शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

नारी से ही सजे हैं , सब आंगन घर द्वार

नारी से ही सजे हैं , सब आंगन घर द्वार
नारी के बिन कहीं भी, सरस नहीं संसार

नारी सुख संतोषप्रद पावन उसका प्यार
जिसकी आंचल छांव में पलता हर परिवार

जीवन रथ के नारी नर है दो चक्र समान
बिना एक के दूसरे का न कहीं सम्मान

लता वृक्ष ज्यों शोभते बांट परस्पर प्यार
हर घर होना चाहिये ऐसा ही व्यवहार

जीवन जीने का सही प्रेम बड़ा आधार
जहां प्रेम है सुलभ भी वहीं सभी अधिकार

देता सुख संतोष सब आपस का विश्वास
भरती चंपा गंध सी मन में मधुर मिठास

घर की शोभा नारि से नर की शोभा नारि
नर-नारी के मेल से प्रमुदित हर परिवार

नारि उपस्थिति बांटता घर में नया उजास
जो न खनकती चूड़िया सूनेपन का भास

नारि कमल के फूल सम लक्ष्मी का अवतार
जिसका घर के लोग संग है मोहक अधिकार

पितुगृह पतिगृह नारि के नदिया के दो पाट
बचपन सजता इस तरफ घर बसता उस पार


प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252A

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