दृष्टि बदले, लोग बदले,
प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध ओबी 11 एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर 482008 मो. 9425806252
आये दिन सुनने मे आते देष मे किस्से निराले नीति के विपरीत बढते जा रहे कई काम काले देख सुन जिनको कि सबके मन मे है आक्रोष भारी जिदंगी औ मौत मे निर्दोष की है जंग जारी जहाॅ मानवीय भावनाओ का हुआ करता था आदर वहाॅ राक्षसी वृत्तिया है बढ रही ममता मिटाकर लग गई हो गाॅव शहरो मे अचानक आग जैसे शांतिप्रिय इस देष मे है बढा कामाचार वैसे अनेको निर्दोष जलते जा रहे जिसमे अकारण किंतु फिर भी लोग परवष सह रहे कर मौन धारण सदाचारी राम के इस देष मे व्यभिचार क्यों है महावीर और बुद्ध के मंदिर मे अत्याचार क्यों है बढता आगे देष जब सब नीति नियमो का हो पालन नष्ट हो जाता है जब बढती अनैतिकता अपावन माॅगता जनतंत्र सबके सोच मे बदलाव आये राजनीति पवित्र हो कोई स्वार्थ न मन को लुभाये सिर्फ कानूनो से दिखता कठिन कोई सुधार लाना सुव्यवस्था हेतु मन को जरूरी निर्मल बनाना मन की सुदृण भावना कराती नियमो का पालन सिर्फ नैतिक कर्म निष्ठा से ही चल सकता है शासन हर जगह जन भावनाओ का हो रहा है नित अनादर खोता जाता है इसी से प्रषासन हर रोज आदर प्राकृतिक नियमो को न कोई भी कभी न बदल पाया किंतु मन की भवना ने सभ्य जन जन को बनाया आत्म चिंतन मनन से ही हो सभी के कर्म पावन मिटाये मन के अंधेरे ज्ञान सूर्योदय सुहावन चाहिये शुभ दृष्टि रखकर ही करे सब काम पावन दृष्टि बदले, लोग बदले, देष बदले, हो सुषासन
प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध ओबी 11 एमपीईबी कालोनी रामपुर, जबलपुर 482008 मो. 9425806252
आये दिन सुनने मे आते देष मे किस्से निराले नीति के विपरीत बढते जा रहे कई काम काले देख सुन जिनको कि सबके मन मे है आक्रोष भारी जिदंगी औ मौत मे निर्दोष की है जंग जारी जहाॅ मानवीय भावनाओ का हुआ करता था आदर वहाॅ राक्षसी वृत्तिया है बढ रही ममता मिटाकर लग गई हो गाॅव शहरो मे अचानक आग जैसे शांतिप्रिय इस देष मे है बढा कामाचार वैसे अनेको निर्दोष जलते जा रहे जिसमे अकारण किंतु फिर भी लोग परवष सह रहे कर मौन धारण सदाचारी राम के इस देष मे व्यभिचार क्यों है महावीर और बुद्ध के मंदिर मे अत्याचार क्यों है बढता आगे देष जब सब नीति नियमो का हो पालन नष्ट हो जाता है जब बढती अनैतिकता अपावन माॅगता जनतंत्र सबके सोच मे बदलाव आये राजनीति पवित्र हो कोई स्वार्थ न मन को लुभाये सिर्फ कानूनो से दिखता कठिन कोई सुधार लाना सुव्यवस्था हेतु मन को जरूरी निर्मल बनाना मन की सुदृण भावना कराती नियमो का पालन सिर्फ नैतिक कर्म निष्ठा से ही चल सकता है शासन हर जगह जन भावनाओ का हो रहा है नित अनादर खोता जाता है इसी से प्रषासन हर रोज आदर प्राकृतिक नियमो को न कोई भी कभी न बदल पाया किंतु मन की भवना ने सभ्य जन जन को बनाया आत्म चिंतन मनन से ही हो सभी के कर्म पावन मिटाये मन के अंधेरे ज्ञान सूर्योदय सुहावन चाहिये शुभ दृष्टि रखकर ही करे सब काम पावन दृष्टि बदले, लोग बदले, देष बदले, हो सुषासन
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