शासक वर्ग जहाॅ नैतिक आचरणवान नहीं होगा
जनता से नैतिकता की आषा करना है धोखा।
देष गर्त में दुराचरण के नित गिरता जाता है,
आषा के आगे तम नित गहरा घिरता जाता है।
क्या भविष्य होगा भारत का है सब ओर उदासी,
जन अषांति बन क्रांति न कूदे उष्ण रक्त की प्यासी।
अभी समय है पथ पर आओं भूले भटके राही,
स्वार्थ सिद्धि हित नहीं देष हित बनो सबल सहभागी।
नहीं चाहिए रक्त धरा को, तुम दो इसे पसीना,
सुलभ हो सके हर जन को खुद और देष हित जीना।
मानव की सभ्यता बढ़ी है नहीं स्वार्थ के बल पर,
आदि काल से इस अणुयुग तक श्रमरथ पर ही चलकर।
स्वार्थ त्याग कर जो श्रम करते वें ही कुछ पाते है,
भूमिगर्भ से हीरे, सागर से मोती लाते है।
त्याग राष्ट्र का स्वास्थ्य शक्ति है, स्वार्थ बड़ी बीमारी,
सदा स्वार्थ से ही उठती है भारी अड़चन सारी।
अगर देष को अपने है उन्नत समर्थ बनाना,
स्वार्थ, त्याग, उत्तम, चरित्र सबको होगें अपनाना।
प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
रामपुर, जबलपुर
मो.9425806252
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