मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

संतुलन चाहिये

संतुलन चाहिये

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.9425806252


जग में अपनी और सबकी खुशी के लिये
स्वार्थ परमार्थ में संतुलन चाहिये
खोज पाने सही हल किसी प्रश्न का
परिस्थिति का सकल आंकलन चाहिये

बढते आये सदा ही मनुज के चरण स्वार्थ घेरो से पर न निकल पाया मन
औरो के प्रति समझ की रही है कमी, बहुतो के इससे आंसू भरे है नयन
हर डगर मे दुखो के शमन के लिये, परस्पर प्रेममय आचरण चाहिये

नये नये गगनचुंबी गढे तो भवन, किंतु संवेदना का किया नित हनन
भुला दुख दर्द अपने पडोसी का सब, मन रहा मस्त अपने स्वतः में मगन
साथ रहना है जब एक ही गाँव मे , भावनाओ का एकीकरण चाहिये

दिखती खटपट अधिक नेह की है कमी, इस सच्चाई को कोई नही देखता
व्यर्थ अभिमान है चाह सम्मान की ,औरो को खुद से हर कोई कम लेखता
शांति सुख प्रगति यदि चाहिये , तो सदा हर जगह आपसी अन्वयन चाहिये

आज है सभ्य दुनिया का प्रचलित चलन , बात मन की छुपा करना झूठे कथन
हाथ तो झट मिला लेना अनजान से ,किंतु अपनो से भी मिला पाना न मन
सबकी खुशियो का उत्सव सजे ,इसलिये प्रेम से पूर्ण वातावरण चाहिये

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