राष्ट्र को सुदृढ बनाने एक सही प्रकल्प हो
था विदेषी जबकि शासन देष अपना एक था
प्राप्त कर स्वातंत्र्य दो देषों में नाहक बट गया।
आये दिन बटंता ही जाता नये नये प्रदेष में
दलो, भाषा, जाति, क्षेत्रों की परिधि से पट गया।
इस तरह कैसे सुरक्षित होगी सबकी एकता
हरेक मन में चाह है जब निज अलग अनुवाद की
देषवासी चाहते यदि देष की समृद्धि हो
त्यागनी होगी उन्हें यह नीति बढते स्वार्थ की।
विखण्डन की राजनीति ने है बिकाडा देष को
सबो का तो एक निष्चित ध्येय होना चाहिए
देष की हो एक भाषा एक ही संकल्प हो
राष्ट्र हित में एक सा ही सोच होना चाहिए
बदल सकता दृष्य सबके एक अविचल सोच से
सबो का यदि देष हित में स्वैच्छिक संकल्प हो
जो करें सब साथ मिलकर एक शुभ उद्देष्य से
राष्ट्र को सुदृढ बनाने एक सही प्रकल्प हो
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
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