वह बगीचा जहां नित खिले फूल थे ....
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.9425806252
वह बगीचा जहां नित खिले फूल थे, आज मुरझाई सी उसकी है क्यारियां
लगता है मालियो को न चिंता कोई, जेब भरने की सबकी है तैयारियां
जहां होती थी सुरभित सुमन की छटा, वहां सूखी सी कांटो भरी डार है
नाम तो आज भी है चमन का बहुत, किंतु लगता घटा स्वार्थ वश प्यार है
बदली तासीर आबो हवा इस तरह, फूल है झर रहे बढा पतझार है
ज्यो दवा हो रही कि बगीचा सजे, और बढती सी दिखती है बीमारियाँ
वह बगीचा जहाँ नित खिले फूल थे, आज मुरझाई सी उसकी है क्यारियाँ
सर्दी आई घना कोहरा सा छा रहा, हर दिशा है उदासी का वातावरण
हर गली हवा अनबन की है बह रही, नहीं दिखती सही चेतना की किरण
आचरण मेल ममता के पंछी सभी उड चले छोड मन के हरे बाग को
बढती जाती है मतभेद की भवना त्याग कर आपसी प्रेम अनुराग को
परवरिष कर सजाने चमन की जगह मन में बढती सी जाती है बदकारियाँ
वह बगीचा जहाँ नित खिले फूल थे, आज मुरझाई सी उसकी है क्यारियाँ
नीति की कोकिला रोती बंदी बनी, कोई सुनता नही उसे दरबार मे
ध्यान जाता नही है किसी का भी अब दुखी की दीनता भरी मनुहार मे
न वंसती हवा डोलती अब कही न कही है खुशी न ही त्यौहार है
जिस बगीचे मे खिलते थे सुंदर सुमन वहाँ हर क्यारी दीमक की भरमार है
फिर से मिट्टी अगर ये न बदली गई कैसे संभलेगी उजडी सी फुलवारियाँ
वह बगीचा जहाँ नित खिले फूल थे, आज मुरझाई सी उसकी है क्यारियाँ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें