संतुलन चाहिये
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.9425806252
जग में खुद की आंै सब की खुषी के लिये
स्वार्थ परमार्थ में संतुलन चाहिये
आये बढते निरंतर मनुज के चरण
किंतु अपने से ऊपर न उठ पाया मन।
सारी दुनियाॅ इसी से परेषान है
कई के आॅसुओ से भरे हैं नयन
सारी दुनियाॅ मंे दुख के शमन के लिये
लोगों में सबके मन का मिलन चाहिये।
आज आॅंगन धरा का गया बन गगन
नई आषाओ से चेहरे दिखते मगन
भूल छोटी भी कोई किसी भी तरफ
डर है कर सकती जग की खुषी का हरण
एक आॅंगन में सम्मिलित जषन के लिये
भावनाओं का एकीकरण चाहिये।
मन की बातों का अक्सर न होता कथन
ये है इस सभ्य दुनियाॅ का प्रचलित चलन
हाथ तो मिलाये जाते है मिलने पै पर
यह बताना कठिन कितने मिल पाये मन
विश्व में मुक्त वातावरण सृजन के लिये
पारदर्षी खुला आचरण चाहिये।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.9425806252
जग में खुद की आंै सब की खुषी के लिये
स्वार्थ परमार्थ में संतुलन चाहिये
आये बढते निरंतर मनुज के चरण
किंतु अपने से ऊपर न उठ पाया मन।
सारी दुनियाॅ इसी से परेषान है
कई के आॅसुओ से भरे हैं नयन
सारी दुनियाॅ मंे दुख के शमन के लिये
लोगों में सबके मन का मिलन चाहिये।
आज आॅंगन धरा का गया बन गगन
नई आषाओ से चेहरे दिखते मगन
भूल छोटी भी कोई किसी भी तरफ
डर है कर सकती जग की खुषी का हरण
एक आॅंगन में सम्मिलित जषन के लिये
भावनाओं का एकीकरण चाहिये।
मन की बातों का अक्सर न होता कथन
ये है इस सभ्य दुनियाॅ का प्रचलित चलन
हाथ तो मिलाये जाते है मिलने पै पर
यह बताना कठिन कितने मिल पाये मन
विश्व में मुक्त वातावरण सृजन के लिये
पारदर्षी खुला आचरण चाहिये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें