कौन सी है राह,जिस पर कांच औ कांटे नहीं !
प्रो.सी.बी.श्रीवास्वत विदग्ध
ओ बी ११ , विद्युत मंडल कालोनी रामपुर जबलपुर
कौन सी है राह,जिस पर कांच औ कांटे नहीं,
दुनियां में तूफान औ कठिनाइयां है हर कहीं।
पर जहां कठिनाईयां हैं ,वहीं पर हल भी तो है,
दिल में चहिये जूझने की तड़प् ओै बस हौसला।।1।।
जोडने को सागरों को ,नहरें तक गई हैं बनाई,
चीर छाती पर्वतेां की , सुरंगे भी गई कटाई।
यह किया सब आदमी ने ही, निरंतर लगन से,
करना होता काम करने का ,सुनिश्चित फैसला।।2।।
पुल बनाये,सागरों पर,बीहडों में रास्ते,
आदमी ने किये बिरले काम,झेले हादसे।
जीत होती है परिश्रम की हमेशा एक दिन,
जारी रखना होता है श्रम का ,निरंतर सिलसिला।।3।।
सागरों के तल टटोले, नापी नभ उचांइयां,
पहाडों को तोड़ पाने हीरे खोदी खाइयां।
कैसे कैसे करिश्में ,श्रम से किये इंसान ने,
कोशिशें की रोकने की ,सुनामी का जलजला।।4।।
अपने श्रम औ समझ से नये नये ग्रहों तक भेजे यान,
समझ साहस हौसले से ही, है मानव प्राणवान।
हर असंभव को , किया संभव ,मनुज ने अपनी दम,
दिल में चाहिये तडप करने की ,औ बढचढ हौसला।।5।।
कौन सी है राह,जिस पर कांच औ कांटे नहीं,
दिल में चहिये जूझने की तड़प् ओै बस हौसला
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें