मंगलवार, 17 मई 2011

दुनिया की देख चालें मुझको अजब सा लगता

गजल

प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव "विदग्ध "
संपर्क ओबी ११ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. ४८२००८
मोबा. ०९४२५८०६२५२, फोन ०७६१२६६२०५२


जो भी मिली सफलता मेहनत से मैने पायी
दिन रात खुद से जूझा किस्मत से की लड़ाई

जीवन की राह चलते ऐसे भी मोड़ आये
जहाँ एक तरफ कुआं था औ" उस तरफ थी खाई

कांटों भरी सड़क थी सब ओर था अंधेरा
नजरों में सिर्फ दिखता सुनसान औ" तनहाई

सब सहते बढ़ते जाना आदत सी हो गई अब
किसी से न कोई शिकायत खुद की न कोई बड़ाई

लड़ते मुसीबतों से बढ़ना ही जिंदगी है
चाहे पहाड़ टूटे , चाहे हो बाढ़ आई

आंसू कभी न टपके न ढ़ोल गये बजाये
फिर भी सफर है लम्बा मंजिल अभी न आई

दुनिया की देख चालें मुझको अजब सा लगता
बेबात की बातों में दी जाती जब बधाई

सुख में विदग्ध मिलते सौ साथ चलने वाले
मुश्किल दिनो में लेकिन कब कोन किसका भाई ?

1 टिप्पणी:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अनुभवों को ढ़ाल दिया...