रविवार, 29 दिसंबर 2019

जिल्द बन्द शब्दो की पुस्तक यात्रा

पिताश्री प्रोफेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध के जिल्द बंद शब्दों  की पुस्तक यात्रा

1948 चाँद , सरस्वती जैसी तत्कालीन साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताओं के प्रकाशन से प्रारंभ उनकी शब्द यात्रा के प्रवाह के पड़ाव हैं उनकी ये किताबें ।

पहले पुस्तक प्रकाशन केंद्र दिल्ली की जगह आगरा और इलाहाबाद हुआ करता था। आगरा का प्रगति प्रकाशन साहित्यिक किताबों के लिए बहुत प्रसिद्ध था । स्वर्गीय परदेसी जी द्वारा साहित्यकार कोष भी छापा गया था, जिसमें पिताजी का विस्तृत परिचय छपा है ।भारत चीन व पाकिस्तान युद्धो के समय जय जवान जय किसान ,  उद्गम, सदाबहार गुलाब ,गर्जना ,युग ध्वनि आदि प्रगति प्रकाशन की किताबों में पिताजी की रचनाएं प्रकाशित हैं । कुछ किताबें उन्हें समर्पित की गई हैं , कुछ का उन्होंने सम्पादन किया है । ये सामूहिक संग्रह हैं ।
पिताजी शिक्षा विभाग में प्राचार्य , फिर संयुक्त संचालक , शिक्षा महाविद्यालय में प्राध्यापक , केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य रहे हैं आशय यह कि उन्होंने न जाने कितनी ही पुस्तकें पुस्तकालयों के लिए खरीदी , पर जोड़ तोड़ गुणा भाग से अनभिज्ञ सिद्धांत वादी पिताश्री की रचनाये पुस्तक रूप में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद मैंने ही प्रस्तुत कीं । उन्हें किताबें छपवाने , विमोचन समारोह करने, सम्मान वगैरह में कभी   दिलचस्पी नहीं रही।

मेघदूतम का हिंदी छंदबद्ध पद्यानुवाद उनका बहुत पुराना काम था , जो पहली पुस्तक के रूप में 1988 में आया । बाद में मांग पर उसका नया संस्करण भी पुनर्मुद्रित हुआ।

फिर ईशाराधन आई , जिसमे उनकी रचित मधुर प्रार्थनाये हैं ।
वे लिखते हैं
नील नभ तारा ग्रहों का अकल्पित विस्तार है
है बड़ा आश्चर्य , हर एक पिण्ड बे आधार है
है नहीं कुछ भी जिसे सब लोग कहते हैं गगन
धूल कण निर्मित भरी जल से  सुहानी है धरा
पेड़-पौधे जीव जड़ जीवन विविधता से भरा
किंतु सब के साथ सीमा और है जीवन मरण
 सूक्ष्म तम परमाणु अद्भुत शक्ति का आगार है
हृदय की धड़कन से भड़ भड़ सृजित संसार है
जीव क्या यह विश्व क्यों सब कठिन चिंतन मनन

कारगिल युद्व के समय मण्डला के स्टेडियम में गणतंत्र दिवस के भव्य समारोह में उल्लेखनीय रूप से वतन को नमन का विमोचन हुआ ।
पिताश्री की रचनाओ का मूल स्वर देशभक्ति , आध्यात्मिक्ता , बच्चों के लिए शिक्षा प्रद गीत , तात्कालिक घटनाओं पर काव्य मय सन्देश , संस्कृत से हिंदी काव्य अनुवाद है ।
अनुगुंजन का प्रकाशन वर्ष 2000 में हुआ , जिसके विषय में सागर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति श्री शिवकुमार श्रीवास्तव ने लिखते हुए पिताजी की ही रचना उधृत की है

होते हैं मधुरतम गीत वही
जो मन की व्यथा सुनाते हैं
जो सरल शब्द संकेतों से
अंतर मन को छू जाते हैं

वसुधा के संपादक  डॉक्टर कमला प्रसाद ने उनके गीतों के विषय में लिखा "वे सामाजिक अराजकता के विरोधी हैं उनकी कविताओं में सरलता सरसता  तथा दिशा बोध बहुत साफ दिखाई देते हैं ,विचारों की दृढ़ता तथा भावों की स्पष्टता के लिए उनके गीत हिंदी साहित्य में उदाहरण है"
बाल साहित्य की उनकी उल्लेखनीय किताबें हैं बाल गीतिका ,बाल कौमुदी, सुमन साधिका,  चारु चंद्रिका ,कर्मभूमि के लिए बलिदान, जनसेवा ,अंधा और लंगड़ा , नैतिक कथाएं , आदर्श भाषण कला इत्यादि ये पुस्तकें विभिन्न  पुस्तकालयों  में खूब खरीदी गईं ।
 मानस के मोती तथा मानस मंथन रामचरितमानस पर उनके लेखों के संग्रह हैं । मार्गदर्शक चिंतन वैचारिक दिशा प्रदान करते आलेख हैं ।
भगवत गीता के प्रत्येक श्लोक का हिंदी  पद्यानुवाद अर्थ सहित दो संस्करण छप चुका है । अनेक अखबार इसे धारावाहिक छाप रहे हैं । यह किताब लगातार बहुत डिमांड में है।
 तीसरा संस्करण तैयार है जिसमे अंग्रेजी में भी अर्थ दिया गया है ।
प्रकाशक संपर्क कर सकते हैं ।
रघुवंश का भी सम्पूर्ण हिंदी काव्य अनुवाद प्रकाशित है । 1900 श्लोकों का वृहद अनुवाद कार्य उन्होनें मनोरम रूप में मूल काव्य की भावना की रक्षा करते हुए किया । यह 2014 में छपा ।
कालीदास अकादमी के निदेशक रहे कृष्ण कांत चतुर्वेदी जी ने भूमिका में लिखा है कि भाव अनुवाद का यह कार्य मूल लेखन से कठिन होता है क्योंकि अनुवादक को मूल कवि की आत्मा में परकाया प्रवेश कर भाव रक्षा करते हुए काव्य अनुवाद करना पड़ता है । जिसे तभी किया जा सकता है जब दोनों भाषाओं व काव्य कौशल पर समान अधिकार हो । विदग्ध जी ने अनुवाद के ये असाधारण कार्य मेघदूत , रघुवंश , भगवत गीता व अन्य अनेक संस्कृत श्लोकों के अनुवाद में किये हैं , व संस्कृत न समझने वाले युवा पाठको हेतु ये महान ग्रन्थ सुलभ कर दिए हैं । उनके ही अनुवाद को आधार बनाकर नरेश जी ने रघुवंश का अंगिका भाषा मे अनुवाद कर डाला है ।

साहित्य अकादमी के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने पिताजी की पुस्तक स्वयं प्रभा जिसका प्रकाशन सितंबर 2014 में हुआ के विषय में लिखा है
श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव के गीत कविता को प्यार  , स्नेह  , संवेदना और सुंदरता के सीमित आंचल से बाहर निकालते हुए देशभक्ति के विस्तृत पटल तक ले जाती हैं । रचनाओं को पढ़ते ही मन देश प्रेम के सागर में हिलोरे लेने लगता है । आज सुसंस्कृत भारत की संस्कार और संस्कृति की समझ कम हो रही है वहीं ऐसे कठिन समय में विदग्ध जी की रचनाएं महासृजन की बेला में शब्दों और भाषा से शिल्पित , सराहनीय, उद्देश्य में सफल है।
फरवरी 2015 में अंतर्ध्वनि आई। म प्र राष्ट्र भाषा प्रचार समिति भोपाल के मंत्री संचालक श्री कैलाश चन्द्र पन्त जी ने इसकी भूमिका में लिखा  है  " उनकी संवेदना का विस्तार व्यापक है , कविताओं का शिल्प द्विवेदी युगीन है । वे  उनकी सरस्वती वंदना से पंक्तियों को उधृत करते हैं

हो रही घर-घर निरंतर आज धन की साधना
स्वार्थ के चंदन अगरु से  अर्चना आराधना
आत्मवंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है
चेतना गीत की जगा मां , स्वरों को झंकार दे

भारतीय दर्शन को सरल शब्दों में व्याख्यायित  करते हुए एक अन्य कविता में विदग्ध जी लिखते हैं ,

प्रकृति में है चेतना , हर एक कण सप्राण है
इसी से कहते कि कण कण में बसा भगवान है
 चेतना है ऊर्जा  , एक शक्ति जो अदृश्य है
है बिना आकार पर , अनुभूतियों में दृश्य है

2018 में अनुभूति, फिर हाल ही 2019 में शब्दधारा  पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं ।

2018 दिसम्बर का ट्रू मीडिया विशेषांक पिताजी पर केंद्रित अंक था । आनेको समूह संग्रहो में भी वे उपस्थित हैं।

उनकी ढेरो कविताये  डिजिटल मोड में मेरे कम्प्यूटर पर हैं जिनकी सहज ही दस पुस्तकें तो बन ही सकती हैं । प्रकाशक मित्रों का स्वागत है ।

उनका रचना कर्म निरन्तर जारी है । जो हमारी पूंजी है ।





















गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

सरस्वती के  वरद पुत्र प्रोफ़ेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध




वे एक साथ ही  कभी कवि हैं,  मुक्तककार हैं, गीतकार हैं , नवगीतकार हैं, दोहाकार हैं, शायर हैं,  निबंधकार हैं, समसामयिक लेखक हैं, गद्ययकार हैं, भूमिका लेखक,  समीक्षा लेखक, अनुवादककर्ता,  शोधकर्ता,  शिक्षाविद अर्थशास्त्री ,चिंतक , विश्लेषक , भाषा विज्ञान , संस्कृति वेत्ता , समाज शास्त्री, आध्यात्म ज्ञानी, विभिन्न भूमिकाओं में सफल सरस्वती पुत्र हैं , जी हां मैं बात कर रहा हूं वरिष्ठ  विद्वान सृजक कलमकार सुविख्यात साहित्यिक प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध जी की । वे अगणित बहुचर्चित उत्कृष्ट लोकप्रिय, मान्यता प्राप्त रचनाओं के प्रणेता हैं । उनमे मुझे पाणिनि , वेदव्यास , वाल्मिकी, गोस्वामी तुलसीदास रामधारी सिह दिनकर, मैथली शरण गुप्त , जयशंकर प्रसाद, माखनलाल चतुर्वेदी के अंश स्पष्ट परिलक्षित होते हैं ।
वस्तुतः श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जो विभिन्न पदो प्राध्यापक, प्राचार्य, संचालक और भी न जाने कितने दायित्व पूर्ण पदों से संबद्ध रहे तथा राज्य व केंद्र सरकार के शिक्षण संस्थानो में कार्यरत रह चुके हैं , अनेक समितियों में सलाहकार तथा महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह करते रहे हैं , एक दैदिप्यमान नक्षत्र के रूप में सुविख्यात हैं , बहुमुखी प्रतिभा के धनी , विशेषज्ञ,  सरल सहज किंतु दृढ़,  क्रियाशील व ऊर्जस्वी,  अध्यव्यसाई , अध्यन शील , , परम ज्ञानी तथा सच्चे सरस्वती पुत्र विदग्ध जी अक्षर साधक व साहित्य सेवी के रूप में केवल  प्रतिष्ठित है बल्कि अनेक पीढ़ियों के रचनाकारो के लिए गहन  आदर के पात्र व प्रेरणा स्रोत हैं ।  वे  जीवंतता के प्रतीक तथा अनुकरण हेतु उदाहरण हैं ।
वे जितने  गंभीर हैं उतने नी उच्च विचारों के तथा विशाल ह्रदय के व्यक्तित्व हैं।  उनके जीवन में गतिशीलता है । प्रवाह है सरसता है , वे निर्विवाद हैं । उनका जीवन अनेकों के लिये दृष्टांत बन गया है । 
सामाजिक ,साहित्यिक, सांस्कृतिक ,शैक्षिक ,भारतीय भावधारा, आध्यात्मिक  ,मानवीय , नारी उत्थान,  शोध विषयों , पर  साधिकार विशेषज्ञ के रूप में लिखने वाले आदरणीय विदग्ध जी हिंदी अंग्रेजी संस्कृत मराठी में महारत रखते हैं। वे अनुवाद के रूप में विशिष्ट इसलिये हैं क्योंकि वे मात्र शब्दानुवाद ही नही करते , वे मूल रचना के भावों का अनुवाद करते हैं , इतना ही नही वे काव्य में अनुवाद करते हैं । यह विशेष गुण उन्हें सामान्य अनुवाद कर्ताओं से भिन्न विशिष्ट पहचान दिलाती है । 
वय के नो दशक पूर्ण कर लेने के बाद आज भी भी उतने ही क्रियाशील बने हुए हैं । विभिन्न विषयो की दो दर्जन से ज्यादा मौलिक क़िताबों के रचनाकार एक सक्षम सम्पादक के रूप में भी क्रिया शील रहे हैं । अनेक युवा लेखको को प्रोत्साहित कर उनके मार्गदर्शन का यश भी उनके खाते में दर्ज है । वे आंतरिक शुचिता, सांस्कृतिक मूल्यों , समाजिक समरसता, सद्भाव, सौहार्द्र, सहिष्णुता, नारी समानता के ध्वजवाहक रचनाकार हैं । उनके सारस्वत रचनाकर्म अभिवंदना योग्य हैं।
ऐसे व्यक्तित्व कम ही हैं जिनका समग्र जीवन लेखन और समाज निर्माण के लिए समर्पित हुआ हो ,  जिन्होंने जो कुछ लिखा उसे अपने जीवन में उतारने का आदर्श भी प्रस्तुत किया हो । वे सदा सादा जीवन उच्च विचार के मूल्यों को अपनी लेखनी से व्यक्त ही नही अपने आचरण से उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत भी करते रहे । उन्हें समय समय पर देश की अनेक संस्थाओं ने सम्मानित कर अलंकरण, पुरस्कार , मानपत्र भेंट कर स्वयं गौरव अनुभव किया । वे जितने अच्छे कवि औऱ लेखक हैं उतने ही प्रवीण वक्ता भी हैं । वे जिस आयोजन में अतिथि होते हैं वहां उन्हें सुनने के लिए लोग लालायित रहते हैं ।उनका आभामण्डल बहुमुखी है। 
उन्हें यह दक्षता उनके गहन अध्ययन , चिंतन मनन से मिली है ।उनके शैक्षणिक शोध कार्य अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सराहना अर्जित कर चुके हैं । 
उनके निजी ग्रन्थालय में मैंने सैकड़ों पुस्तकें देखी हैं । अनेक स्कूलों को उन्होंने स्वयं अपनी व अन्य ढेर पुस्तकें बांटी हैं । वे सचमुच साहित्य रत्न हैं । 

आकाशवाणी  व दूरदर्शन से उनकी रचनाएं  प्रसारित होती रही ।सरस्वती जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में 1946 में उनकी पहली रचना छ्पी तभी से उनके लेखन प्रकाशन का यह क्रम अनवरत जारी है । उनकी बाल साहित्य की पुस्तकें नैतिक शिक्षा, आदर्श भाषण कला, कर्म भूमि के लिये बलिदान , जनसेवा आदि प्रदेश की प्रायः प्राथमिक शालाओ व ग्राम पंचायतों के पुस्तकालयों में सुलभ हैं। कविता उनकी सबसे प्रिय विधा है , ईशाराधन में जन कल्याणकारी प्रार्थनाएं हैं , तो वतन को नमन में देश राग है , जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व अटलजी ने भी सराहा था । अनुगुंजन में उनके मन की विविधता की अनुगुंजित कवितायें हैं , वसुधा के सम्पादक कमला प्रसाद जी ने पुस्तक की भूमिका में ही कवि की भूरि भूरि प्रशंसा की है । स्वयं प्रभा तथा अंतर्ध्वनि बाद के संग्रह हैं , अक्षरा के सम्पादक श्री कैलाश चन्द्र पन्त ने विदग्ध जी की पंक्तियों को उधृत किया है, व लिखा है कि इन पंक्तियों में कवि ने सरल शब्दों में भारतीय दर्शन की व्यख्या की है ।
प्रकृति में है चेतना हर एक कण सप्राण है
इसी से कहते कण कण में बसा भगवान है
चेतना है उर्जा एक शक्ति जो अदृश्य है
है बिना आकार पर अनुभूतियो में दृश्य है 
भगवत गीता का हिन्दी काव्य अनुवाद तो इतना लोकप्रिय है कि उसके दो संस्करण छप कर समाप्त हो गए हैं। मेघदूतम व रघुवंश के अनुवाद कालिदास अकादमी उज्जैन के डॉ कृष्ण कांत चतुर्वेदी जी द्वारा सराहे गए हैं । मेघदूतम पर कोलकाता में नृत्य नाटक हो चुके हैं । उनके ब्लाग संस्कृत का मजा हिंदी में पर दुनिया भर से हिट्स मिलते हैं ।
वे शिक्षा शास्त्री हैं , समाज उपयोगी कार्य , माइक्रो टीचिंग , शिक्षण में नवाचार आदि किताबे उनके इस पहलू को उजागर करती हैं। 
उनकी इच्छा शक्ति , जिजीविषा, ने उन्हें उसूलों के लिए संघर्ष का मार्ग दिखाया । वे दृढ संकल्प होकर उस पर चलते रहे , औऱ ऐसे राहगीर अनुकरण योग्य मार्ग बनाने में सफल होते ही हैं । यथार्थ यह है की वे निष्ठावान गांधीवादी हैं । उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि प्रतिष्ठा पूर्ण रही है पर उन्होने यश अर्जन अपने सुकृत्यों से और सफल लेखन से ही किया है ।उनकी जीवन संगनी भी एक विदुषी शिक्षा शास्त्री थी , जिनके साथ ने विदग्ध जी को परिपूर्णता दी । श्रीमती श्रीवास्तव की स्वयं की किताबें संस्कृत मंजरी कभी शालेय पाठ्यक्रम में थी । प्रोफेसर श्रीवास्तव भावुक सहृदय हैं पर दुर्बल नही । उनकी सात्विकता सम्यकता उन्हें क्षमतावान बनाती है । वे प्रणम्य हैं । 
जरूरत है कि समय रहते उनके लेखन पर शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित हो ।
 उनकी अनेकानेक रचनाये जैसे रानी दुर्गावती , शंकरशाह , रघुवीरसिंह , महराणा प्रताप , भारत माता , आदि स्कूली व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल किए जाने योग्य हैं । उनके चिंतन युवा पीढ़ी के मार्गदर्शक हैं । कई अखबार उनके हिंदी अनुवाद कार्य धारावाहिक रुप से प्रकाशित कर रहे हैं। नर्मदा जी पर उनके गीत का आडियो रूप में प्रस्तुतिकरण सराहा गया है । मैं इस प्रज्ञा पुरूष को आदरांजली अर्पित करते हुए उनके सक्रिय स्वस्थ भविष्य की कामनाएं करता हूं । 

प्रो डॉ शरद नारायण खरे 
विभागाध्यक्ष इतिहास व प्राचार्य 
शासकीय जे एम सी महिला महाविद्यालय मण्डला 
481661 मो 9425484382

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

निरर्थक हो हल्ले का है तर्क क्या?

निरर्थक हो हल्ले का है तर्क क्या?

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
                                 ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
                                  रामपुर, जबलपुर
मो. 9425484452


चाहती सरकार करना अंत भ्रष्टाचार का
पर समझ आता न कराण विपक्षी व्यवहार का।

दिखते जो हंगामे होते रोज नये नये सदन में
ये तो है अनुचित तरीका संसदीय प्रतिकार का।

सदन जुटता रोज फिर भी काम कुछ होता नहीं
ये तो है अपमान जनतंत्र के दिये अधिकार का।

लोकतांत्रिक प्रथा का सम्मान होना चाहिये
सदनों का तो काम ही है गहन सोच विचार का

समय, श्रम, धन देश का बरबाद होता जा रहा
यह तो एक व्यवहार दिखता गैर जिम्मेदार का।

इससे घटती ही प्रतिष्ठा हमारे जनतंत्र की
निरर्थक हो हल्ले का है तर्क क्या? आधार क्या?

सदन में ऐसी गिरावट तो कभी देखी नहीं
स्वस्थ चर्चा, वाद विवाद ही कार्य हैं सही प्रकार का।

सबोे को निज मूर्खता पर शर्म आनी चाहिये
कर रहे दुरूपयोग जो निज पद के ही अधिकार का।

जो भी अपने धर्म का निर्वाह कर सकते नहीं
कैसे हो विश्वास उन पर देश के प्रति प्यार का ?

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

पर्यटन



पर्यटन
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध
 ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425484452


देख के कोई चित्र अलबम सुन के या करके पठन
जानते जब है कहीं कोई किला या ऐतिहासिक भवन
उनकी दर्शन लालसा तब पालता हर एक जन
बस इसी परिकल्पना की पूर्ति हित है पर्यटन

नदी निर्मल नीर निर्झर पडे पौधे वन सघन
देख अनुपम प्रकृति शोेभा मुदित हो जाता है मन
भूल सब दुखदर्द जग के शांति पाते है नयन
इन्ही मन की चाह पूरी करने होता पर्यटन

मिलती है खुशियाॅ तो संग ही बढता है ज्ञान धन
मिलती नई नई जानकारी बहुतो से होता मिलन
यात्रा के होते अनुभव बुद्धि पाती उन्नयन
है अनेको ज्ञान गुण का लाभदाता पर्यटन

सभी के मन को है भाता यभा संभव परिभ्रमण
बढाना संपर्क कई से करना नव ज्ञानार्जन
हर जगह उपलब्ध है अब सुविधाये भोजन शयन
साथ ही आवागम की सुखद इससे पर्यटन

तीर्थ दर्शन देव दर्शन प्राकृतिक पर्यावरण
निरख कर मन सोचता करता कभी चिंतन मनन
कौन है वह शक्ति जिसमे किया इन सबका सृजन
प्रकृति पूजा आत्मचिंतन भाव देता पर्यटन

समस्या का हल नहीं है युद्ध, है सद्भाव



समस्या का हल नहीं है युद्ध है सद्भाव

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध
 ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425484452


सही सोच विचार से मिलती प्रगति की राह
सबको होनी चाहिये उसकी उचित परवाह

बैर भाव नहीं कभी  भी मनुज की पहचान
फिर भला सब कुछ मिटाने क्यो लडे इंसान?

सभी धर्मो ने सिखा दी प्रेम की ही बात
बैर से होती हमेशा दुखो की बरसात

उजाला खुशियों का मिट छा जाता है अंधियार
मारकाट औं युद्धो में है दुखो की भरमार

दुश्मनी कर जी नही सकता कभी इंसान
जो झगडता रहता उसको कहते सब नादान

युद्ध में होते हमेशा ही गलत व्यवहार
युद्ध तो है दुख का कारण जीत हो या हार

रोकनी पडती लडाई हो सदा लाचार
इससे अच्छा जीतना मन करके सच्चा प्यार

समस्यायें सुलझती जब होती मिलकर बात
सफलता को चाहिये सद्भाव सबका साथ।

युद्ध तो अब समझा जाता एक मानसिक रोग
हर समस्या सुलझती यदि सबका हो सहयोग

लडाई दे जाती सबके मन को गहरे घाव
समस्या का हल नहीं है युद्ध है सद्भाव

 .......................................................................................................................................................

NO WAR PLEASE



सिर्फ मन की ईष्र्या को त्यागना है।

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध
 ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो. 9425484452

नाम तो है पाकपर नापाक हरकत
कैसी मन की अटपटी सी भावना है?

बेवजह घुस पडोसी की सरहदों में
मारना निर्दोषो को क्या कामना है?

युद्धो ने तो उजाडे कई देश पहले
आये दिन फिर युद्ध नये क्यो ठानना है?

बचाई जा सकती कई निर्दोष जानें
सिर्फ मन की ईष्र्या को त्यागना है।

जरूरी है समझदारी हर कदम पर
आदमियत के रिश्तों को यदि पालना है।

राख कर देगी तुम्हीं को आग जल यह
सोचो समझो खुद को अगर उबारना है

हम तो समझते रहे हर बार तुमको
तुम्हें अपने आपको पहचानना है।

मिल के रहने में भलाई है सभी की
दुनियाॅ की यह बात दिल से मानना है।

लडाई दे जाती सबको घाव गहरे
इससे बचने मन को बहुत सम्हालना है।


..........................................................................................................................