संतुलन चाहिए
जग में अपनी औ‘ सबकी खुषी के लिये,
स्वार्थ परमार्थ में संतुलन चाहिए।
खोज पाने सही हल किसी प्रष्न का,
परिस्थिति का सही आंकलन चाहिये।
आये बढ़ते निरंतर मनुज के चरण
किंतु अपने से आगे न उठ पाया मन।
सारी दुनिया इसी से परेषान है
कई के आॅसुओ से भरे है नयन।
सारी दुनिया में दुख के शमन के लिए
पूर्व-पष्चिम के मन का मिलन चाहिए।
आज आॅगन धरा का बना है गगन
नई आषाओं से दिखते चेहरे मगन।
भूल छोटी सी ही पर किसी भी तरफ
डर है कर सकती जग की खुषी का हरण।
एक आॅगन में सम्मिलित जषन के लिये
भावनाओं का एकीकरण चाहिए।
मन की बातो का मुॅह ने किया कम कथन
ये है इस सभ्य दुनियाॅ का प्रचलित चलन।
हाथ तो सबने मिलकर मिलाये मगर
यह बताना कठिन कितने मिल पाये मन।
विश्व में मुक्त वातावरण के लिए
पारदर्षी खुला आचरण चाहिए।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
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