सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

स्वप्न से तुम यहाँ चले आना

शारदी चाँदनी सा विमल मन ,जब पपीहा सा तुमको पुकारे

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र
मो ९४२५४८४४५२

शारदी चाँदनी सा विमल मन ,जब पपीहा सा तुमको पुकारे
सावनी घन घटा से उमगते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना

प्राण के स्वर स्वतः झनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे
मन बसे भावना से रंगे चित्र , आप सब कुछ स्वयं बोल देंगे
याद करते हुये बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से
भ्रमर से मधुर धुन गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपने सजन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना

दिन कटे काम की व्यस्तता में , रात गिनते गगन के सितारे ,
सांस के पालने में झुलाये , आश डोरी पै सपने तुम्हारे
मलय ले मधुर शीतल पवन से , बिन रुके कहीं , बढ़ते जतन से
नेह की गंध अपनी लुटाते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपने वचन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना


रात सूने क्षणो में हमेशा , नींद हर , जाल यों डाल जाती
नैन मूंदे हृदय की विकलता , उलझ जिसमें विवश छटपटाती
अनापेक्षित मधुर से संदेशे , मिटाने सभी कल्पित अंदेशे
गीत की लय धुन पर थिरकते , स्वप्न से तुम यहाँ चले आना
है कसम तुम्हें अपनी लगन की , राह में प्रिय भटक तुम न जाना ा

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