रविवार, 9 मई 2010

भूटान में हुये भारत पाक संवाद के परिप्रेक्ष्य में

भूटान में हुये भारत पाक संवाद के परिप्रेक्ष्य में
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

मो ९४२५८०६२५२

आये दिन काश्मीर में बारूद का उठता धँआ
मेल मिल्लत का हरेक संदेश होता अनसुना
हम निभाते आये सारे आदमियत के वायदे
पर पड़ोसी उलझने का खोजता रहता खुआ
कैसे हो कोई सुलह की बात इन हालात में ?


केसरों की क्यारियों में हर कदम बिखरे हैं बम
दुश्मनी की भावना उनकी न हो पाई है कम
जब जहाँ नेता मिले , मिले हाथ , कुछ बातें हुईं
पर किये गये वायदों पर कब उठाये गये कदम ?
कैसे हो विश्वास हमको उनकी ऐसी बात में ?


हो रही मुठभेड़ अब भी वायदों के बाद भी
मस्जिदें दरगाहें अब तक हैं पड़ी बरबाद ही
सरहदों को तोड़ घुस आते नये घुसपैठिये
मन न मिल पायें तो झूठे हैं बड़े संवाद भी
बदलते कब किसी के भी मन कभी एक रात में ?


पिछले अनुभव सामने हैं लंबी लंबी बात के
घाव रिसते आज भी हैं किये गये आघात के
भेद भारी है वहाँ आवाम औ" सरकार में
दिख रहे आसार नई जनक्रांति के उत्पात के
दिखावा ज्यादा सचाई कम है हर अनुपात में


हाथ अब तक क्या लगा वर्षों के वाद विवाद में
समझ आते भाव मन के साफ हर संवाद में
जवानों ने जान देकर खून से सींचा वतन
स्नेह का विश्वास कैसे जगे अब जल्लाद में ?
क्या पता घटनायें क्या हों आ रही बरसात में ?


कवि सुप्रसिद्ध गीतकार ,अनुवादक , शिक्षाविद , अर्थशास्त्री व समाजसेवी हैं . वतन को नमन , अनुगुंजन , ईशाराधन , आदि कृतियां पुस्तकाकार प्रकाशित व राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हैं

गुरुवार, 6 मई 2010

माँ नर्मदा की मनोव्यथा

माँ नर्मदा की मनोव्यथा

प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर


जो मीठा पावन जल देकर हमें सुस्वस्थ बनाती है
जिसकी घाटी औ" जलधारा सबके मन को भाती है
तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिसकी होती है पूजा
वही नर्मदा माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है

पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं
कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं
मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं
गंदे परनाले नगरों के मुझमें डाले जाते हैं

जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट औ" घाटों में
सैर सपाटे वालों यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में
मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में
समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में

ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ?
पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी
मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में
धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में

प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी
वे मुझमें डुबकी , तर्पण ,पूजन ,आरति के अभिलाषी
सब तुम मुझको माँ कहते , तो माँ सा बेटों प्यार करो
घृणित मलिनता से उबार तुम सब मेरे दुख दर्द हरो

सही धर्म का अर्थ समझ यदि सब हितकर व्यवहार करें
तो न किसी को कठिनाई हो , कहीं न जलचर जीव मरें
छुद्र स्वार्थ ना समझी से जब आपस में टकराते हैं
इस धरती पर तभी अचानक विकट बवण्डर आते हैं

प्रकृति आज है घायल , मानव की बढ़ती मनमानी से
लोग कर रहे अहित स्वतः का , अपनी ही नादानी से
ले निर्मल जल , निज क्षमता भर अगर न मैं बह पाउंगी
नगर गांव, कृषि वन , जन मन को क्या खुश रख पाउँगी ?

प्रकृति चक्र की समझ क्रियायें ,परिपोषक व्यवहार करो
बुरी आदतें बदलो अपनी , जननी का श्रंगार करो
बाँटो सबको प्यार , स्वच्छता रखो , प्रकृति उद्धार करो
जहाँ जहाँ भी विकृति बढ़ी है बढ़कर वहाँ सुधार करो

गंगा यमुना सब नदियों की मुझ सी राम कहानी है
इसीलिये हो रहा कठिन अब मिलना सबको पानी है
समझो जीवन की परिभाषा , छोड़ो मन की नादानी
सबके मन से हटे प्रदूषण , तो हों सुखी सभी प्राणी !!