शनिवार, 8 अगस्त 2015

धन जग का भगवान नहीं है

धन जग का भगवान नहीं है

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव
                                 ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
                                      रामपुर, जबलपुर
                                      मो.9425806252

धन को सबकुछ कहने वालो। धन जग का भगवान नहीं है।
धन से भी बढकर के कुछ है, शायद तुम्हें यह ध्यान नहीं है।

धन को बस धन ही रहने दो, सुख साधक जीवन अनुगामी
क्यों उसके अनुचर बनकर तुम बना रहे उसको निज स्वामी
उसकी निर्ममता का शायद तुमको पूरा ज्ञान नहीं है।

माध्यम है मानव के सुख संचय हित धन केवल जड साधन
करूणा ममता प्रेम बडे जिनका मन नित करता आराधन।
मानवता ममता के आगे धन का कोई अधिमान नहीं है।

धन कर सकता है केवल क्रय, जीवन दे सकती ममता
ममता के बिन यह जग नीरस, निर्वासित सुख दायिनि समता
धन ममता का क्र्रीत दास है यह मिथ्या अभिमान नहीं है

धन ने ही भाई भाई के बीच बडी खोदी है खाई
धनी और निर्धन की इसने अलग अलग बस्ती बसवा दी।
यह अब बढ अभिषाप बन रहा सबको शुभ वरदान नहीं है

आवश्यक है अब धन की हो एक नई व्याख्या परिभाषा
हो धन का समुचित बंटवारा जिससे कहीं न रहे निराषा
धन मानव के हित निर्मित है धन के हित इन्सान नहीं है।
 

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