मंगलवार, 16 नवंबर 2010

कैसे हो कोई काम शुभ यों बढ़े भ्रष्टाचार में

कैसे हो कोई काम शुभ यों बढ़े भ्रष्टाचार में
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘

समझते है समझदारी लोग अब तकरार में
बुद्धि सारी आ बसी है आजकल हथियार में।

नित नई खबरें अनोखी छप रहीं अखबार में
कमीषन, रिष्वत की बातें आम हैं सरकार में।
न्याय और कानून की सब व्यवस्था है ताक पर
चल रहे घपले घोटाले हरेक कारोबार में।

हो गया है बहुत मुष्किल जिदंगी का ये सफर
बढ़ी हुई महंगाई से बैचेन है हर एक घर।
काम हो छोटे-बडे कोई सब में हैं मजबूरियाॅं
दब के बैठा जा रहा मन भारी गर्द गुबार में।

मिलावट के बिना कुछ मिलता नहीं बाजार में
छल, कपट का बोलबाला है हरेक व्यवहार में।
दवाओं तक के गुणों और मूल्यों में लूट है
हो गई संवेदनायें खत्म ज्यों संसार में।

उड़ गई काफूर सी सद्भावना, शालीनता
बढ़ रहा चारित्रिक पतन उदण्डता गुणहीनता।
न है पद की प्रतिष्ठा न बड़ो का सम्मान है
कैसे हो कोई काम शुभ यों बढ़े भ्रष्टाचार में।

बढ़ गया डर जान तक का आज पावन प्यार में
कट रही है जिंदगी कई की अचेत खुमार में।
भीड़ है विज्ञापनों की बहुत झूठ प्रचार की
पा रहे बेईमान ही सब लाभ हर व्यापार में।

भेदभाव बढ़े परस्पर आपसी टकराव है
छोटे-छोटे काम के भी बड़े मंहगे भाव है।
बिन चढ़ावों के सुलभ मंदिर में अब न प्रसाद तक
लगता है कर्तव्य तक अब ढल गये प्रतिकार में।

सही दिखता है कोई एकाध कई हजार में
रहा न सम्मान धन में पद में न अधिकार में।
गुनाहों के है हाथ लंबे ओछे है कानून के
भरोसा होता नहीं इससे ही किसी सुधार में।



प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर
मो. 9425806252

1 टिप्पणी:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

हमारे नेताओं का आदर्श अचार है... भ्रष्टाचार है..