गजल
प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध "
संपर्क ओबी ११ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. ४८२००८
मोबा. ०९४२५८०६२५२, फोन ०७६१२६६२०५२
जो भी मिली सफलता मेहनत से मैने पायी
दिन रात खुद से जूझा किस्मत से की लड़ाई
जीवन की राह चलते ऐसे भी मोड़ आये
जहाँ एक तरफ कुआं था औ" उस तरफ थी खाई
कांटों भरी सड़क थी सब ओर था अंधेरा
नजरों में सिर्फ दिखता सुनसान औ" तनहाई
सब सहते बढ़ते जाना आदत सी हो गई अब
किसी से न कोई शिकायत खुद की न कोई बड़ाई
लड़ते मुसीबतों से बढ़ना ही जिंदगी है
चाहे पहाड़ टूटे , चाहे हो बाढ़ आई
आंसू कभी न टपके न ढ़ोल गये बजाये
फिर भी सफर है लम्बा मंजिल अभी न आई
दुनिया की देख चालें मुझको अजब सा लगता
बेबात की बातों में दी जाती जब बधाई
सुख में विदग्ध मिलते सौ साथ चलने वाले
मुश्किल दिनो में लेकिन कब कोन किसका भाई ?
प्रकाशित किताबें ...ईशाराधन ,वतन को नमन, अनुगुंजन, नैतिक कथाये, आदर्श भाषण कला, कर्म भूमि के लिये बलिदान,जनसेवा, अंधा और लंगड़ा ,मुक्तक संग्रह,मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद ,रघुवंशम् पद्यानुवाद,समाजोपयोगी उत्पादक कार्य ,शिक्षण में नवाचार
मंगलवार, 17 मई 2011
बने भवनो को न तोड़ें बुद्धि से सोचें जरा निर्माण सारा व्यैक्तिक से ज्यादा राष्ट्रीय है संपदा
बुद्धि से सोचें जरा
प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
संपर्क ओबी ११ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. ४८२००८
मोबा. ०९४२५८०६२५२, फोन ०७६१२६६२०५२
बने भवनो को न तोड़ें बुद्धि से सोचें जरा
निर्माण सारा व्यैक्तिक से ज्यादा राष्ट्रीय है संपदा
पेड़ हो कोई कहीं भी सबको देता आसरा
क्या उचित उसको मिटाना जो सघन सुखप्रद हरा ?
समझें कितनी मुश्किलों से खड़ी होती झोपड़ी
वर्षो की मेहनत से हो पाता कोई सपना हरा
काटकर के पेट कोई कुछ जुटा पाता है धन
ऐसे हर पैसे में होता मन का प्यारा रंग भरा
तोड़ घर परिसर निरर्थक वैद्यता कि नाम पर
व्यक्ति औ" सरकार दोनो का ही है अनहित बड़ा
नष्ट कर संपत्ति को शासन तो कुछ पाता नहीं
पर दुखी परिवार हो जाता सदा को अधमरा
ढ़हाना निर्मित भवन का कत्ल जैसा पाप है
उचित कह सकता इसे है सिर्फ कोई सिरफिरा
तोड़ना धन श्रम समय का राष्ट्रीय नुकसान है
जिससे व्यक्ति समाज रहता सदा डरा डरा
जोश में आदेश तो हो जाते शासन के मगर
जख्म पीड़ित जनो का जीवन भर न जाता भरा
नया हर निर्माण नियमित राष्ट्र का उत्कर्ष है
ध्वस्त करके सृजन का अपमान करना है बुरा
दण्ड दें उन व्यक्तियो को जो हैं मर्यादित नही
तोड़ना निर्मित घरो को है नही निर्णय सही
तोड़कर निर्माण दी जाती सजा निर्दोष को
जीने का अधिकार उनका जाता क्यो नाहक हरा
बिल्डरो की गलतियो का अर्थदण्ड उनको ही दें
लिप्त यदि अधिकारी हों तो उनसे जाया धन भरा
नागरिक को खाने रहने जीने का मौलिक अधिकार है
उन्हें दुख देना नहीं है न्याय स्वस्थ परंपरा
बने भवनो को न तोड़ें शांति से सोचें जरा
अनैतिकता तो बुरी है पर नही कोई घर बुरा
बुरा है अपराध पर अपराधी को तक देते क्षमा
उचित है अपराध पकड़ो मत करो घर से घृणा
प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
संपर्क ओबी ११ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. ४८२००८
मोबा. ०९४२५८०६२५२, फोन ०७६१२६६२०५२
बने भवनो को न तोड़ें बुद्धि से सोचें जरा
निर्माण सारा व्यैक्तिक से ज्यादा राष्ट्रीय है संपदा
पेड़ हो कोई कहीं भी सबको देता आसरा
क्या उचित उसको मिटाना जो सघन सुखप्रद हरा ?
समझें कितनी मुश्किलों से खड़ी होती झोपड़ी
वर्षो की मेहनत से हो पाता कोई सपना हरा
काटकर के पेट कोई कुछ जुटा पाता है धन
ऐसे हर पैसे में होता मन का प्यारा रंग भरा
तोड़ घर परिसर निरर्थक वैद्यता कि नाम पर
व्यक्ति औ" सरकार दोनो का ही है अनहित बड़ा
नष्ट कर संपत्ति को शासन तो कुछ पाता नहीं
पर दुखी परिवार हो जाता सदा को अधमरा
ढ़हाना निर्मित भवन का कत्ल जैसा पाप है
उचित कह सकता इसे है सिर्फ कोई सिरफिरा
तोड़ना धन श्रम समय का राष्ट्रीय नुकसान है
जिससे व्यक्ति समाज रहता सदा डरा डरा
जोश में आदेश तो हो जाते शासन के मगर
जख्म पीड़ित जनो का जीवन भर न जाता भरा
नया हर निर्माण नियमित राष्ट्र का उत्कर्ष है
ध्वस्त करके सृजन का अपमान करना है बुरा
दण्ड दें उन व्यक्तियो को जो हैं मर्यादित नही
तोड़ना निर्मित घरो को है नही निर्णय सही
तोड़कर निर्माण दी जाती सजा निर्दोष को
जीने का अधिकार उनका जाता क्यो नाहक हरा
बिल्डरो की गलतियो का अर्थदण्ड उनको ही दें
लिप्त यदि अधिकारी हों तो उनसे जाया धन भरा
नागरिक को खाने रहने जीने का मौलिक अधिकार है
उन्हें दुख देना नहीं है न्याय स्वस्थ परंपरा
बने भवनो को न तोड़ें शांति से सोचें जरा
अनैतिकता तो बुरी है पर नही कोई घर बुरा
बुरा है अपराध पर अपराधी को तक देते क्षमा
उचित है अपराध पकड़ो मत करो घर से घृणा
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