शनिवार, 4 दिसंबर 2010

गज़ल

गज़ल

हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं

सच आज की दुनियां के अंदाज निराले हैं
हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं
धोखा दगा रिष्वत का यों बढ़ गया चलन है
देखो जहाॅं भी दिखते बस घपले घोटाले हैं
पद ज्ञान प्रतिष्ठा ने तज दी सभी मर्यादा
धन कमाने के सबने नये ढंग निकाले हैं
शोहरत औं‘ दिखावों की यों होड लग गई हैं
नजरों में सबकी होटल पब सुरा के प्याले हैं
महिलायें तंग ओछे कपड़े पहन के खुष हैं
आॅंखंे झुका लेते वे जो देखने वाले हैं
शालीनता सदा से श्रंृगार थी नारी की
उसकी नई फैषन ने दीवाले निकाले हैं
व्यवहार में बेईमानी का रंग चढ़ा ऐसा
रहे मन के साफ थोडे मन के अधिक काले हैं
अच्छे भलों का सहसा चलना बडा मुष्किल है
हर राह भीड़ बेढब बढ़े पाॅव में छाले है
जो हो रहा उससे तो न जाने क्या हो जाता
पर पुण्य पुराने हैं जो सबको सम्भाले है
आतंकवाद नाहक जग को सता रहा है
कहीं आग की लपटें हैं कहीं खून के नाले हैं
हर दिन ये सारी दुनियाॅं हिचकोले खा रही हैं
पर सब ‘विदग्ध‘ डरकर ईष्वर के हवाले हैं

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘

1 टिप्पणी:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सब ईश्वर के ही हवाले है...