर्फ आशा है भगवान से, उठ चुका आपसी प्रेम सद्भाव विष्वास है।
देष की दुर्दशा देख होता है दुख, जिसका उज्जवल रहा पिछला इतिहास है।
आज की रीति हुई काम जिससे बने, कहा जाता उसी को सदाचार है।
जो निरूपयोगी उसका तिरस्कार है, आज का ‘विदग्ध‘ यह ही सुसंस्कार है।
कल क्या होगा यह कहना बहुत ही कठिन है, कोई भी नहीं दिखता खबरदार है
जिसे देखों जहाँ देखों, वह ही वहाँ कम या ज्यादा बराबर गुनहगार है।
रविवार, 9 मई 2010
भूटान में हुये भारत पाक संवाद के परिप्रेक्ष्य में
भूटान में हुये भारत पाक संवाद के परिप्रेक्ष्य में
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
आये दिन काश्मीर में बारूद का उठता धँआ
मेल मिल्लत का हरेक संदेश होता अनसुना
हम निभाते आये सारे आदमियत के वायदे
पर पड़ोसी उलझने का खोजता रहता खुआ
कैसे हो कोई सुलह की बात इन हालात में ?
केसरों की क्यारियों में हर कदम बिखरे हैं बम
दुश्मनी की भावना उनकी न हो पाई है कम
जब जहाँ नेता मिले , मिले हाथ , कुछ बातें हुईं
पर किये गये वायदों पर कब उठाये गये कदम ?
कैसे हो विश्वास हमको उनकी ऐसी बात में ?
हो रही मुठभेड़ अब भी वायदों के बाद भी
मस्जिदें दरगाहें अब तक हैं पड़ी बरबाद ही
सरहदों को तोड़ घुस आते नये घुसपैठिये
मन न मिल पायें तो झूठे हैं बड़े संवाद भी
बदलते कब किसी के भी मन कभी एक रात में ?
पिछले अनुभव सामने हैं लंबी लंबी बात के
घाव रिसते आज भी हैं किये गये आघात के
भेद भारी है वहाँ आवाम औ" सरकार में
दिख रहे आसार नई जनक्रांति के उत्पात के
दिखावा ज्यादा सचाई कम है हर अनुपात में
हाथ अब तक क्या लगा वर्षों के वाद विवाद में
समझ आते भाव मन के साफ हर संवाद में
जवानों ने जान देकर खून से सींचा वतन
स्नेह का विश्वास कैसे जगे अब जल्लाद में ?
क्या पता घटनायें क्या हों आ रही बरसात में ?
कवि सुप्रसिद्ध गीतकार ,अनुवादक , शिक्षाविद , अर्थशास्त्री व समाजसेवी हैं . वतन को नमन , अनुगुंजन , ईशाराधन , आदि कृतियां पुस्तकाकार प्रकाशित व राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हैं
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
आये दिन काश्मीर में बारूद का उठता धँआ
मेल मिल्लत का हरेक संदेश होता अनसुना
हम निभाते आये सारे आदमियत के वायदे
पर पड़ोसी उलझने का खोजता रहता खुआ
कैसे हो कोई सुलह की बात इन हालात में ?
केसरों की क्यारियों में हर कदम बिखरे हैं बम
दुश्मनी की भावना उनकी न हो पाई है कम
जब जहाँ नेता मिले , मिले हाथ , कुछ बातें हुईं
पर किये गये वायदों पर कब उठाये गये कदम ?
कैसे हो विश्वास हमको उनकी ऐसी बात में ?
हो रही मुठभेड़ अब भी वायदों के बाद भी
मस्जिदें दरगाहें अब तक हैं पड़ी बरबाद ही
सरहदों को तोड़ घुस आते नये घुसपैठिये
मन न मिल पायें तो झूठे हैं बड़े संवाद भी
बदलते कब किसी के भी मन कभी एक रात में ?
पिछले अनुभव सामने हैं लंबी लंबी बात के
घाव रिसते आज भी हैं किये गये आघात के
भेद भारी है वहाँ आवाम औ" सरकार में
दिख रहे आसार नई जनक्रांति के उत्पात के
दिखावा ज्यादा सचाई कम है हर अनुपात में
हाथ अब तक क्या लगा वर्षों के वाद विवाद में
समझ आते भाव मन के साफ हर संवाद में
जवानों ने जान देकर खून से सींचा वतन
स्नेह का विश्वास कैसे जगे अब जल्लाद में ?
क्या पता घटनायें क्या हों आ रही बरसात में ?
कवि सुप्रसिद्ध गीतकार ,अनुवादक , शिक्षाविद , अर्थशास्त्री व समाजसेवी हैं . वतन को नमन , अनुगुंजन , ईशाराधन , आदि कृतियां पुस्तकाकार प्रकाशित व राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हैं
गुरुवार, 6 मई 2010
माँ नर्मदा की मनोव्यथा
माँ नर्मदा की मनोव्यथा
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
जो मीठा पावन जल देकर हमें सुस्वस्थ बनाती है
जिसकी घाटी औ" जलधारा सबके मन को भाती है
तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिसकी होती है पूजा
वही नर्मदा माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है
पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं
कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं
मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं
गंदे परनाले नगरों के मुझमें डाले जाते हैं
जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट औ" घाटों में
सैर सपाटे वालों यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में
मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में
समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में
ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ?
पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी
मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में
धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में
प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी
वे मुझमें डुबकी , तर्पण ,पूजन ,आरति के अभिलाषी
सब तुम मुझको माँ कहते , तो माँ सा बेटों प्यार करो
घृणित मलिनता से उबार तुम सब मेरे दुख दर्द हरो
सही धर्म का अर्थ समझ यदि सब हितकर व्यवहार करें
तो न किसी को कठिनाई हो , कहीं न जलचर जीव मरें
छुद्र स्वार्थ ना समझी से जब आपस में टकराते हैं
इस धरती पर तभी अचानक विकट बवण्डर आते हैं
प्रकृति आज है घायल , मानव की बढ़ती मनमानी से
लोग कर रहे अहित स्वतः का , अपनी ही नादानी से
ले निर्मल जल , निज क्षमता भर अगर न मैं बह पाउंगी
नगर गांव, कृषि वन , जन मन को क्या खुश रख पाउँगी ?
प्रकृति चक्र की समझ क्रियायें ,परिपोषक व्यवहार करो
बुरी आदतें बदलो अपनी , जननी का श्रंगार करो
बाँटो सबको प्यार , स्वच्छता रखो , प्रकृति उद्धार करो
जहाँ जहाँ भी विकृति बढ़ी है बढ़कर वहाँ सुधार करो
गंगा यमुना सब नदियों की मुझ सी राम कहानी है
इसीलिये हो रहा कठिन अब मिलना सबको पानी है
समझो जीवन की परिभाषा , छोड़ो मन की नादानी
सबके मन से हटे प्रदूषण , तो हों सुखी सभी प्राणी !!
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
जो मीठा पावन जल देकर हमें सुस्वस्थ बनाती है
जिसकी घाटी औ" जलधारा सबके मन को भाती है
तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिसकी होती है पूजा
वही नर्मदा माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है
पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं
कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं
मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं
गंदे परनाले नगरों के मुझमें डाले जाते हैं
जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट औ" घाटों में
सैर सपाटे वालों यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में
मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में
समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में
ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ?
पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी
मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में
धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में
प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी
वे मुझमें डुबकी , तर्पण ,पूजन ,आरति के अभिलाषी
सब तुम मुझको माँ कहते , तो माँ सा बेटों प्यार करो
घृणित मलिनता से उबार तुम सब मेरे दुख दर्द हरो
सही धर्म का अर्थ समझ यदि सब हितकर व्यवहार करें
तो न किसी को कठिनाई हो , कहीं न जलचर जीव मरें
छुद्र स्वार्थ ना समझी से जब आपस में टकराते हैं
इस धरती पर तभी अचानक विकट बवण्डर आते हैं
प्रकृति आज है घायल , मानव की बढ़ती मनमानी से
लोग कर रहे अहित स्वतः का , अपनी ही नादानी से
ले निर्मल जल , निज क्षमता भर अगर न मैं बह पाउंगी
नगर गांव, कृषि वन , जन मन को क्या खुश रख पाउँगी ?
प्रकृति चक्र की समझ क्रियायें ,परिपोषक व्यवहार करो
बुरी आदतें बदलो अपनी , जननी का श्रंगार करो
बाँटो सबको प्यार , स्वच्छता रखो , प्रकृति उद्धार करो
जहाँ जहाँ भी विकृति बढ़ी है बढ़कर वहाँ सुधार करो
गंगा यमुना सब नदियों की मुझ सी राम कहानी है
इसीलिये हो रहा कठिन अब मिलना सबको पानी है
समझो जीवन की परिभाषा , छोड़ो मन की नादानी
सबके मन से हटे प्रदूषण , तो हों सुखी सभी प्राणी !!
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
व्यक्ति की विन्रमता , सदाचार , गुणवत्ता और कार्यकुशलता को महत्व व सम्मान देने का युग जाने क्यों समाप्त हो गया है .
व्यक्ति की विन्रमता , सदाचार , गुणवत्ता और कार्यकुशलता को महत्व व सम्मान देने का युग जाने क्यों समाप्त हो गया है .
हमारे समय का व्यक्ति की विन्रमता , सदाचार , गुणवत्ता और कार्यकुशलता को महत्व व सम्मान देने का युग जाने क्यों समाप्त हो गया है ? आज समाज में चापलूसी , झूठी प्रशंसा ,और अपना मतलब पूरा करने के लिये किसी भी सीमा तक गिरकर , काम निकालने में निपुण व्यक्ति ही योग्य माना जाता है . उसे टैक्ट फुल कहा जाता है .शासकीय नौकरियों में अनेको ऐसे लोग दिखते हैं जो नौकरी तो सरकारी कर रहे हैं , पर कथित रूप से टैक्टफुल बनकर वे व्यवसाय अपना ही कर रहे हैं , चिकित्सा , शिक्षा व अन्य क्षेत्रों से जुड़े अनेक व्यक्ति अपनी सरकारी नौकरी का अपने निहित हितो के लिये उपयोग करते सहज ही मिल जाते हैं . मन में भले ही हम ऐसे व्यक्तियो की वास्तविकता समझते हुये , पीठ पीछे उनकी निंदा करें , पर अपनी चाटुकारिता के चलते ऐसे लोग लगातार फलीभूत ही होते दिखते हैं , व समाज में सफल माने जाते हैं . इस प्रवृति से शासकीय सेवा के वास्तविक उद्शेश्य ही दिग्भ्रमित हो रहे हैं .
हमारे समय में कर्तव्य निष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थ की चापलूसी की बू पाकर उसे झिड़क देते थे , कर्तव्यपरायण , गुणी व्यक्ति की मुक्त कंठ प्रशंसा करते थे , व अपने अधिकारो का उपयोग करते हुये ऐसे व्यक्ति को भरपूर सहयोग देते थे . जनहित के उद्देश्य को प्रमुखता दी जाती थी .
वर्तमान सामाजिक मानसिकता व स्वार्थसिक्त व्यवहारों को देख सुनकर मुझे अपने सेवाकाल के १९५० के दशक के मेरे अधिकारियों के कर्तव्य के प्रति संवेदनशील समर्पण के व्यवहार बरबस याद आते हें . तब सी पी एण्ड बरार राज्य था , वर्ष १९५० में , मैं अकोला में हिन्दी शिक्षक था . मुझे याद है उस वर्ष ग्रीष्मावकाश १ मई से १५ जून तक था . १६ जून से प्रौढ़ शिक्षा की कक्षायें लगनी थीं . जब १४जून तक मुझे मेरा पदांकन आदेश नहीं मिला तो मैं स्वयं ही अपने कर्तव्य के प्रति जागरूखता के चलते अकोला पहुंच गया व संभागीय शिक्षा अधिक्षक महोदय से सीधे उनके निवास पर सुबह ही मिला , मुझे स्मरण है कि, मुझे देकते ही उन्होंने मेरे आने का कारण पूछा , व यह जानकर कि मुझे पदांकन आदेश नही मिल पाया है , वे अपने साथ अपनी कार में ही मुझे कार्यालय ले गये , व संबंधित लिपिक को उसकी ढ़ीली कार्य शैली हेतु डांट लगाई , व मुझे तुरंत मेरा आदेश दिलवाया .मेरा व उन अधिकारि का केवल इतना संबंध था कि उन्होंने पिछले दो तीन वर्षो में ,मेरी कार्य कुशलता , क्षमता व व्यवहार देखा था और अपनी रिपोर्ट में मेरे लिये प्रशंसात्मक टिप्पणियां लिखी थीं . मैं समझता हूं कि शायद आज के परिवेश में कोई अधिकारी यदि इस तरह आगे बढ़कर किसी अधीनस्थ कर्मचारी की मदद करे तो शायद उसकी निष्ठा व ईमानदारी पर ही लोग खुसुर पुसुर करने लगें . युग व्यवहार में यह परिवर्तन कब और किस तरह आ गया है समझ से परे है .
हमारी पीढ़ी ने लालटेन और ढ़िबरियो के उजाले को चमचमाती बिजली के प्रकाश में बदलते देखा है . पोस्टकार्ड और तार के इंतजार भरे संदेशों को मोबाइल के त्वरित संपर्को में बदलते हम जी रहे हैं . लम्बी इंतजार भरी थका देने वाली यात्राओ की जगह आरामदेह हवाई यात्राओ से दूरियां सिमट सी गई हैं , हम इसके भी गवाह हैं . मुझे याद है कि १९५० के ही दशक में जब राज्यपाल हमारे मण्डला आने वाले थे तो उनका छपा हुआ टूर प्रोग्राम महीने भर पहले हमारे पास आया था , शायद उसकी एक प्रिंटेड प्रति अब भी मेरे पास सुरक्षित है , अब तो शायद स्वयं राज्यपाल महोदय भी न जानते होंगे कि दो दिन बाद उन्हें कहां जाना पड़ सकता है . भौतिक सुख संसाधनो का विस्तार जितना हमारी पीढ़ी ने अनुभव किया है शायद ही हमसे पहले की किसी पीढ़ी ने किया हो . लड़कियों की शिक्षा के विस्तार से स्त्रियो के जीवन में जो सकारात्मक क्राति आई है वह स्वागतेय है , पर उनके पहनावे में जैसे पाश्चात्य परिवर्तन हम देख रहे हैं , हमसे पहले की पीढ़ी ने कभी नही देखे होंगे . पर इस सबके साथ यह भी उतना ही कटु सत्य है , जिसे मैं स्वीकार करना चाहता हूं और उस पर गहन क्षोभ व अफसोस व्यक्त करना चाहता हूं कि लोक व्यवहार में जितना सामाजिक नैतिक अधोपतन हमारी पीढ़ी ने देखा है , उतनी तेजी से यह गिरावट इससे पहले शायद ही कभी हुई हो .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव " विदग्ध ", सेवानिवृत प्राध्यापक , प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय , जबलपुर
वरिष्ट कवि , अर्थशास्त्री , व कालिदास के ग्रंथो के हिन्दी पद्यानुवादक
संपर्क ओ बी ११ . विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर , मो ९४२५८०६२५२
हमारे समय का व्यक्ति की विन्रमता , सदाचार , गुणवत्ता और कार्यकुशलता को महत्व व सम्मान देने का युग जाने क्यों समाप्त हो गया है ? आज समाज में चापलूसी , झूठी प्रशंसा ,और अपना मतलब पूरा करने के लिये किसी भी सीमा तक गिरकर , काम निकालने में निपुण व्यक्ति ही योग्य माना जाता है . उसे टैक्ट फुल कहा जाता है .शासकीय नौकरियों में अनेको ऐसे लोग दिखते हैं जो नौकरी तो सरकारी कर रहे हैं , पर कथित रूप से टैक्टफुल बनकर वे व्यवसाय अपना ही कर रहे हैं , चिकित्सा , शिक्षा व अन्य क्षेत्रों से जुड़े अनेक व्यक्ति अपनी सरकारी नौकरी का अपने निहित हितो के लिये उपयोग करते सहज ही मिल जाते हैं . मन में भले ही हम ऐसे व्यक्तियो की वास्तविकता समझते हुये , पीठ पीछे उनकी निंदा करें , पर अपनी चाटुकारिता के चलते ऐसे लोग लगातार फलीभूत ही होते दिखते हैं , व समाज में सफल माने जाते हैं . इस प्रवृति से शासकीय सेवा के वास्तविक उद्शेश्य ही दिग्भ्रमित हो रहे हैं .
हमारे समय में कर्तव्य निष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थ की चापलूसी की बू पाकर उसे झिड़क देते थे , कर्तव्यपरायण , गुणी व्यक्ति की मुक्त कंठ प्रशंसा करते थे , व अपने अधिकारो का उपयोग करते हुये ऐसे व्यक्ति को भरपूर सहयोग देते थे . जनहित के उद्देश्य को प्रमुखता दी जाती थी .
वर्तमान सामाजिक मानसिकता व स्वार्थसिक्त व्यवहारों को देख सुनकर मुझे अपने सेवाकाल के १९५० के दशक के मेरे अधिकारियों के कर्तव्य के प्रति संवेदनशील समर्पण के व्यवहार बरबस याद आते हें . तब सी पी एण्ड बरार राज्य था , वर्ष १९५० में , मैं अकोला में हिन्दी शिक्षक था . मुझे याद है उस वर्ष ग्रीष्मावकाश १ मई से १५ जून तक था . १६ जून से प्रौढ़ शिक्षा की कक्षायें लगनी थीं . जब १४जून तक मुझे मेरा पदांकन आदेश नहीं मिला तो मैं स्वयं ही अपने कर्तव्य के प्रति जागरूखता के चलते अकोला पहुंच गया व संभागीय शिक्षा अधिक्षक महोदय से सीधे उनके निवास पर सुबह ही मिला , मुझे स्मरण है कि, मुझे देकते ही उन्होंने मेरे आने का कारण पूछा , व यह जानकर कि मुझे पदांकन आदेश नही मिल पाया है , वे अपने साथ अपनी कार में ही मुझे कार्यालय ले गये , व संबंधित लिपिक को उसकी ढ़ीली कार्य शैली हेतु डांट लगाई , व मुझे तुरंत मेरा आदेश दिलवाया .मेरा व उन अधिकारि का केवल इतना संबंध था कि उन्होंने पिछले दो तीन वर्षो में ,मेरी कार्य कुशलता , क्षमता व व्यवहार देखा था और अपनी रिपोर्ट में मेरे लिये प्रशंसात्मक टिप्पणियां लिखी थीं . मैं समझता हूं कि शायद आज के परिवेश में कोई अधिकारी यदि इस तरह आगे बढ़कर किसी अधीनस्थ कर्मचारी की मदद करे तो शायद उसकी निष्ठा व ईमानदारी पर ही लोग खुसुर पुसुर करने लगें . युग व्यवहार में यह परिवर्तन कब और किस तरह आ गया है समझ से परे है .
हमारी पीढ़ी ने लालटेन और ढ़िबरियो के उजाले को चमचमाती बिजली के प्रकाश में बदलते देखा है . पोस्टकार्ड और तार के इंतजार भरे संदेशों को मोबाइल के त्वरित संपर्को में बदलते हम जी रहे हैं . लम्बी इंतजार भरी थका देने वाली यात्राओ की जगह आरामदेह हवाई यात्राओ से दूरियां सिमट सी गई हैं , हम इसके भी गवाह हैं . मुझे याद है कि १९५० के ही दशक में जब राज्यपाल हमारे मण्डला आने वाले थे तो उनका छपा हुआ टूर प्रोग्राम महीने भर पहले हमारे पास आया था , शायद उसकी एक प्रिंटेड प्रति अब भी मेरे पास सुरक्षित है , अब तो शायद स्वयं राज्यपाल महोदय भी न जानते होंगे कि दो दिन बाद उन्हें कहां जाना पड़ सकता है . भौतिक सुख संसाधनो का विस्तार जितना हमारी पीढ़ी ने अनुभव किया है शायद ही हमसे पहले की किसी पीढ़ी ने किया हो . लड़कियों की शिक्षा के विस्तार से स्त्रियो के जीवन में जो सकारात्मक क्राति आई है वह स्वागतेय है , पर उनके पहनावे में जैसे पाश्चात्य परिवर्तन हम देख रहे हैं , हमसे पहले की पीढ़ी ने कभी नही देखे होंगे . पर इस सबके साथ यह भी उतना ही कटु सत्य है , जिसे मैं स्वीकार करना चाहता हूं और उस पर गहन क्षोभ व अफसोस व्यक्त करना चाहता हूं कि लोक व्यवहार में जितना सामाजिक नैतिक अधोपतन हमारी पीढ़ी ने देखा है , उतनी तेजी से यह गिरावट इससे पहले शायद ही कभी हुई हो .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव " विदग्ध ", सेवानिवृत प्राध्यापक , प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय , जबलपुर
वरिष्ट कवि , अर्थशास्त्री , व कालिदास के ग्रंथो के हिन्दी पद्यानुवादक
संपर्क ओ बी ११ . विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर , मो ९४२५८०६२५२
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