सरस्वती के वरद पुत्र प्रोफ़ेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
वे
एक साथ ही कभी कवि हैं, मुक्तककार हैं, गीतकार हैं , नवगीतकार हैं,
दोहाकार हैं, शायर हैं, निबंधकार हैं, समसामयिक लेखक हैं, गद्ययकार हैं,
भूमिका लेखक, समीक्षा लेखक, अनुवादककर्ता, शोधकर्ता, शिक्षाविद
अर्थशास्त्री ,चिंतक , विश्लेषक , भाषा विज्ञान , संस्कृति वेत्ता , समाज
शास्त्री, आध्यात्म ज्ञानी, विभिन्न भूमिकाओं में सफल सरस्वती पुत्र हैं ,
जी हां मैं बात कर रहा हूं वरिष्ठ विद्वान सृजक कलमकार सुविख्यात
साहित्यिक प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध जी की । वे अगणित बहुचर्चित
उत्कृष्ट लोकप्रिय, मान्यता प्राप्त रचनाओं के प्रणेता हैं । उनमे मुझे
पाणिनि , वेदव्यास , वाल्मिकी, गोस्वामी तुलसीदास रामधारी सिह दिनकर, मैथली
शरण गुप्त , जयशंकर प्रसाद, माखनलाल चतुर्वेदी के अंश स्पष्ट परिलक्षित
होते हैं ।
वस्तुतः श्री
चित्र भूषण श्रीवास्तव जो विभिन्न पदो प्राध्यापक, प्राचार्य, संचालक और भी
न जाने कितने दायित्व पूर्ण पदों से संबद्ध रहे तथा राज्य व केंद्र सरकार
के शिक्षण संस्थानो में कार्यरत रह चुके हैं , अनेक समितियों में सलाहकार
तथा महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह करते रहे हैं , एक दैदिप्यमान नक्षत्र
के रूप में सुविख्यात हैं , बहुमुखी प्रतिभा के धनी , विशेषज्ञ, सरल सहज
किंतु दृढ़, क्रियाशील व ऊर्जस्वी, अध्यव्यसाई , अध्यन शील , , परम ज्ञानी
तथा सच्चे सरस्वती पुत्र विदग्ध जी अक्षर साधक व साहित्य सेवी के रूप में
केवल प्रतिष्ठित है बल्कि अनेक पीढ़ियों के रचनाकारो के लिए गहन आदर के
पात्र व प्रेरणा स्रोत हैं । वे जीवंतता के प्रतीक तथा अनुकरण हेतु
उदाहरण हैं ।
वे जितने
गंभीर हैं उतने नी उच्च विचारों के तथा विशाल ह्रदय के व्यक्तित्व हैं।
उनके जीवन में गतिशीलता है । प्रवाह है सरसता है , वे निर्विवाद हैं । उनका
जीवन अनेकों के लिये दृष्टांत बन गया है ।
सामाजिक
,साहित्यिक, सांस्कृतिक ,शैक्षिक ,भारतीय भावधारा, आध्यात्मिक ,मानवीय ,
नारी उत्थान, शोध विषयों , पर साधिकार विशेषज्ञ के रूप में लिखने वाले
आदरणीय विदग्ध जी हिंदी अंग्रेजी संस्कृत मराठी में महारत रखते हैं। वे
अनुवाद के रूप में विशिष्ट इसलिये हैं क्योंकि वे मात्र शब्दानुवाद ही नही
करते , वे मूल रचना के भावों का अनुवाद करते हैं , इतना ही नही वे काव्य
में अनुवाद करते हैं । यह विशेष गुण उन्हें सामान्य अनुवाद कर्ताओं से
भिन्न विशिष्ट पहचान दिलाती है ।
वय
के नो दशक पूर्ण कर लेने के बाद आज भी भी उतने ही क्रियाशील बने हुए हैं ।
विभिन्न विषयो की दो दर्जन से ज्यादा मौलिक क़िताबों के रचनाकार एक सक्षम
सम्पादक के रूप में भी क्रिया शील रहे हैं । अनेक युवा लेखको को
प्रोत्साहित कर उनके मार्गदर्शन का यश भी उनके खाते में दर्ज है । वे
आंतरिक शुचिता, सांस्कृतिक मूल्यों , समाजिक समरसता, सद्भाव, सौहार्द्र,
सहिष्णुता, नारी समानता के ध्वजवाहक रचनाकार हैं । उनके सारस्वत रचनाकर्म
अभिवंदना योग्य हैं।
ऐसे
व्यक्तित्व कम ही हैं जिनका समग्र जीवन लेखन और समाज निर्माण के लिए
समर्पित हुआ हो , जिन्होंने जो कुछ लिखा उसे अपने जीवन में उतारने का
आदर्श भी प्रस्तुत किया हो । वे सदा सादा जीवन उच्च विचार के मूल्यों को
अपनी लेखनी से व्यक्त ही नही अपने आचरण से उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत भी करते
रहे । उन्हें समय समय पर देश की अनेक संस्थाओं ने सम्मानित कर अलंकरण,
पुरस्कार , मानपत्र भेंट कर स्वयं गौरव अनुभव किया । वे जितने अच्छे कवि औऱ
लेखक हैं उतने ही प्रवीण वक्ता भी हैं । वे जिस आयोजन में अतिथि होते हैं
वहां उन्हें सुनने के लिए लोग लालायित रहते हैं ।उनका आभामण्डल बहुमुखी
है।
उन्हें यह दक्षता उनके
गहन अध्ययन , चिंतन मनन से मिली है ।उनके शैक्षणिक शोध कार्य
अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सराहना अर्जित कर चुके हैं ।
उनके
निजी ग्रन्थालय में मैंने सैकड़ों पुस्तकें देखी हैं । अनेक स्कूलों को
उन्होंने स्वयं अपनी व अन्य ढेर पुस्तकें बांटी हैं । वे सचमुच साहित्य
रत्न हैं ।
प्रकृति में है चेतना हर एक कण सप्राण है
इसी से कहते कण कण में बसा भगवान है
चेतना है उर्जा एक शक्ति जो अदृश्य है
है बिना आकार पर अनुभूतियो में दृश्य है
भगवत
गीता का हिन्दी काव्य अनुवाद तो इतना लोकप्रिय है कि उसके दो संस्करण छप
कर समाप्त हो गए हैं। मेघदूतम व रघुवंश के अनुवाद कालिदास अकादमी उज्जैन के
डॉ कृष्ण कांत चतुर्वेदी जी द्वारा सराहे गए हैं । मेघदूतम पर कोलकाता में
नृत्य नाटक हो चुके हैं । उनके ब्लाग संस्कृत का मजा हिंदी में पर दुनिया
भर से हिट्स मिलते हैं ।
वे शिक्षा शास्त्री हैं , समाज उपयोगी कार्य , माइक्रो टीचिंग , शिक्षण में नवाचार आदि किताबे उनके इस पहलू को उजागर करती हैं।
उनकी
इच्छा शक्ति , जिजीविषा, ने उन्हें उसूलों के लिए संघर्ष का मार्ग दिखाया ।
वे दृढ संकल्प होकर उस पर चलते रहे , औऱ ऐसे राहगीर अनुकरण योग्य मार्ग
बनाने में सफल होते ही हैं । यथार्थ यह है की वे निष्ठावान गांधीवादी हैं ।
उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि प्रतिष्ठा पूर्ण रही है पर उन्होने यश अर्जन
अपने सुकृत्यों से और सफल लेखन से ही किया है ।उनकी जीवन संगनी भी एक
विदुषी शिक्षा शास्त्री थी , जिनके साथ ने विदग्ध जी को परिपूर्णता दी ।
श्रीमती श्रीवास्तव की स्वयं की किताबें संस्कृत मंजरी कभी शालेय पाठ्यक्रम
में थी । प्रोफेसर श्रीवास्तव भावुक सहृदय हैं पर दुर्बल नही । उनकी
सात्विकता सम्यकता उन्हें क्षमतावान बनाती है । वे प्रणम्य हैं ।
जरूरत है कि समय रहते उनके लेखन पर शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित हो ।
उनकी
अनेकानेक रचनाये जैसे रानी दुर्गावती , शंकरशाह , रघुवीरसिंह , महराणा
प्रताप , भारत माता , आदि स्कूली व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल
किए जाने योग्य हैं । उनके चिंतन युवा पीढ़ी के मार्गदर्शक हैं । कई अखबार
उनके हिंदी अनुवाद कार्य धारावाहिक रुप से प्रकाशित कर रहे हैं। नर्मदा जी
पर उनके गीत का आडियो रूप में प्रस्तुतिकरण सराहा गया है । मैं इस प्रज्ञा
पुरूष को आदरांजली अर्पित करते हुए उनके सक्रिय स्वस्थ भविष्य की कामनाएं
करता हूं ।
प्रो डॉ शरद नारायण खरे
विभागाध्यक्ष इतिहास व प्राचार्य
शासकीय जे एम सी महिला महाविद्यालय मण्डला
481661 मो 9425484382
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