चिंतन
द्वारा प्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
चिंतन का अर्थ है किसी एक विषय पर गंभीरता से गहन सोच विचार करना . मनुष्य जो भी छोटे बड़े कार्य करता है उसके पहले उसे सोचना विचारना अवश्य पड़ता है , क्योकि प्रत्येक कार्य के भले बुरे कुछ न कुछ परिणाम अवश्य होते हैं . भले उद्देश्य को ध्यान में रखकर जो कार्य किये जाते हैं उनके परिणाम अच्छे होते हैं , तथा कर्ता को भी उनका हितलाभ होता है , किन्तु जो कार्य इसके विपरीत किये जाते हैं उनका परिणाम अहितकारी होता है और कर्ता के लिये अपयशकारी होता है . अतः नीति नियम यही है कि हर काम को करने से पहले उसकी रीति और संभावित परिणाम को ध्यान में रखकर विचार किया जावे . विचार से ही योजना बनती है , और योजना बद्ध तरीके से ही कार्य सुसंपन्न होता है . ऐसा कार्य वांछित फलदायी होता है . चोर , डाकू , लुटेरे तक सोच विचार कर दुष्टता के अनैतिक कार्य करते हैं , समझदार अन्य लोगो की तो बात ही क्या है .
चिंतन या सोचविचार का जीवन में बड़ा महत्व है . विचार से ही कर्म को जन्म मिलता है . कर्म ही परिणाम देते हैं . अतः जो जैसा काम करता है वैसा ही फल पाता है . इसीलिये कहा गया है " जो जैसी करनी करे , सो वैसो फल पाये " . परन्तु फिर भी दैनिक जीवन में बहुत से लोग विचारो को जो महत्व देना चाहिये वह नही देते . इसी से बहुत सी बातें बिगड़ती हैं . आपसी बैर भाव , विद्वेष और लड़ाई झगड़े बिना विचार के सहसा किये गये कार्यो के ही दुष्परिणाम हैं . जो व्यक्ति जितना बड़ा होता है , और उसका प्रभाव क्षेत्र जितना विशाल होता है उसके द्वारा किये गये कार्यो का प्रभाव भी उतने ही बड़े क्षेत्र पर पड़ता है . उसके कार्यो का परिणाम एक दो व्यक्ति या परिवार जनो को ही नही वरन आने वाली पीढ़ीयो तक को सदियो तक भोगना पड़ता है . हमारे देश में काश्मीर की समस्या शायद ऐसे ही बिना गंभीर चिंतन के उठाये गये कदम का दुखदायी परिणाम है .
कर्म ही मनुष्य के भाग्य का निर्माता है . व्यक्ति जैसा सोचता है , वैसा ही करता है . जो जैसा करता है वैसा ही बनता है और वैसा ही फल पाता है , जो उसके भविष्य को बनाता या बिगाड़ता है . इसीलिये कहा है , "बिना विचारे जो करे सो पीछे पछताये " . एक क्षण की बिना विचारे किये गये कार्य के द्वारा घटित की घटना न जाने कितनो के धन जन की हानि कर देती है . छोटी सी असावधानी बड़ी बड़ी दुर्घटनाओ को जन्म दे देती है और अनेको को भावी पीढ़ीयो के विनाश के लिये पछताते रहने को विवश कर जाती है .
इसलिये विचार या चिंतन को उचित महत्व दिया जाना चाहिये . सही सोच विचार से किये जाने वाले कार्यो से ही हितकर परिणामो की आशा की जा सकती है . तभी व्यक्ति , परिवार , समाज और राष्ट्र का उद्धार संभव हो सकता है . विचार ही समाज या देश के विकास या विनाश की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं . इतिहास इसका प्रमाण है . एक नही अनेक उदाहरण हैं जहाँ शासक के उचित या अनुचित विचारो ने संबंधित देश के भविष्य को नष्ट किया या या सजाया सवांरा है . भारत के इतिहास से सम्राट अशोक इसका प्रमुख और सुस्पष्ट उदाहरण है , जिसके एक चिंतन ने कलिंग प्रदेश में प्रचण्ड युद्ध और विनाश के ताण्डव को जन्म दिया और युद्ध की विभीषिका से तंग आकर जब उसने अपने कृत्यो पर पुनर्विचार किया तो उसके नये चिंतन ने उसे शांति का अग्रदूत बनाकर बौद्ध धर्म का अनुशासित महान अप्रतिम प्रचारक बना दिया .
प्रकाशित किताबें ...ईशाराधन ,वतन को नमन, अनुगुंजन, नैतिक कथाये, आदर्श भाषण कला, कर्म भूमि के लिये बलिदान,जनसेवा, अंधा और लंगड़ा ,मुक्तक संग्रह,मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद ,रघुवंशम् पद्यानुवाद,समाजोपयोगी उत्पादक कार्य ,शिक्षण में नवाचार
गुरुवार, 31 मार्च 2011
"भारतवर्ष आश्चार्यकारी , आध्यात्मिक देश है , वहाँ के निवासी वीर और सत्यवादी हैं , यदि तुम कभी वहाँ जाओ तो वहाँ के किसी संत से जरूर मिलना
चिंतन
द्वारा प्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
यूनान का बादशाह सिकंदर बड़ा महत्वाकांक्षी था . वह समस्त संसार को जीतकर विश्वविजेता बनना चाहता था . इसी महत्वाकांक्षा को लेकर वह अपने देश से निकला . मार्ग में अनेको देशो को जीतता हुआ वह भारत में आया . उसने पंचनद प्रदेश में युद्ध कर उसे जीत लिया और अपनी सेना को आदेश दिया कि पराजित राजा पुरु को बंदी बनाकर उसके सम्मुख लाया जावे . राजा पुरु को सिकंदर के सामने लाया गया . सिकंदर ने पुरु से पूछा , " तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जावे ? " पुरु ने निर्भीक स्वर में उत्तर दिया , " वैसा ही जैसा एक राजा को दूसरे राजा के साथ करना चाहिये ". पुरु के निर्भीक उत्तर ने सिकंदर को बहुत प्रभावित किया .उसने पुरू का समस्त राज्य उसे वापस कर दिया तथा पुरु की वीरता एवं निर्भीकता की सराहना भी की . सिकंदर को अपने गुरू अरस्तु का उपदेश याद हो आया गुरू ने कहा था कि "भारतवर्ष आश्चार्यकारी , आध्यात्मिक देश है , वहाँ के निवासी वीर और सत्यवादी हैं , यदि तुम कभी वहाँ जाओ तो वहाँ के किसी संत से जरूर मिलना जो प्रायः सारा जीवन चिंतन मनन और ईश्वर की भक्ति में बस्ती से दूर किसी नदी किनारे एकांत में बिताते हैं .
सिकन्दर ने विजय तो पा ली थी पर उसकी सेना भारत के गरम मौसम से उब गई थी और वापस स्वदेश लौट जाना चाहती थी ,ऐसी परिस्थिति में सिकंदर वापस लौट जाने को विवश हो गया . वापस लौटने से पहले वह अपने गुरू अरस्तु के आदेश के अनुरूप भारत के किसी संत , फकीर या आध्यात्मिक महापुरुष से मिलना चाहता था . एक ऐसे ही संत का परिचय पाकर वह उनसे मिलने गया . संत अपनी कुटिया में शांत भाव से ध्यान मग्न थे . सामने पहुंचकर सिकंदर ने कहा " मैं विश्वविजय पर निकला सिकंदर महान हूं . " यहां भारत को जीता है , आपको प्रणाम है . साधु महात्मा ने कोई उत्तर नही दिया . सिकंदर ने पुनः अभिमान से उन्हें नमस्कार कहा , किन्तु साधु की कोई प्रतिक्रया न पाकर सिकंदर गुस्से से स्वयं को फिर महान बताते हुये संत को अपमानित व तिरस्कृत करते हुये चिल्लाया " तू कैसा संत है ? कुछ बोलता ही नही ! "
यह सुनकर संत ने शांत स्वर में कहा " क्या बोलूं ? सुन रहा हूं कि तू स्वयं को महान और विश्वविजेता बता रहा है . मेरी दृष्टि में तो तू वैसा ही मालूम होता है जैसे कोई पागल कुत्ता ,जो अनायास भौकता है और दूसरे निर्दोष प्राणियो पर हमला करके उन्हें अकारण ही नुकसान पहुंचाता है या मार डालता है . तूने अनेको देशो के निर्दोष लोगो को बिनावजह मार डाला है , देशो को उजाड़ दिया है , बच्चो और स्त्रियो को बेसहारा करके उन्हें रोने बिलखने के लिये छोड़ कर भारी अपराध किया है . जो अकारण दूसरो के प्राण लेता है वह विजेता कैसे ? वह तो ईश्वर की दृष्टि में अपराधी है , मूर्ख है . हम तो उसे विजेता मानते हैं जो स्वयं अपने मन पर विजय पा लेता है . मन की बुराईयों को जीतता है , दूसरो के दुख दर्द मिटाकर उन्हें प्रसन्न रखने के लिये संकल्प कर सदा भलाई के कार्य करता है . महान विजेता वह होता है जो औरो पर नही स्वयं अपने आप पर विजय पा लेता है . बुरे काम करना छोड़कर सदाचारी व परहितकारी जीवन जीता है . ऐसा ही व्यक्ति ईश्वर को भी प्रिय होता है . अत्याचारी को कोई पसंद नही करता . सिकंदर संत की वाणी से जैसे सोते से जाग गया , और आत्म निरीक्षण में लगकर स्वतः को ईश्वर का अपराधी समझकर अपने व्यवहार में सुधार करने के विचार करने लगा .
द्वारा प्रो. सी. बी . श्रीवास्तव "विदग्ध "
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
यूनान का बादशाह सिकंदर बड़ा महत्वाकांक्षी था . वह समस्त संसार को जीतकर विश्वविजेता बनना चाहता था . इसी महत्वाकांक्षा को लेकर वह अपने देश से निकला . मार्ग में अनेको देशो को जीतता हुआ वह भारत में आया . उसने पंचनद प्रदेश में युद्ध कर उसे जीत लिया और अपनी सेना को आदेश दिया कि पराजित राजा पुरु को बंदी बनाकर उसके सम्मुख लाया जावे . राजा पुरु को सिकंदर के सामने लाया गया . सिकंदर ने पुरु से पूछा , " तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जावे ? " पुरु ने निर्भीक स्वर में उत्तर दिया , " वैसा ही जैसा एक राजा को दूसरे राजा के साथ करना चाहिये ". पुरु के निर्भीक उत्तर ने सिकंदर को बहुत प्रभावित किया .उसने पुरू का समस्त राज्य उसे वापस कर दिया तथा पुरु की वीरता एवं निर्भीकता की सराहना भी की . सिकंदर को अपने गुरू अरस्तु का उपदेश याद हो आया गुरू ने कहा था कि "भारतवर्ष आश्चार्यकारी , आध्यात्मिक देश है , वहाँ के निवासी वीर और सत्यवादी हैं , यदि तुम कभी वहाँ जाओ तो वहाँ के किसी संत से जरूर मिलना जो प्रायः सारा जीवन चिंतन मनन और ईश्वर की भक्ति में बस्ती से दूर किसी नदी किनारे एकांत में बिताते हैं .
सिकन्दर ने विजय तो पा ली थी पर उसकी सेना भारत के गरम मौसम से उब गई थी और वापस स्वदेश लौट जाना चाहती थी ,ऐसी परिस्थिति में सिकंदर वापस लौट जाने को विवश हो गया . वापस लौटने से पहले वह अपने गुरू अरस्तु के आदेश के अनुरूप भारत के किसी संत , फकीर या आध्यात्मिक महापुरुष से मिलना चाहता था . एक ऐसे ही संत का परिचय पाकर वह उनसे मिलने गया . संत अपनी कुटिया में शांत भाव से ध्यान मग्न थे . सामने पहुंचकर सिकंदर ने कहा " मैं विश्वविजय पर निकला सिकंदर महान हूं . " यहां भारत को जीता है , आपको प्रणाम है . साधु महात्मा ने कोई उत्तर नही दिया . सिकंदर ने पुनः अभिमान से उन्हें नमस्कार कहा , किन्तु साधु की कोई प्रतिक्रया न पाकर सिकंदर गुस्से से स्वयं को फिर महान बताते हुये संत को अपमानित व तिरस्कृत करते हुये चिल्लाया " तू कैसा संत है ? कुछ बोलता ही नही ! "
यह सुनकर संत ने शांत स्वर में कहा " क्या बोलूं ? सुन रहा हूं कि तू स्वयं को महान और विश्वविजेता बता रहा है . मेरी दृष्टि में तो तू वैसा ही मालूम होता है जैसे कोई पागल कुत्ता ,जो अनायास भौकता है और दूसरे निर्दोष प्राणियो पर हमला करके उन्हें अकारण ही नुकसान पहुंचाता है या मार डालता है . तूने अनेको देशो के निर्दोष लोगो को बिनावजह मार डाला है , देशो को उजाड़ दिया है , बच्चो और स्त्रियो को बेसहारा करके उन्हें रोने बिलखने के लिये छोड़ कर भारी अपराध किया है . जो अकारण दूसरो के प्राण लेता है वह विजेता कैसे ? वह तो ईश्वर की दृष्टि में अपराधी है , मूर्ख है . हम तो उसे विजेता मानते हैं जो स्वयं अपने मन पर विजय पा लेता है . मन की बुराईयों को जीतता है , दूसरो के दुख दर्द मिटाकर उन्हें प्रसन्न रखने के लिये संकल्प कर सदा भलाई के कार्य करता है . महान विजेता वह होता है जो औरो पर नही स्वयं अपने आप पर विजय पा लेता है . बुरे काम करना छोड़कर सदाचारी व परहितकारी जीवन जीता है . ऐसा ही व्यक्ति ईश्वर को भी प्रिय होता है . अत्याचारी को कोई पसंद नही करता . सिकंदर संत की वाणी से जैसे सोते से जाग गया , और आत्म निरीक्षण में लगकर स्वतः को ईश्वर का अपराधी समझकर अपने व्यवहार में सुधार करने के विचार करने लगा .
शनिवार, 19 मार्च 2011
होली के मुक्तक
होली के मुक्तक
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र.
गांव गली , घर द्वार रंगे , वन बाग रंगे , सब लोग रंगाये
रंग तरंग में भींग गये तन , डूब गये मन प्रेम बसाये
भाल औ" गाल गुलाल से लाल , औ" नयनों में रंग के बादल छाये
होली की भोली ठिठोली में रोली उड़ी , हर द्वार पै फागुन आये
आया बसंत प्रीति होली मिलने चली
मादक बयार मोहती हँसती कली कली
चिड़ियां चहक रही हैं मचलती हैं तितलियां
भौंरे भी गुनगुना रहे फिरते गली गली
मन में उठी उमंग है , तन में तरंग है
मौसम की खुश हवा , का जमाने पै रंग है
निकले हैं सब खुमार में मिलने जहाँ तहाँ
मन मन से मिल रहे हैं ये ऐसा प्रसंग है
होली के रंग संग ,ले बादल गुलाल के
सपने हजार रेशमी नैनो में पाल के
आये हैं ले के नेह की मुस्कान नशीली
जायेंगे तुम से मिलके चटक रंग डाल के
डोरे रंगीली प्रीति के, आंखों में डाल के
आना पड़ेगा सामने ,खुद को संभाल के
मौसम की बात मान के, अपने लिये हुजूर
जाओगे कहाँ बच के , मोहब्बत को टाल के
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र.
गांव गली , घर द्वार रंगे , वन बाग रंगे , सब लोग रंगाये
रंग तरंग में भींग गये तन , डूब गये मन प्रेम बसाये
भाल औ" गाल गुलाल से लाल , औ" नयनों में रंग के बादल छाये
होली की भोली ठिठोली में रोली उड़ी , हर द्वार पै फागुन आये
आया बसंत प्रीति होली मिलने चली
मादक बयार मोहती हँसती कली कली
चिड़ियां चहक रही हैं मचलती हैं तितलियां
भौंरे भी गुनगुना रहे फिरते गली गली
मन में उठी उमंग है , तन में तरंग है
मौसम की खुश हवा , का जमाने पै रंग है
निकले हैं सब खुमार में मिलने जहाँ तहाँ
मन मन से मिल रहे हैं ये ऐसा प्रसंग है
होली के रंग संग ,ले बादल गुलाल के
सपने हजार रेशमी नैनो में पाल के
आये हैं ले के नेह की मुस्कान नशीली
जायेंगे तुम से मिलके चटक रंग डाल के
डोरे रंगीली प्रीति के, आंखों में डाल के
आना पड़ेगा सामने ,खुद को संभाल के
मौसम की बात मान के, अपने लिये हुजूर
जाओगे कहाँ बच के , मोहब्बत को टाल के
होलिका को ध्वस्त कर पूजा करें प्रहलाद की
होली
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र.
कट गये वन , घट गये वन ,दुख में है हर एक मन
हरे जंगल देखने को ,अब तरसते हैं नयन
उजाड़ो मत , नये उगाओ वृक्ष हर परिवेश में
देश हित में है जरूरी , मत करो होली दहन
हर्ष हो , उत्साह हो , हो फाग रंग गुलाल से
नेह बरसे , प्रीति सरसे , किसी से न मलाल हो
लकड़ी अब मिलती नहीं , लोगों को अब शव दाह को
बंद हो लकड़ी जला होली मनाने का चलन
होलिका को ध्वस्त कर पूजा करें प्रहलाद की
चेतना नव सृजन की हो वृद्धि हो आल्हाद की
धरा हो फिर से हरी सबके समृद्ध प्रयास से
सुखी हो संसार सबका प्रकृति की फिर पा शरण
हटा के ज्वाला विनाशी , बढ़ायें मन की चमक
आपसी सद्भाव की हर घर गली निखरे झलक
होलिका तो जली सदियो विजय हुई प्रल्हाद की
पर्व अब प्रल्हाद का हो , हो नया पर्यावरण .
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र.
कट गये वन , घट गये वन ,दुख में है हर एक मन
हरे जंगल देखने को ,अब तरसते हैं नयन
उजाड़ो मत , नये उगाओ वृक्ष हर परिवेश में
देश हित में है जरूरी , मत करो होली दहन
हर्ष हो , उत्साह हो , हो फाग रंग गुलाल से
नेह बरसे , प्रीति सरसे , किसी से न मलाल हो
लकड़ी अब मिलती नहीं , लोगों को अब शव दाह को
बंद हो लकड़ी जला होली मनाने का चलन
होलिका को ध्वस्त कर पूजा करें प्रहलाद की
चेतना नव सृजन की हो वृद्धि हो आल्हाद की
धरा हो फिर से हरी सबके समृद्ध प्रयास से
सुखी हो संसार सबका प्रकृति की फिर पा शरण
हटा के ज्वाला विनाशी , बढ़ायें मन की चमक
आपसी सद्भाव की हर घर गली निखरे झलक
होलिका तो जली सदियो विजय हुई प्रल्हाद की
पर्व अब प्रल्हाद का हो , हो नया पर्यावरण .
रविवार, 13 मार्च 2011
सतत सुखी जीवन जीने का बड़ा सरल सिद्धांत है ..
सतत सुखी जीवन जीने का बड़ा सरल सिद्धांत है ..
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र
मानव साधन , समय नियंता , संचालक भगवान है
ईश्वर की आज्ञा पालन में ही मानव कल्याण है
सद्कर्मो के लिये भावना एक बड़ा आधार है
जिसे समय दे सही प्रेरणा वही सही धनवान है
जीवन सागर में लहरों के प्रबल थपेड़े हैं प्रतिपल
जो उनको सह तैर सकें , सब काम उन्हें आसान हैं
पर जो हैं संपूर्ण समर्पित मन से सेवा कार्य में
उन्हें सफलता का हर क्षण , प्रभु का पावन वरदान है
राह कोई हो , मौसम जो भी , चलना तो अनिवार्य है
कदम निडर हों ढ़ृड़ निश्चय हो , तो न कोई व्यवधान है
गुण अवगुण युग युग से दोनो रहते आये साथ हैं
ये ऐसे ही सदा रहेंगे यह मेरा अनुमान है
पर जो सदाचार का सेवक करता पर उपकार है
यह जग करता आया नित उसका गुणगान है
सतत सुखी जीवन जीने का बड़ा सरल सिद्धांत है
दूर दिखावों से रहता ही नित सच्चा इंसान है
जो विदग्ध निश्छल जीते हैं सबके प्रति सद्भाव रख
प्रकृति और परमात्मा भी उनका करते सम्मान हैं
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र
मानव साधन , समय नियंता , संचालक भगवान है
ईश्वर की आज्ञा पालन में ही मानव कल्याण है
सद्कर्मो के लिये भावना एक बड़ा आधार है
जिसे समय दे सही प्रेरणा वही सही धनवान है
जीवन सागर में लहरों के प्रबल थपेड़े हैं प्रतिपल
जो उनको सह तैर सकें , सब काम उन्हें आसान हैं
पर जो हैं संपूर्ण समर्पित मन से सेवा कार्य में
उन्हें सफलता का हर क्षण , प्रभु का पावन वरदान है
राह कोई हो , मौसम जो भी , चलना तो अनिवार्य है
कदम निडर हों ढ़ृड़ निश्चय हो , तो न कोई व्यवधान है
गुण अवगुण युग युग से दोनो रहते आये साथ हैं
ये ऐसे ही सदा रहेंगे यह मेरा अनुमान है
पर जो सदाचार का सेवक करता पर उपकार है
यह जग करता आया नित उसका गुणगान है
सतत सुखी जीवन जीने का बड़ा सरल सिद्धांत है
दूर दिखावों से रहता ही नित सच्चा इंसान है
जो विदग्ध निश्छल जीते हैं सबके प्रति सद्भाव रख
प्रकृति और परमात्मा भी उनका करते सम्मान हैं
सदस्यता लें
संदेश (Atom)